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________________ १०२] तिलोय पण्णत्ती पणकोसवासजुत्ता होंति जद्दण्णम्हि जम्मभूमीश्रो । जेट्टे चउस्सैयाणिं दहपण्णरसं च मज्झिमए ॥ ३०९ ५ । ४०० । १० । १५ । जम्मणखिदीण उदयाणियणियरुंदाणि पंचगुणिदाणि । सत्ततिदुगेक्ककोणां पणकोणा होंति एदाभो ॥ ३१० २५ | २००० | ५० । ७५ । एक दुति पंच सत्त य जम्मणखेत्तेसु दारकोणाणि । तेत्तियमेत्ता दारा सेढीबद्धे पइण्णए एवं ॥ ३११ तिहारतिकोणाओ इंदयणिरयाण जम्मभूमीओ । णिचंधयारबहुला कत्थुरिहिंतो अनंतगुणो ॥ ३१२ । जम्मणभूमी गदा । पावेणं णिरयबिले जादूणं ता मुहुत्तगंमेत्ते । छप्पज्जत्ती पात्रिय आकस्तियभयजुदो होदि ॥ ३१३ भीदीए कंपमाणो चलितुं दुक्खेण पट्टिभो संतो । छत्तीसाउहमज्झे पडिदूर्ण तत्थ उप्पलइ ॥ ३१४ उच्छे हज यणाणि सत्त धणू छस्लहस्सपंचसया । उप्पलइ पढमखेत्ते दुगुणं दुगुणं कमेण सेसेसु ॥ ३१५ जो ७, ध ६५०० । उपर्युक्त जन्मभूमियों का विस्तार जघन्यरूपसे पांच कोस, उत्कृष्टरूपसे चार सौ कोस और मध्यमरूपसे दश-पन्द्रह को प्रमाण है ॥ ३०९ ॥ जन्मभूमियोंका ज. विस्तार को. ९; उ. वि. को. ४००, म. वि. को. १०-१५ जन्मभूमियोंकी उंचाई अपने अपने विस्तारकी अपेक्षा पांचगुणी है । ये जन्मभूमियां सांत, तीन, दो, एक और पांच कोनवाली हैं ॥ ३१० ॥ ७५ । ज. भू. की ज. उंचाई को. २५, उ. उंचाई २०००; म. उं. ५० जन्मभूमियों में एक, दो, तीन, पांच और सात द्वार कोन और इतने ही दरवाजे होते हैं ! इस प्रकारकी व्यवस्था केवल श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक बिलोंमें ही है ॥ ३११ ॥ [२.३०९ - इन्द्रक बिलों में ये जन्मभूमियां तीन द्वार और तीन कोनोंसे युक्त हैं । उक्त सबही जन्म भूमियां नित्य ही कस्तूरीसे अनन्तगुणित काले अन्धकारसे व्याप्त हैं || ३१२ ॥ इसप्रकार जन्मभूमियों का वर्णन समाप्त हुआ । नारकी जीव पापसे नरकबिलमें उत्पन्न होकर और एक मुहूर्तमात्र कालमें छह पर्याप्तियों को प्राप्त कर आकस्मिक भयसे युक्त होता है ॥ ३१३ ॥ 11 पश्चात् वह नारकी जीव भयसे कांपता हुआ बड़े कष्टसे चलनेकेलिये प्रस्तुत होकर और छत्तीस आयुधों के मध्य में गिरकर वहांसे उछलता है ॥ ३१४ ॥ प्रथम पृथिवीमें जीव सात उत्सेध योजन और छह हजार पांचसौ धनुषप्रमाण ऊपर उछलता है, इसके आगे शेष पृथिवियोंमें उछलनेका प्रमाण क्रमसे उत्तरोत्तर दूना दूना है ॥ ३१५ ॥ यो० ७, ६० ६५०० । Jain Education International १ द चउत्सयणि २ द ब कोणे. ३ द ब 'णिरयाणि ४ द ताममुत्तणं मेत्ते, बता मुहुत्तणं मेत्ते. ५. दु. भयजुदा. ६ न होंदि. ७ द पविओ, ब पच्चिओ. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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