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________________ - ३.२५ ] तिदियो महाधियारो [ ११३ ३४००००० | ४४००००० । ३८००००० | ४०००००० | ४०००००० | ४०००००० । ४०००००० । ४०००००० | ४०००००० | ५०००००० । ३०००००० । ४०००००० | ३४००००० । ३६००००० | ३६००००० | ३६००००० । ३६००००० । ३६००००० | ३६००००० । ४६००००० । भवणा भवणपुराणि आवासा अ सुराण होदि तिविद्दा णं । रण पहाए भवणा दीवसमुद्दाण उवरि भवणपुरा ॥ २२ दहसेलदुमादीणं रम्माणं उवरि होंति आवासा । णागादीणं केसिं तियणिलया भवणमेक्कमसुराणं ॥ २३ । भर्वणवण्णणा सम्मत्ता । अप्पमहाद्वियमज्झिमभावणदेवाण होंति भवणाणि । दुगवादालसहस्सा लक्खमधोधो खिदीय गंताड ॥ २४ २००० । ४२००० | १००००० । अप्पमहद्धियमज्झिमभावणदेवाण वासवित्थारों । समचउरस्सा भवणा वज्जामयद्दारछजिया सव्वे ॥ २५ चमर ३४०००००, भूतानंद ४४०००००, वेणु ३८०००००, पूर्ण ४००००००, जलप्रभ ४००००००, घोष ४००००००, हरिषेण ४००००००, अमितगति ४००००००, अग्निशिखी ४००००००, वेलंब ५००००००, वैरोचन ३००००००, धरणानंद ४००००००, वेणुधारी ३४०००००, वसिष्ठ ३६०००००, जलकान्त ३६०००००, महाघोष ३६०००००, हरिकान्त ३६०००००, अमितवाहन ३६०००००, अग्निवाहन ३६०००००, प्रभंजन ४६०००००। भवनवासी देवोंके निवास स्थान भवन, भवनपुर और आवासके भेदसे तीन प्रकार होते हैं । इनमेंसे रत्नप्रभा पृथिवीमें स्थित निवासस्थानोंको भवन, द्वीप समुद्रोंके ऊपर स्थित निवासस्थानोंको भवनपुर, और रमणीय तालाब, पर्वत तथा वृक्षादिकके ऊपर स्थित निवासस्थानोंको आवास कहते हैं । नागकुमारादिक देवोंमेंसे किन्हीं के तो भवन, भवनपुर और आवासरूप तीनों ही तरहके निवासस्थान होते हैं, परन्तु असुरकुमारों के केवल एक भवनरूप ही निवासस्थान होते हैं ॥ २२-२३ ॥ भवनों का वर्णन समाप्त हुआ । अल्पर्द्धिक, महर्द्धिक और मध्यम ऋद्धिके धारक भवनवासी देवोंके भवन क्रमशः चित्रां पृथिवीके नीचे नीचे दो हजार, ब्यालीस हजार और एक लाख योजनपर्यंत जाकर हैं ॥ २४ ॥ - महर्द्धिक ४२०००, मध्य. १०००० । अल्पर्द्धिक २०००, अब अल्पर्द्धिक, महर्द्धिक और मध्यम ऋद्धिके धारक भवनवासी देवोंके निवासस्थानोंका विस्तार कहा जाता है । ये सब भवन समचतुष्कोण तथा वज्रमय द्वारोंसे शोभायमान हैं ॥ २५ ॥ १ द भुवण २ द व णिवासखेत्तवि. TP. 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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