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________________ तिदियो महाधियारो [१२१ गच्छसमे गुणयारे परप्परं गुणिय रूवपरिहोणे । एक्कोणगुणविहसे गुणिदे वयणेण गुणगणिदं ॥८. . एक्कासीदी लक्खा अडवीससहस्ससंजुदा चमरे । होति हु महिसाणीया पुह पुह तुरयादिया वि तम्मेत्ता ॥८॥ ८१२८०००। तिटाणे सुण्णाणि छण्णवअडछक्कपंचअंककमे। चमरिंदस्स' य मिलिदा सत्ताणीया हवंति इमे ॥ ८२ ५६८९६०००। छाहत्तरि लक्खाणि वीससहस्साणि होति महिसाणं । वइरोयणम्मि इंदे पुह पुह तुरगादिगो वि तम्मेत्ता ॥ ८३ ७६२००००। चउठाणेसु सुण्णा चउतितिपंचक एव मालाए । वइरोयणस्स मिलिदा सत्ताणीया इमे होति ॥ ८४ ५३३४००००। एकत्तरि लक्खाणिं णावाओ होंति बारससहस्सा । भूदाणंदे पुह पुह तुरंगप्पहुदीणि तम्मेत्ता ॥ ८५ ७११२०००। गच्छके बराबर गुणकारको परस्परमें गुणा करके प्राप्त गुणनफलमेंसे एक कम करके शेषमें एक कम गुणकारका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उसको मुखसे गुणा करनेपर गुणसंकलित धनका प्रमाण आता है ॥ ८०॥ उदाहरण---गच्छका प्रमाण ७, गुणकारका प्रमाण २, और मुखका प्रमाण ६४००० है। २४२ x २x२x२x२x२ - १ (२-१)४ ६४००० = ८१२८००० चमरेन्द्रकी महिषानीक। ___ चमरेन्द्रके इक्यासी लाख अट्ठाईस हजार महिष सेना, तथा पृथक् पृथक् तुरगादिक भी इतने ही होते हैं ॥ ८१ ॥ ८१२८००० । तीन स्थानोंमें शून्य, छह, नौ, आठ और पांच, इन अंकोंके क्रमसे, अर्थात् पांच करोड़ अडसठ लाख छयानबै हजार, यह चमरेन्द्रकी सातों अनीकोंका सम्मिलित प्रमाण होता है ।। ८२ ॥ ५६८९६००० ।। वैरोचन इन्द्रके व्यत्तर लाख, बीस हजार महिष, और पृथक् पृथक् तुरगादिक भी इतने ही होते हैं ॥ ८३ ॥ ७६२०००० । चार स्थानोंमें शून्य, चार, तीन, तीन और पांच, इन अंकोंके क्रमशः मिलानेपर जो संख्या हो, इतनेमात्र वैरोचन इन्द्रके मिलकर ये सात अनीक होती हैं ॥ ८४ ॥ ५३३४०००० । भूतानन्दके इकहत्तर लाख बारह हजार नाग, और पृथक् पृथक् तुरगादिक भी इतने ही होते हैं ॥ ८५ ॥ ७११२००० । ___ १ ब परिहीणो. २ द चमरिंदयस्स. ३ ब पुहपुहउरग . TP. 16 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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