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तिलोयपण्णत्ती
[३. १९५
णिकता भवणादो गब्भे सम्मुच्छि कम्मभूमीसुं । पजत्ते उप्पजदि णरेसु तिरिएसु मिच्छभावजुदा ॥ १९५ ( सम्माइट्ठी देवा रेसुपजंति कम्मभूमीए । गब्भे पज्जत्तेसुं सलागपुरिसा ण होंति कइयाइं ॥ १९६ ) तेसिमर्णतरजम्मे णिवुदिगमणं हवंति केसि पि । संजमदेसवदाई गेण्इंते केइ भवभीरू ॥ १९७)
। आगमणं गदं। अवमिदसंको केई णाणचरित्ते किलिट्ठभावजुदा । भवणामरेसु आउं बंधति हु मिच्छभावजुदा ॥ १९८ अविणयसत्ता केई कामिणिविरहजरेण जज्जरिदा । कलहपिया पाविट्ठा जायते भवणदेवेसु ॥ १९९ सपिणअसण्णी जीवा मिच्छाभावेण संजुदा केई । जायति' भावणेसुं दसणसुद्धा ण कइया वि ॥ २०० मरणे विराधिदम्मि य केई कंदप्पकिब्बिसा देवा । अभियोगा संमोहप्पहुदीसुरदुग्गदीसु जायते ॥ २०१ जे सञ्चवयणहीणा हस्सं कुवंति बहुजणे णियमा । कंदप्परत्तहिदया ते कंदप्पेसु जायंति ॥ २०२ जे भदिकम्ममंताभियोगकोदूहलाइसंजुत्ता। जणवण्णे य पट्टा वाहणदेवेसु ते होंति ॥ २०३
भवनोंसे निकले हुए जीव मिथ्यात्वभावसे युक्त होते हुए गर्भ अथवा सम्मूर्च्छन जन्मका आश्रय कर कर्मभूमियोंमें पर्याप्त मनुष्य अथवा तिर्यंचोंमें उत्पन्न होते हैं ॥ १९५ ॥
उन भवनोंसे निकले हुए सम्यग्दृष्टी देव गर्भजन्मका अवलम्बन कर कर्मभूमिके पर्याप्त मनुष्योंमें उत्पन्न होते हैं, किन्तु वे शलाका-पुरुष कदापि नहीं होते ॥ १९६ ॥
उनमेंसे किन्हींके आगामी भवमें मोक्षकी भी प्राप्ति होजाती है और कितने ही संसारसे भयभीत होकर सकल संयम अथवा देशव्रतोंको ग्रहण करते हैं ॥ १९७॥
आगमनका कथन समाप्त हुआ । ज्ञान और चारित्रके विषयमें जिन्होंने शंकाको दूर नहीं किया है, तथा जो क्लिष्ट भावसे युक्त हैं, ऐसे जीव मिथ्यात्वभावसे सहित होते हुए भवनवासी देवोसम्बन्धी आयुको बांधते हैं ॥१९८ ॥
कामिनीके विरहरूपी ज्वरसे जर्जरित, कलहप्रिय और पापिष्ठ कितने ही अविनयी जीव भवनवासी देवोंमें उत्पन्न होते हैं ॥ १९९ ॥
___ मिथ्यात्वभावसे संयुक्त कितने ही संज्ञी और असंज्ञी जीव भवनवासियोंमें उत्पन्न होते हैं, परन्तु विशुद्ध सम्यग्दृष्टि इन देवोंमें कदापि नहीं उत्पन्न होते ॥ २० ॥
मरणके विराधित करनेपर, अर्थात् समाधिमरणके विना, कितने ही जीव देवदुर्गतियोंमें कन्दर्प, किल्विष, आभियोग्य और सम्मोह इत्यादि देव उत्पन्न होते हैं ॥ २०१॥
जो प्राणी सत्य वचनसे रहित हैं, नित्य ही बहुजनमें हास्य करते हैं और जिनका हृदय कामासक्त रहता है, वे कन्दर्पदेवोंमें उत्पन्न होते हैं ॥ २०२॥
जो भूतिकर्म, मंत्राभियोग और कौतूहलादिसे संयुक्त हैं, तथा लोगोंके गुणगान (खुशामद) में प्रवृत्त रहते हैं, वे वाहन देवोंमें उत्पन्न होते हैं ॥ २०३ ॥
१द ब सम्मुच्छ. २ द ब आवलिदसंखा. ३ द भवणादिवेसु. ४ द जायंते. ५ द ब हिंसं.
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