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________________ १२० ] तिलोयपण्णत्ती [ ३.७४ अडवीसं छब्बीसं छच सहस्वाणि चमरतियम्मि । आदिमपरिसाए सुरा सेसे पत्तेक्कच सहस्सा णिं ॥ ७४ २८००० | २६०००। ६०००। सेसे १७ । ४००० । तीसं अट्ठावीसं अट्ठ सहस्त्राणि चमरतिदयम्मि । मज्झिमपरिसाए सुरा सेसेसुं छस्सहस्साणि ॥ ७५ ३०००० | २८००० । ८०००। सेसे १७ । ६००० । बत्तीसं तीसं दस होंति सहस्साणि चमरतिदयम्मि । बाहिरपरिसाए सुरा भट्ट सहस्त्राणि सेसेसु ॥ ७६ ३२००० । ३०००० । १०००० । सेसे १७ । ८००० । सत्ताणीयं होंति हु पत्तेकं सत्त सत्त कक्खजुदा । पढमं ससमाणसमा तद्दुगुणा चरमकक्वंतं ॥ ७७ असुरम्मि महिसतुरगा रहकरिणो तह पदातिगंधव्वो । णचणया एदाणं महत्तरा छ महत्तरी एक्का ॥ ७८ ।७। णावा गरुडगदा मरुट्ठा वैग्गिसीहसिविकस्सा । णागादीणं पढमाणीया बिदियाय असुरं वा ॥ ७९ चमरादिक तीन इन्द्रोंके आदिम पारिषद क्रमसे अट्ठाईस हजार, छब्बीस हजार और छह हजारप्रमाण, तथा शेष इन्द्रोंमेंसे प्रत्येकके चार हजारमात्र होते हैं ॥ ७४ ॥ आदिम पारिषद— चमर २८०००, वैरोचन २६०००, भूतानंद ६०००, शेष सतरह ४००० | चमरादिक तीन इन्द्रोंके मध्यम पारिषद देव क्रमसे तीस हजार, अट्ठाईस हजार और आठ हजार, तथा शेष इन्द्रोंमेंसे प्रत्येकके छह हजारमात्र होते हैं ।। ७५ ॥ म पारिषद- - चमर ३००००, वैरोचन २८०००, भूतानंद ८०००, शेष सत्तरह ६००० । चमरादिक तीन इन्द्रोंके क्रमसे बत्तीस हजार, तीस हजार, और दश हजार, तथा शेष इन्द्रों से प्रत्येक आठ हजारप्रमाण बाह्य पारिषद देव होते हैं ॥ ७६ ॥ चमर ३२०००, वैरोचन ३००००, भूतानंद १००००, शेष बा. पारिषदसत्तरह ८००० । सात अनीकों से प्रत्येक अनीक सात सात कक्षाओंसे युक्त होती है । उनमें से प्रथम कक्षाका प्रमाण अपने अपने सामानिक देवोंके बराबर, तथा इसके आगे अन्तिम कक्षातक उत्तरोत्तर प्रथम कक्षासे दूना दूना प्रमाण होता गया है ॥ ७७ ॥ असुरकुमारों में महिष, घोडा, रथ, हाथी, पादचारी, गन्धर्व और नर्तकी, ये सात अनीक होती हैं। इनमेंसे आदिकी छह अनीकोंमें छह महत्तर ( प्रधान देव ) और अन्तिम अनीकमें एक महत्तरी ( प्रधान देवी ) होती है ॥ ७८ ॥ नागकुमारादिकोंके क्रमसे नाग, गरुड, गजेन्द्र, मगर, ऊंट, गेंडा, सिंह, शिविका और ये प्रथम अनीक होती हैं। शेष द्वितीयादि अनीकें असुरकुमारोंके ही समान होती हैं ॥ ७९ ॥ अश्व, - १ द परिमाण. २ ब रहकरणो. Jain Education International ३ द खग्ग. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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