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________________ [चउत्थो महाधियारो) इदं उवरि माणुसलोयसरूवं वण्णयामिलोयालोयपयास पउमप्पहजिणवरं णमंसित्तौ । माणुसजगपण्णत्ती वोच्छामो आणुपुब्वीए॥ णिहेसस्स सरूवं जंबूदीओ त्ति लवणजलही य । धादगिसंडो दीओ कालोदसमुहपोक्खरद्धाई ॥२ तेसं ठिदमणुयाणं भेदा संखा य थोवबहुअत्तं । गुणठाणप्पहुदीणं संकमणं विविहभेयजुदं ॥३ आऊबंधणभावं जोणिपमाणं सुहं च दुक्खं च । सम्मत्तगहणहेदू णिन्बुदिगमणाण परिमाणं ।।४ एवं सोलससंखे अहियारे एत्थ बत्तइस्सामों। जिणमुहकमल विणिग्गयणरजगपण्णत्तिणामाए ॥ ५ । तसणालीबहुमज्झे चित्ताय खिदीय उवरिमे भागे। अइवट्टो मणुवजगो जोयणेपणदाललक्खविक्खंभो॥६ जोयणलक्ख ४५०००००। जगमज्झादो उपरि तब्बहलं जायणाणि इगिलक्खं । णवचदुदुगखत्तियदुगचउक्केकंकम्हि तप्परिही ॥ ७) १०००००। १४२३०२४९ । सुण्णणभगयणपणदुगएक्कखतियसुण्णणवणहासुण्णं । छक्केकजोयणा चिय अंककमे मणुवलोयखेत्तफलं ॥ ८ १६००९०३०१२५००० । इससे आगे मानुषलोकके स्वरूपका वर्णन करता हूं लोकालोकको प्रकाशित करनेवाले पद्मप्रभ जिनेन्द्रको नमस्कार करके अब अनुक्रमसे मनुष्यलोक-प्रज्ञप्तिको कहता हूं ॥ १ ॥ 'निर्देशका स्वरूप, जम्बूद्वीप, लैंवणसमुद्र, धातकीखण्डद्वीप, कालोदसमुद्र, पुष्कराईद्वीप, इन द्वीपोंमें स्थित मनुष्योंके भेद, संख्या, अल्पबहुत्व, गुंणस्थानादिकका विविध भेदोंसे युक्त संक्रमण, आयुबन्धनके निमित्तभूत परिणाम, योनिप्रमाण, सुख, दुःख, सम्यक्त्वग्रहणके हेतु, और मोक्ष जानेवालोंका प्रमाण, इसप्रकार जिनभगवान्के मुखरूपी कमलसे निकले हुए नरजगप्रज्ञप्ति नामक इस चतुर्थ महाधिकारमें इन सोलह अधिकारोंको कहेंगे ॥ २-५॥ ___ सनालीके बहुमध्यभागमें चित्रा पृथिवीके उपरिम भागमें पैंतालीस लाख योजनप्रमाण विस्तारवाला अतिगोल मनुष्यलोक है ॥ ६ ॥ यो. ४५००००० ।। लोकके मध्यभागसे ऊपर उस मनुष्यलोकका बाहल्य एक लाख योजन, और परिधि क्रमश: नौ, चार, दो, शून्य, तीन, दो, चार और एक, इन अंकोंके प्रमाण है ॥ ७ ॥ बाहल्य १०००००, परिधि १४२३०२४९। शून्य, शून्य, शून्य, पांच, दो, एक, शून्य, तीन, शून्य, नौ, शून्य, शून्य, छह और एक इसप्रकार इन अंकोंके प्रमाण मनुष्यलोकका क्षेत्रफल है ॥ ८॥ १६००९०३०१२५०००। १द गमस्सित्ता, बणमस्सित्तो. २ द[पण्णत्ति]. ३ द गुणहाण. ४ ब वत्तयंस्सामो, ५ वजोयणाण. ६ दब विक्खंभा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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