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तिलोयपण्णत्ती
[ ४. १७२
दोकोस उच्छेहो' पणसयचावप्पमाणरुंदो हुँ । वणवेदीआयारो तोरणदारेहिं संजुत्तो ॥ १७२ चरियहॉलयचारू णाणाविहर्जतलक्खसंछण्णा । विविहवररयणखचिदा णिरुवमसोहा हि वेदीओ ॥ १७३ सम्वेस उववणेसं वेंतरदेवाण होति वरणयरा । पायारगोउरजदा जिणभवणविभूसिया विउला ॥ १७४ रजदणगे दोणि गुहा पण्णासा जोयणाणि दीहाओ । अटुं उब्विद्धाओ बारसविखंभसंजुत्ता ॥ १७५
५०।८। १२ । पुवाए तिमिसगुहा खंडपवादो दिसाए अवराएँ । वजकवाडेहि जुदा अणादिणिहणा हि सोहंति ॥ १७६ जमलकवाडा दिव्वा होति हु छज्जोयणाणि वित्थिण्णा । अट्रच्छेहाँ दोसु वि गुहासु दाराणे पत्तेकं ॥ १७७ पण्णासजोयणाणि वेयणगस्स मूलवित्थारो । तं भरहादो सोधिय सेसद्धं दक्षिणद्धं तु ॥ १७८ दुसया अट्टत्तीसं तिणि कलाओ य दक्खिणद्धम्मि । तस्स सरिच्छपमाणो उत्तरभरहो हि णियमेण ॥ १७९
२३८ । ३
दो कोस उंचाई तथा पांचसौ धनुषप्रमाण विस्तारसे सहित और तोरणद्वारोंसे संयुक्त वनवेदीका आकार होता है ॥ १७२ ॥
ये वेदियां मार्ग और अट्टालिकाओंसे सुन्दर, नानाप्रकारके लाखों यंत्रोंसे व्याप्त, विविधप्रकारके उत्कृष्ट रत्नोंसे खचित, और अनुपम शोभाको धारण करनेवाली हैं ॥ १७३ ॥
. इन सब उपवनोंमें प्राकार और गोपुरोंसे युक्त, तथा जिनभवनोंसे भूषित व्यन्तरदेवोंके विशाल उत्कृष्ट नगर हैं ॥ १७४ ॥
___ रजतपर्वत अर्थात् विजया में पचास योजन लम्बी, आठ योजन ऊंची, और बारह योजन विस्तारसे युक्त, दो गुफायें हैं ॥ १७५ ॥ दीर्घता ५०, उंचाई ८, विष्कंभ १२ यो.
___इनमें से पूर्वमें तिमिस्र गुफा और पश्चिम दिशामें खण्डप्रपात गुफा है। ये दोनों गुफायें वज्रमय कपाटोंसे युक्त और अनादिनिधन होती हुई शोभायमान हैं ॥ १७६ ॥
___ दोनों ही गुफाओंमें द्वारोंके दिव्य युगल कपाटों से प्रत्येक कपाट छह योजन विस्तीर्ण और आठ योजन ऊंचा है ॥ १७७ ॥
विजयार्द्ध पर्वतका विस्तार मूलमें पचास योजन है । इसको भरत क्षेत्रके विस्तारमेंसे कम करके शेषका आधा दक्षिण अर्द्ध भरत क्षेत्रका विस्तार होता है ॥ १७८ ॥
दक्षिणार्द्ध भरतका विस्तार दोसौ अडतीस योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमेंसे तीन भागप्रमाण है । इसीके सदृश विस्तारवाला नियमसे उत्तर भरत भी है ॥ १७९ ॥
(५२६१६-५०) २, २३८३३३ यो.
१ द दोकोसुं वित्याओ, ब दोकोसुं वित्थारो. २ द व चावा पमाणरंदो उ. ३ द ब आयारो होति हु. ४ द चरियट्टले य. ५ द ब खंदपवाला. ६ दब अवरधरा. ७द बकवाडाहि. ८द अट्टवेयसिद्धाअ. ब अट्टवेयसद्धाओ. ९ दब दाराणि. १० द ब सोधय,
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