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________________ -२. ३२४] बिदुओ महाधियारो [१०३ दट्टण मयसिलंबं जह वग्यो तह पुराणणेरइया । णवणारयं णिसंसा णिम्भच्छता पधावंति ॥ ३१६ साणगणा एकेके दुक्खं दावंति दारुणपयारं । तह अण्णोण्णं णिचं दुस्सहपीडादि कुम्वति ॥ ३१७ चक्सरसूलतोमरमोग्गरकरवत्तकोतसूईण । मुसलासिप्पहुदीणं वणणगदावाणलादीण ॥ ३१८ वयवग्घतरच्छसिगालसाणमज्जालसीहपहुदीणं । अण्णोण्णं चसदा ते णियणियदेहं विगुम्वति ॥ ३१९ गहिरबिलधूममारुदअइतत्तकहालिजंतचुल्लीणं । कंडणिपीसणिदवीण रूवमण्णे विकुवंति ॥ ३२० सूवरवणग्गिसोणिदकिमिसरिदहकूववाइपहुदीणं । पुहपुहुरूवविहीणा णियणियदेहं पकुवंति ॥ ३२१ पुच्छिय पलायमाणं णारइयं वग्धकेसरिप्पहुदी। वजमयवियलतोंडा कत्थवि भक्खंति रोसेण ॥ ३२२ पीलिजते केई जंतसहस्सेहि विरसविलवंता । अण्णे हम्मति तहिं भवरे छेजति विविहभंगीहि ॥ ३२३ अण्णोणं बझंते वजोवमसंखलेहि थंभेसु । पजलिदम्मि हुदासे केई छुब्भंति दुप्पिच्छे ॥३२४ जिसप्रकार दुष्ट व्याघ्र मृगके बच्चेको देखकर उसके ऊपर टूट पड़ता है, उसीप्रकार क्रूर पुराने नारकी उस नवीन नारकीको देखकर धमकाते हुए उसकी ओर दौडते हैं ॥ ३१६ ॥ जिसप्रकार कुत्तोंके झुंड एक दूसरेको दारुण दुख देते हैं, उसीप्रकार नारकी नित्य ही परस्पर दुस्सह पीड़ादिक किया करते हैं ॥ ३१७ ॥ वे नारकी जीव चक्र, बाण, शूली, तोमर, मुद्गर, करोंत, भाला, सुई, मूसल और तलवार इत्यादिक शस्त्रास्त्र; वन एवं पर्वतकी आग, तथा भेडिया, व्याघ्र, तरक्ष, शृगाल, कुत्ता, बिलाव और सिंह, इन पशुओंके अनुरूप परस्परमें सदैव अपने अपने शरीरकी विक्रिया किया करते हैं ।। ३१८-१९॥ अन्य नारकी जीव गहरा बिल, धुआं, वायु, अत्यन्त तपा हुआ खप्पर, यंत्र, चूल्हा, कण्डनी (एक प्रकारका कूटनेका उपकरण ), चक्की और दर्वी ( वी ), इनके आकाररूप अपने अपने शरीरकी विक्रिया करते हैं ॥ ३२० ॥ उपर्युक्त नारकी शूकर, दावानल तथा शोणित और कीड़ोंसे युक्त सरित् , द्रह, कूप और वापी आदिरूप पृथक् पृथक् रूपसे रहित अपने अपने शरीरको विक्रिया किया करते हैं । तात्पर्य यह कि नारकियोंके अपृथक् विक्रिया होती है, देवोंके समान उनके पृथक् विक्रिया नहीं होती ।। ३२१ ॥ ___वज्रमय विकट मुखवाले व्याघ्र और सिंहादिक, पीछेको भागनेवाले अन्य नारकीको कहींपर भी क्रोधसे खा डालते हैं ॥ ३२२ ॥ कोई नारकी जीव विरस विलाप करते हुए हजारों यंत्रों ( कोल्हुओं) से पेले जाते हैं। दूसरें नारकी जीव वहींपर हने जाते हैं, और इतर नारकी विविध प्रकारोंसे छेदे जाते हैं ॥३२३॥ कोई नारकी परस्परमें एक दूसरेके द्वारा वज्रतुल्य सांकलोंसे खंभोंसें बांधे जाते हैं, और कोई अत्यन्त जाज्वल्यमान दुष्प्रेक्ष्य अग्निमें फेंके जाते हैं ॥ ३२४ ॥ - १ द व धावंति. २ द कुंतसुईणं. ३ द ब 'दावाणणादीणं.. ४ दर पसूर्ण. ५ द अण्णा ६ २ जंतच्चूलीणे. ७ द कूववाव . ८ द तुंडो खत्यवि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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