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________________ -३. १४६] तिदियो महाधियारो [ १२९ सेसाओ वण्णणाओ चउवणमज्झत्थचेत्ततरुसरिसा। छत्तादिछत्तपहुदीजदाण' जिणणाहपडिमाणं ॥ १४१) चमरिंदो सोहम्मे ईसदि वइरोयणो य ईसाणे । भूदाणंदे वेणू धरणाणंदम्मि वेणुधारि५त्ति ॥ १४१ एदे भट्ट सुरिंदा अण्णोणं बहुविहाभो भूदीओ। दट्टण मच्छरेणं ईसंति सहावदो केई ॥ १४२ ।इंदविभवो समत्तो। संखातीदा सेढी भावणदेवाण दसविकप्पाणं । तीए पमाणं सेढी बिंदंगुलपढ मूलहदा ॥ १४३ ।संखा समत्ता । रयणाकरेक्कउवमा चमरदुगे होदि आउपरिमाणं । तिण्णि पलिदोवमाणि भूदाणंदादिजुगलम्मि ॥१४४ बेणुदुगे पंचदलं पुण्णवसिढेसु दोणि पल्लाइं । जलपहुदिसेसयाणं दिवट्टपल्लं तु पत्तेकं ॥ १४५ सा १।१३।५।१२।प३ से १२ । अहवा उत्तरइंदेसु पुब्वभणिदं हुवेदि अदिरित्तं । पडिइंदादिचउण्णं भाउपमाणाणि इंदसमं ॥ १४६ छत्रके ऊपर छत्र इत्यादिकसे युक्त जिनेन्द्रप्रतिमाओंका शेष वर्णन चार वनोंके मध्यमें स्थित चैत्यवृक्षोंके सदृश जानना चाहिये ॥ १४० ॥ ___ चमरेन्द्र सौधर्मसे ईर्षा करता है, वैरोचन ईशानसे, वेणु भूतानन्दसे, और वेणुधारी धरणानन्दसे । इसप्रकार ये आठ सुरेन्द्र परस्पर नानाप्रकारकी विभूतियोंको देखकर मात्सर्यसे, व कितने ही स्वभावसे, ईर्षा करते हैं ॥ १४१-१४२ ॥ समाप्त हुआ। दश भेदरूप भवनवासी देवोंका प्रमाण असंख्यात जगश्रेणीरूप है। उसका प्रमाण धनांगुलके प्रथम वर्गमूलसे गुणित जगश्रेणीमात्र है ।। १४३ ॥ संख्या समाप्त हुई ॥ . चमरेन्द्र एवं वैरोचन इन दो इन्द्रोंकी आयुका प्रमाण एक सागरोपम, भूतानन्द एवं धरणानन्दयुगलकी आयुका प्रमाण तीन पल्योपम, वेणु एवं वेणुधारी इन दोकी आयुका प्रमाण पांचके आधे अर्थात् ढाई पस्योपम, पूर्ण एवं वशिष्ठकी आयुका प्रमाण दो पल्योपम, तथा जलप्रभ आदि शेष बारह इन्द्रों से प्रत्येककी आयुका प्रमाण डेढ़ पल्योपम है ॥ १४४-१४५॥ आयु- प्र. द्वि. इन्द्र. १ सागर, तृ. च. ३ पल्य, पं. ष. प., स. अ. २ प., शेष १२ इन्द्र ३ प. ___अथवा, उत्तर इन्द्रों (वैरोचन और धरणानन्दप्रभृति) की पूर्व में जो आयु कही गयी है वह कुछ अधिक होती है। प्रतीन्द्रादिक चार देवोंकी आयुका प्रमाण इन्द्रोंके समान है ॥ १४६ ।। १ दब 'सहस्सा. २ द ब जुदाणि. ३ ब ईसाणो. ४ ब ईसाणंदे. ५ व वेणुदारि. ६ द इंदविभवे. ७ द ब समत्ता. ८ दब पमाणसेढीविंदंगुणगार'. TP. 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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