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२ हस्तलिखित प्रतियोंका परिचय तिलोयपण्णत्तिका प्रस्तुत संस्करण निम्न उल्लिखित प्रतियोंके आधारसे तयार किया गया है
द-यह प्रति देहलीसे श्रीमान् पन्नालालजी अग्रवालने भेजने की कृपा की। इस प्रतिके मुखपृष्ठपर " दि. जै. सरस्वती भंडार धर्मपुरा दिल्ली लाला हरसुखराय शुगनचंदजी नंबर ८ (क) श्री नया मंदिरजी" ऐसा अंकित है । इसकी चौड़ाई लगभग ५३ इंच और लम्बाई लगभग १२ इंच है । यह पुराने कागजपर देवनागरी लिपिमें लिखी गई है। इस प्रतिकी पृष्ठसंख्याके क्रममें ११, १३, और १४, ये पृष्ठांक छूट गये हैं। किन्तु यह केवल लिपिकारके प्रमादका फल है क्यों कि यहां गाथाओंकी संख्या बराबर लगातार मिलती है । इसमें २०४ पत्र हैं। प्रत्येक पृष्ठपर १४ पंक्तियां और प्रत्येक पंक्तिमें लगभग ६० अक्षर हैं। प्रत्येक पत्रके एक पृष्ठपर मध्यमें और हांसियामें लाल स्याहीसे बड़ा गोलाकार खिचा हुआ है, और दूसरे पृष्ठपर केवल मध्यमें ही गोलाकार है। देखनेमें यह प्रति आगे वर्णित बंबईकी प्रतिसे प्राचीन मालूम होती है, और कई स्थानोंपर इसकी स्वतन्त्रता भी स्पष्ट है । सम्पूर्ण प्रति बहुत सावधानीसे लिखी हुई मालूम होती है । तो भी अनेक लिपिदोष तो मिलते ही हैं, जो कहीं कहीं दूसरे किसीके हाथोंसे सुधारे गये हैं। कहीं कहीं पडीमात्रा पद्धतिका उपयोग किया गया है। आरंभमें मंगल चिह्नके बाद प्रति निम्नप्रकार प्रारम्भ होती है- ॐ नमः सिद्धेभ्यः। कहीं कहीं सुधारे हुए कुछ अक्षर सम्भवतः पीछेसे कटिंग होनेसे कट गए हैं। कई पत्रोंपर नकशोंके लिये खुली जगह छोड़ी गई है, पर किसी कारणसे नकशे लिखे नहीं जा सके। एक स्थान पर मध्यमें १६ गाथायें छूट गई हैं, जो अन्तमें एक स्वतन्त्र पत्रपर लिखी गई हैं, और साथमें यह टिप्पण है-- ' इति गाहा १६ ( इस संस्करणमें अधिकार ४, २६२८ आदि) त्रैलोक्यप्रज्ञप्तिमी पश्चात् प्रक्षिप्ताः'। जहां जहां पाठ संक्षिप्त किय गये हैं, वहां उनका संकेत (०) दिखलाया गया है।
ब-यह प्रति (नं. १५ क.) श्री ऐल्लक पन्नालाल जैन सरस्वती भवन सुखानन्द धर्मशाला बंबई ४ के संग्रहकी है । यह प्रति देवनागरी लिपिमें देशी पुष्ट कागजपर काली स्याहीसे लिखी गई है तथा प्रारम्भिक व समाप्तिसूचक शब्दों, दण्डों, संख्याओं, हांसियाकी रेखाओं तथा यत्र तत्र अधिकारशीर्षकोंके लिये लाल स्याहीका उपयोग किया गया है । प्रति सुरक्षित रखी गई है
और हस्तलिपि सर्वत्र एकसी है। प्रति लगभग ६ इंच चौड़ी, १२३ इंच लंबी तथा लगभग २३ इंच मोटी है । इसके पत्रोंकी संख्या ३३९ है। प्रथम और अन्तिम पृष्ठ कोरे हैं। प्रत्येक पृष्ठपर १० पंक्तियां और प्रत्येक पंक्तिमें लगभग ४०-४५ अक्षर हैं। हांसियेपर शीर्षक हैं ' त्रैलोक्यप्रज्ञप्ति ।। मंगल चिह्नके पश्चात् प्रतिके प्रारम्भिक शब्द हैं 'ॐ नमः सिद्धेभ्यः ' तथा अन्तिम पुष्पिका ३३३ वें पत्रपर है 'तिलोयपण्णत्ती सम्मत्ता'। इसके पश्चात् संस्कृत में एक लंबी प्रशस्ति है, जिसकी पुष्पिका निम्नप्रकार है- इति श्रीजिनचन्द्रोन्तवासिना पाण्डतमिधोवना विर
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