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तिलोय पण्णत्ती
[ ३.१४
पढमो हु चमरणामो इंदो वइरोयणो त्ति बिदिओ य । भूदाणंदो धरणाणंदो वेणू ये वेणुधारी य ॥ १४ “ पुण्णव सिट्ठजलप्पह जलकंता तह य घोसमहघोसा । हरिसेणो हरिकंतो अमिदगदी अमिदवाहणग्गिसिही ॥ १५ अग्गीवाहणणामो वेलंबपभंजणाभिधाणा य । एढे असुर पहुदिसु कुलेसु दोद्दो कमेण देविंदा ॥ १६
| इंदाण णाम सम्मता ।
दक्खिदा चमरो भूदाणंदो य वेणुपुण्णा य । जलपहघोसा हरिसेणामिदगदी अग्गिसिहिवेलंबा ॥ १७ वइरोणो य धरणाणंदो तह वेणुधार भैवसिद्वा । जलकंतमहाघोसा हरिकंता अमिदअग्गिवाहणया ॥ १८ तह य पभंजणणामो उत्तरइंदा हवंति दह एदे । अणिमादिगुणेहि हुँदा मणिकुंडलमंडियकवोला । १९
| दक्खिणउत्तरइंदा गढ़ा ।
चउतीसं" चउदाल अट्ठत्तीसं हवंति लक्खाणि । चालीसं छट्टाणे तत्तो पण्णासलक्खाणि ॥ २० तीसं चालं चउती ं छस्सु वि ठाणेसुं छत्तीसं । छत्तालं चरिमम्मि य इंदाणं भवणलक्खाणि ॥ २१
असुरकुमारोंमें प्रथम चमर नामक और दूसरा वैरोचन इन्द्र, नागकुमारोंमें भूतानन्द और धरणानन्द, सुपर्णकुमारोंमें वेणु और वेणुधारी, द्वीपकुमारोंमें पूर्ण और वशिष्ठ, उदधिकुमारोंमें जलप्रभ और जलकान्त, स्तनितकुमारोंमें घोष और महाघोष, विद्युत्कुमारों में हरिषेण और हरिकान्त, दिक्कुमारोंमें अमितगति और अमितवाहन, अग्निकुमारोंमें अग्निशिखी और अग्निवाहन, वायुकुमारोंमें वेलम्ब और प्रभंजन नामक, इसप्रकार ये दो दो इन्द्र क्रमसे उन असुरादिक निकायोंमें होते हैं ॥ १४-१६ ॥
इन्द्रोंके नामोंका कथन समाप्त हुआ ।
चमर, भूतानन्द, वेणु, पूर्ण, जलप्रभ, घोष, हरिषेण, अमितगति, अग्निशिखी और वेलंब, ये दश दक्षिण इन्द्र; तथा वैरोचन, धरणानन्द, वेणुधारक, वशिष्ठ, जलकान्त, महाघोष, हरिकान्त अमितवाहन, अग्निवाहन और प्रभंजन नामक, ये दश उत्तर इन्द्र हैं । ये सब इन्द्र अणिमादिक ऋद्धियोंसे युक्त और मणिमय कुण्डलोंसे अलंकृत कपोलोंको धारण करनेवाले हैं || १७-१९ ॥
दक्षिण उत्तर इन्द्रोंका वर्णन समाप्त हुआ ।
चौंतीस लाख, चवालीस लाख, अडतीस लाख, छह स्थानोंमें चालीस लाख, इसके आगे पचास लाख, तीस लाख, चालीस लाख, चौंतीस लाख, छह स्थानों में छत्तीस लाख, और अन्त में छ्यालीस लाख, इसप्रकार क्रमशः उन दक्षिण इन्द्र और उत्तर इन्द्रोंके भवनों की संख्याका प्रमाण है ॥ २०-२१ ॥
१ द वेणु व. २ ब वइरो अण्णो. ३ ब वेणुदारअ ४ द अणिमादिगुणे जुदा, ब अणिमादिगुणे. जुत्ता ५ द चोत्तीसं. ६ द ब छसु वि ठाण.
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