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________________ तिलोयपण्णत्ती [ ३. २६ बहलते तिसयाणि संखासंखेजजोयणा वासे । संखेज्जरुंदभवणेसु भवणदेवा वसति संखेजा ॥ २६ (संखातीदा सेयं छत्तीससुरा' य होदि संखेजा (?)। भवणसरूवा एदें वित्थारा होइ जाणिज्जो ॥२७ ।भवणवण्णणं सम्मत्तं । तेसिं चउसु दिसासुं जिणदिट्ठपमाणजोयणे गंता । मज्झम्मि दिव्ववेदी पुह पुह वेटेदि एक्केका ॥ २८ दो कोसा उच्छेहा वेदीणमकडिमाण सव्वाणं। पंचसयाणि दंडा वासो वरस्यणछण्णाणं ॥ २९ . गोउरदारजुदाओ उवरिम्म जिणिंद गेहसहिदाओ। भवणसुररक्खिदाओ वेदीओ ताओ सोहंति ॥ ३० तब्बाहिरे असोयंसत्तच्छदचंपचूदवण पुण्णा । णियणाणातरुजुत्ता चेटुंति चेत्ततरूसहिदा ॥ ३१ चेत्तदुमत्थलरुंद दोणि सया जोयणाणि पण्णासा। चत्तारो मञ्झम्मि य अंते कोसद्धमुच्छेहो ॥ ३२ रा २५० ये भवन बाहल्यमें ( उंचाईमें ) तीनसौ योजन, और विस्तारमें संख्यात व असंख्यात योजनप्रमाण होते हैं। इनमेंसे संख्यात योजन विस्तारवाले भवनोंमें संख्यात, और शेष असंख्यात योजन विस्तारवाले भवनोंमें असंख्यात भवनवासी देव रहते हैं [ ? ] ऐसा भवनोंका स्वरूप और विस्तार जानना चाहिये ॥ २६-२७ ॥ भवनोंके विस्तारका कथन समाप्त हुआ। .. उन भवनोंकी चारों दिशाओंमें जिनभगवान्से उपदिष्ट योजनप्रमाण जाकर एक एक दिव्य वेदी ( कोट ) पृथक पृथक उन भवनोंको मध्यमें वेष्टित करती है ॥ २८ ॥ उत्तमोत्तम रत्नोंसे व्याप्त इन सब अकृत्रिम वेदियोंकी उंचाई दो कोस और विस्तार पांचसौ धनुषप्रमाण होता है ॥ २९ ॥ गोपुरद्वारोंसे युक्त और उपरिम भागमें जिनमन्दिरोंसे सहित वे वेदियां भवनवासी देवोंसे रक्षित होती हुई सुशोभित होती हैं ॥ ३० ॥ वेदियोंके बाह्य भागमें चैत्यवृक्षोंसे सहित और अपने नाना वृक्षोंसे युक्त पवित्र अशोक वन, सप्तच्छदवन, चंपकवन और आम्रवन स्थित हैं ॥ ३१ ॥ चैत्यवृक्षोंके स्थलका विस्तार दोसौ पचास योजन, तथा उचाई मध्यमें चार योजन और अन्तमें अर्ध कोसप्रमाण होती है ॥ ३२ ॥ १ [ सेसच्छत्तीस ]. २ ब एदो. ३ द ब सम्मत्ता. ४ द ब भवणासुरतक्सिदाओ वेदीणं तेसु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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