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________________ -१.१५] चउत्थो महाधियारो [१४३ वासकदी दसगुणिदा करणी परिही च मंडले खेत्ते । विक्खंभचउब्भागप्पहदा सा होदि खेत्तफलं ॥९ भट्टत्थाणं सुण्णं पंचदुरिगिगयणतिणहणवसुण्णा । अंबरछक्केकेहि अंककमे तस्स विंदफलं ॥ १० १६००९०३०१२५००००००००। ।णिद्देसो गदो । माणुसजगबहुमज्झे विक्खादो होदि जंबुदीओ त्ति । एक्कजोयणलक्खविक्खंभजुदो सरिसवहो ॥ ११ जगदीविण्णासाई भरहक्खिदी तम्मि कालभेदं च । हिमगिरिहेमवदा महहिमवंहरिवरिसणिसहद्दी॥१२ विजओ विदेहणामो णीलगिरी रम्मवरिसरुम्मिगिरी । हेरण्णवदो विजओ सिहरी एरावदो त्ति वरिसोय ॥ १३ एवं सोलसभेदा जंबूदीवम्मि अंतरहियारी । एण्ड ताण सरूवं वोच्छामो आणुपुवीए ॥ १४ वेढेदि तस्स जगदी अटुं चिय जोयणाणि उत्तुंगा। 'दीवं तं मणिबंधस्सरिसं होदूण वडयणिहा ॥ १५ जो ८॥ विस्तारके प्रमाणका वर्ग करके उसे दशसे गुणा करनेपर जो गुणनफल प्राप्त हो उसके वर्गमूलप्रमाण गोल क्षेत्रकी परिधि होती है। इस परिधिको व्यासके चतुर्थांशसे गुणा करनेपर प्राप्त गुणनफलप्रमाण उसका क्षेत्रफल होता है ॥ ९॥ __उदाहरण- मनुष्यलोकका विस्तार ४५ लाख योजन है; V ५००००० x १० = १४२३०२४९ परिधि; १४२३०२४९४ ४५००००° = १६००९०३०१२५००० क्षेत्रफल । __ आठ स्थानोंमें शून्य, पांच, दो, एक, शून्य, तीन, शून्य, नौ शून्य, शून्य, छह और एक, इन अंकोंके क्रमशः रखनेपर जो राशि उत्पन्न हो तत्प्रमाण मनुष्यलोकका घनफल है ॥१०॥ क्षेत्रफल-१६००९०३०१२५०००x१००००० = १६००९०३०१२५०००००००० घ.फ. __ निर्देश समाप्त हुआ। मनुष्यक्षेत्रके बहुमध्यभागमें एक लाख योजन विस्तारसे युक्त, सदृश गोल और जम्बूद्वीप इस नामसे प्रसिद्ध पहिला द्वीप है ॥ ११ ॥ उस जम्बूद्वीपके वर्णन करनेमें जंगती ( वेदिका ), विन्यास, भैरत क्षेत्र, उस ( भरत ) क्षेत्रमें होनेवाला कालोंका भेद, हिमवान् पर्वत, हैमवत क्षेत्र, महाहिमवान् पर्वत, हरि क्षेत्र, निषेध पर्वत, विदेह क्षेत्र, नील पर्वत, ३श्यक क्षेत्र, रुक्मि पर्वत, हैरण्यवत क्षेत्र, शिखेरी पर्वत और ऐवत क्षेत्र, इसप्रकार सोलह अंतराधिकार हैं । अब उनके स्वरूपको अनुक्रमसे कहते हैं ॥ १२-१४ ॥ आठ योजन ऊंची उसकी जगती मणिबंधके सदृश उस द्वीपको वलय अर्थात् कडेके सदृश होकर वेष्टित करती है ॥ १५॥ यो. ८ । १ ब विखंभयचउ. २ द व गदा. ३ द ब हिमवदा. ४ द विदेहणामे. ५ द ब भेदो. ६ द बहियारो. ७ द वणं, ब वण्हं. ८ द ब वेढेवि. ९ द दीवंतंमिणियत्तं, ब दीवं तं मणियत्तं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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