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________________ -३. ७३ ] तिदिओ महाधियारो बाहिरमज्झब्भंतरतंडयसरिसा हेवंति तिप्परिसा । सेणोवमा यणीया पइण्णया पुरिजणसरिच्छा ॥६७ : .. परिवारसमाणा ते अभियोगसुरा हवंति किब्बिसया । पाणोवमाणधारी देवाणिंदस्स णादव्वं ॥ ६८ इंदसमा पडिइंदा तेत्तीससुर। हवंति तेत्तीसं । चमरादीइंदाणं पुह पुह सामाणिया इमे देवा ॥ ६९ चउसटि सहस्साणिं छट्ठी छप्पण्ण चमरतिदयम्मि । पण्णास सहस्साणि पत्तेकं होंति सेसेस ॥ ७० ६४०००। ६०००० । ५६००० । सेसे १७ । ५००००। पत्तेकइंदयाणं सोमो यमवरुणधणदणामा य । पुवादिलोयपाला हवंति चत्तारि चत्तारि ॥७॥ छप्पण्णसहस्साधियबेलक्खा होति चमरतणुरक्खा । चालसहस्सब्भहिया बे लक्खा बिदियइंदम्मि ॥ ७२ चउवीससहस्साधियलक्खद्गं तदियइंदतणुरक्खा । सेसेसु पत्तेकं णादव्वा दोणि लक्खाणि ॥ ७३ २५६००० । २४०००० । २२४००० । सेसे १७ । २०००००। राजाकी बाह्य, मध्य और अभ्यन्तर समितिके समान देवोंमें भी तीन प्रकारकी परिषद् होती हैं। इन तीनों परिषदोंमें बैठने योग्य देव क्रमशः बाह्य परिषद, मध्यम परिषद और अभ्यन्तर परिषद कहलाते हैं । अनीक देव सेनाके तुल्य और प्रकीर्णक देव पौर जन अर्थात् प्रजाके सदृश होते हैं । ६७ ॥ वे आभियोग्य जातिके देव दासके समान और किल्विषिक देव चण्डालकी उपमाको धारण करनेवाले हैं । इसप्रकार यह देवोंके इन्द्रका परिवार जानना चाहिये ॥ ६८ ॥ प्रतीन्द्र इन्द्रके बराबर, और त्रायस्त्रिंश देव तेतीस होते हैं । चमर-वैरोचनादिक इन्द्रोंके सामानिक देवोंका प्रमाण पृथक् पृथक् निम्नग्रकार समझना चाहिये ॥ ६९ ॥ चमरादिक तीन इन्द्रोंके सामानिक देव क्रमशः चौंसठ हजार, साठ हजार, और छप्पन हजार होते हैं। इसके आगे शेष सत्तरह इन्द्रों से प्रत्येकके पचास हजारप्रमाण सामानिक देव होते हैं ॥ ७० ॥ सामानिक- चमर ६४०००, वैरोचन ६००००, भूतानंद ५६०००, शेष सत्तरह ५००००। प्रत्येक इन्द्रके पूर्वादिक दिशाओंके रक्षक क्रमसे सोम, यम, वरुण और धनद (कुवेर) नामक चार चार लोकपाल होते हैं ॥ ७१ ॥ चमरेन्द्र के तनुरक्षक देव दो लाख छप्पन हजार, और द्वितीय इन्द्रके दो लाख चालीस हजार होते हैं ॥ ७२ ॥ तनुरक्षक-चमर २५६०००, वैरोचन २४०००० । तीसरे इन्द्रके तनुरक्षक देव दो लाख चौबीस हजार, और शेष इन्द्रोंमेंसे प्रत्येकके दो लाखप्रमाण जानना चाहिये । ७३ ॥ तनुरक्षक-- भूतानंद २२४०००, शेष सत्तरह २०००००। . . . १६ हुवंति. २ द हुवंति.. ३ द ब माणाधीरी. ४ द हुवंति. ५ ब तदियतणु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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