SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३६] तिलोयपण्णत्ती [३. १९५ णिकता भवणादो गब्भे सम्मुच्छि कम्मभूमीसुं । पजत्ते उप्पजदि णरेसु तिरिएसु मिच्छभावजुदा ॥ १९५ ( सम्माइट्ठी देवा रेसुपजंति कम्मभूमीए । गब्भे पज्जत्तेसुं सलागपुरिसा ण होंति कइयाइं ॥ १९६ ) तेसिमर्णतरजम्मे णिवुदिगमणं हवंति केसि पि । संजमदेसवदाई गेण्इंते केइ भवभीरू ॥ १९७) । आगमणं गदं। अवमिदसंको केई णाणचरित्ते किलिट्ठभावजुदा । भवणामरेसु आउं बंधति हु मिच्छभावजुदा ॥ १९८ अविणयसत्ता केई कामिणिविरहजरेण जज्जरिदा । कलहपिया पाविट्ठा जायते भवणदेवेसु ॥ १९९ सपिणअसण्णी जीवा मिच्छाभावेण संजुदा केई । जायति' भावणेसुं दसणसुद्धा ण कइया वि ॥ २०० मरणे विराधिदम्मि य केई कंदप्पकिब्बिसा देवा । अभियोगा संमोहप्पहुदीसुरदुग्गदीसु जायते ॥ २०१ जे सञ्चवयणहीणा हस्सं कुवंति बहुजणे णियमा । कंदप्परत्तहिदया ते कंदप्पेसु जायंति ॥ २०२ जे भदिकम्ममंताभियोगकोदूहलाइसंजुत्ता। जणवण्णे य पट्टा वाहणदेवेसु ते होंति ॥ २०३ भवनोंसे निकले हुए जीव मिथ्यात्वभावसे युक्त होते हुए गर्भ अथवा सम्मूर्च्छन जन्मका आश्रय कर कर्मभूमियोंमें पर्याप्त मनुष्य अथवा तिर्यंचोंमें उत्पन्न होते हैं ॥ १९५ ॥ उन भवनोंसे निकले हुए सम्यग्दृष्टी देव गर्भजन्मका अवलम्बन कर कर्मभूमिके पर्याप्त मनुष्योंमें उत्पन्न होते हैं, किन्तु वे शलाका-पुरुष कदापि नहीं होते ॥ १९६ ॥ उनमेंसे किन्हींके आगामी भवमें मोक्षकी भी प्राप्ति होजाती है और कितने ही संसारसे भयभीत होकर सकल संयम अथवा देशव्रतोंको ग्रहण करते हैं ॥ १९७॥ आगमनका कथन समाप्त हुआ । ज्ञान और चारित्रके विषयमें जिन्होंने शंकाको दूर नहीं किया है, तथा जो क्लिष्ट भावसे युक्त हैं, ऐसे जीव मिथ्यात्वभावसे सहित होते हुए भवनवासी देवोसम्बन्धी आयुको बांधते हैं ॥१९८ ॥ कामिनीके विरहरूपी ज्वरसे जर्जरित, कलहप्रिय और पापिष्ठ कितने ही अविनयी जीव भवनवासी देवोंमें उत्पन्न होते हैं ॥ १९९ ॥ ___ मिथ्यात्वभावसे संयुक्त कितने ही संज्ञी और असंज्ञी जीव भवनवासियोंमें उत्पन्न होते हैं, परन्तु विशुद्ध सम्यग्दृष्टि इन देवोंमें कदापि नहीं उत्पन्न होते ॥ २० ॥ मरणके विराधित करनेपर, अर्थात् समाधिमरणके विना, कितने ही जीव देवदुर्गतियोंमें कन्दर्प, किल्विष, आभियोग्य और सम्मोह इत्यादि देव उत्पन्न होते हैं ॥ २०१॥ जो प्राणी सत्य वचनसे रहित हैं, नित्य ही बहुजनमें हास्य करते हैं और जिनका हृदय कामासक्त रहता है, वे कन्दर्पदेवोंमें उत्पन्न होते हैं ॥ २०२॥ जो भूतिकर्म, मंत्राभियोग और कौतूहलादिसे संयुक्त हैं, तथा लोगोंके गुणगान (खुशामद) में प्रवृत्त रहते हैं, वे वाहन देवोंमें उत्पन्न होते हैं ॥ २०३ ॥ १द ब सम्मुच्छ. २ द ब आवलिदसंखा. ३ द भवणादिवेसु. ४ द जायंते. ५ द ब हिंसं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy