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तिदियो महाधियारो
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पंच य इंदियपाणा मणवचकायाणि आउआणपाणाई । पज्जत्ते दस पाणा इदरे मणवयणआणपाणूणा ॥ १८६ चउसण्णा ताओ भयमेहुणआहारगंथणामाणि । देवगढ़ी पंचक्खा तसकाया एक्करसजोगा ॥ १८७ च मण च वयणाई वेगुब्बदुगं तहेव कम्मइयं । पुरिसिथी संद्वणां सयलकसाएहिं परिपुण्णा ॥ १८८ सवे छण्णाणजूदा मदिसुदणाणाणि ओहिणाणं च । मदिअण्णाणं तुरिमं सुदअण्णाणं विभंगणाणं पि ॥ १८९ सच्चे अजदा विणजुत्ता यचक्खुचक्खोही । लेस्सा किण्हा णीला कउया पीता य मज्झिमंसजुदौ ॥ १९० भव्यभव्या एवं हि सम्मत्तेहिं सवणिदा सधे । उवसमवेद्गमिच्छासासैणमिस्साणि ते होंति ॥ १९१
णीय भवणदेवा हवंति आहारिणो अणाहारा | सायारणयायारा उवजोगा होंति सव्वाणं ॥ १९२ मज्झिमविसोहिसहिदा उद्यागद्सत्यपगिदिसँत्तिगदा । एवं गुणठाणादीजुत्ता देवा व होंति देवीओ ॥ १९३ | गुणठाणादी सम्मत्ता ।
सेढीअसंखभागो विंदंगुलपढमवग्गसूलहदो । भवणेसु एक्कसमए जायंति मरंति तम्मेत्ता ॥ १९४ । जम्मणमरणजीवाणं संखा समत्ता |
आनप्राण,
उपर्युक्त देवोंके पर्याप्त अवस्था में पांचों इन्द्रिय प्राण, मन, वचन, काय, आयु और ये दश प्राण तथा अपर्याप्त अवस्था में मन, वचन और श्वासोच्छ्वाससे रहित शेष सात प्राण होते हैं । १८६ ॥
उन देवोंके भय, मैथुन, आहार और परिग्रह नामक प्रसिद्ध चार संज्ञायें होती हैं । ये कुमारदेव देवर्गतिविशिष्ट; पंचेन्द्रिय; त्रसकायैसे संयुक्त; चारों मनोयोग, चारों वचनयोग, दो वैक्रियिक ( वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र ) तथा कार्मण, इसप्रकार ग्यारहैं योगोंसे सहित; नपुंसक वेदको छोड़ शेष पुरुष और स्त्री इन दो वदोंसे युक्त, सम्पूर्ण कषयोंसे परिपूर्ण; सब ही मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान, और विभंग, इन छह ज्ञान से सहित; सब असंयत; अचक्षुदर्शन, चक्षुदर्शन और अवधिदर्शन इन तीन दर्शनोंसे संयुक्त, कृष्ण, नील, कापोत और पीतके मध्यम अंशसे युक्त; भव्य एवं अभव्य तथा सभी औपशमिक, वेदक, मिथ्यात्व, सासादन और मिश्र इन पांच सम्यक्त्वोंसे समन्वित होते हैं ।। १८७-१९१ ॥
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भवनवासी देव "संज्ञी तथा आहर्रिक और अनाहारक होते हैं। इन सब देवोंके साकार ( ज्ञान ) और निराकार ( दर्शन ) ये दोनों ही उपयोग होते हैं ॥ १९२॥
वे देव मध्यम विशुद्धिसे सहित और उदयमें आई हुई प्रशस्त प्रकृतियोंकी अनुभाग-शक्तिको प्राप्त हैं । इसप्रकार गुणस्थानादिसे युक्त देवोंके समान ही देवियां होती हैं ॥ १९३ ॥ गुणस्थानादिका वर्णन समाप्त हुआ ।
घनांगुलके प्रथम वर्गमूलसे गुणित जगश्रेणी के असंख्यातवें भागप्रमाण जीव एक समय में भवनवासियोंम उत्पन्न होते हैं और इतने ही मरते हैं ॥ १९४ ॥
उत्पन्न होनेवाले व मरनेवाले जीवोंकी संख्या समाप्त हुई ।
१ द ब संहूणा. २ द ब असंजदाइंदंसणजुत्ता य चक्अचक्खोही. ३ द मज्झिमस्सजुदा, ब मज्झिमसजुदा. ४ ब एव्व हि. ५ ब सासासण. ६ द ब सव्वे. ७ द ब 'परिदि ८ द ब एवं गुणठाणजुत्ता देवं वा होइ देवीओ.
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