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________________ -२. ३६७ ] बिदुओ महाधियारो [१०९ लज्जाए चत्ता मयणेण मत्ता तारुण्णरत्ता परदारसत्ता । रत्तीदिण मेहुणमाचरंता पार्वति दुक्खं णिरएसु घोरं॥ ३६५ पुत्ते कलत्ते सजणम्मि मित्ते जे जीवणथं परवंचणेणं । ते तिण्णा दविणं हरते ते तिव्वदुक्खे णिरयम्मि जति ॥ ३६६ । संसारण्णवमहणं तिहुवणभव्वाण पेम्मसुंहजणणं । संदरिसियसयलटुं संभवदेवं णमामि तिविहेण ॥ ३६७ एवमाइरियपरंपरागयतिलोयपण्णत्तीए णारयलोयसरूवणिरूवणपण्णत्ती णाम बिदुभो महाधियारो सम्मत्तो ॥ २ ॥ ) लज्जासे रहित, कामसे उन्मत्त, जवानीमें मस्त, परस्त्रीमें आसक्त, और रात-दिन मैथुनका सेवन करनेवाले प्राणी नरकोंमें जाकर घोर दुःखको प्राप्त करते हैं ॥ ३६५ ॥ पुत्र, स्त्री, स्वजन और मित्रके जीवनार्थ जो लोग दूसरोंको ठगकर तृष्णाको बढ़ाते हैं, तथा परके धनको हरते हैं, वे तीव्र दुखको उत्पन्न करनेवाले नरकमें जाते हैं ॥ ३६६ ॥ संसारसमुद्रका मथन करनेवाले ( वीतराग ), तीनों लोकोंके भव्य जनोंको धर्मप्रेम और सुखके दायक (हितोपदेशक ), और सम्पूर्ण पदार्थोके यथार्थ स्वरूपको दिखलानेवाले (सर्वज्ञ ), ऐसे सम्भवनाथको मैं मन, वचन और कायसे नमस्कार करता हूं ॥ ३६७ ॥ इसप्रकार आचार्यपरंपरागत त्रिलोक-प्रज्ञप्तिमें नारकलोकस्वरूप-निरूपणप्रज्ञप्तिनामक द्वितीय महाधिकार समाप्त हुआ ॥२॥ १ द पेमसुह. २ द समत्तो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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