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________________ ९०] तिलोयपणती [२.२२७ बाणासणाणि छ चिय दो हत्था तेरसंगुलाणि पि । वळसणामपडले उच्छेहो पढमढवीए ॥ २२० द६,६२, १३।। सत्त य सरासणाणिं अंगुलया एकवीसपम्वद्धं । पडलम्मि य उच्छेहो होदि अवकतणामम्मि ॥ २२० दं७, २१ भा | सत्त विसिखासणाणि हत्थाई तिण्णि छच्च अंगुलयं । चरमिंदयम्मि उदो विकंते पढमपुढवीए ॥ २२९ दं, ह ३, ६ । दो हत्था वीसंगुल एक्कारसभजिददो वि पन्वाई । एयाई वड्डीमो मुहसहिदी होति उच्छेहो ॥ २३० ह २, २० भा २ अट्ट विसिहोसणाणि दो हत्था अंगुलाणि चउवीस । एक्कारसभजिदाई उदवो पुण बिदियवसुहाए ॥ २३१ दह२,२४ णव दंडा बावीसंगुलाणि एक्कारसम्मि चउपव्वं । भजिदामो सो भागो बिदिए बसहाय उच्छेहो ॥ २३२ दं ९, २२ भा | प्रथम पृथिवीके वक्रान्त नामक पटलमें शरीरका उत्सेध छह धनुष, दो हाथ और तेरह अंगुल है ॥ २२७ ॥ वक्रान्त प. में दं. ६, ह. २, अं. १३. अवक्रान्त नामक पटलमें सात धनुष, और साढ़े इक्कीस अंगुलप्रमाण शरीरका उत्सेध है ॥ २२८ ।। अवक्रान्त प. में दं. ७, अं. २१३. प्रथम पृथिवीके विक्रान्त नामक अन्तिम इन्द्रकमें शरीरका उत्सेध सात धनुष, तीन हाथ और छह अंगुल है ॥ २२९ ॥ विक्रान्त प. में दं. ७, ह. ३ अं. ६. वंशा पृथिवीमें दो हाथ, बीस अंगुल और ग्यारहसे भाजित दो भागप्रमाण प्रत्येक पटलमें वृद्धि होती है। इस वृद्धिको मुख अर्थात् प्रथम पृथिवीके उत्कृष्ट उत्सेधप्रमाणमें उत्तरोत्तर मिलाते जानेसे क्रमशः द्वितीय पृथिवीके प्रथमादि पटलोंमें उत्सेधका प्रमाण निकलता है ॥ २३० ॥ ह. २, अं. २०३३. द्वितीय पृथिवीके ( स्तनक नामक प्रथम इन्द्रको ) नारकियोंके शरीरका उत्सेध आठ धनुष, दो हाथ और ग्यारहसे भाजित चौबीस अंगुलप्रमाण है ॥ २३१ ॥ स्तनक प. में दं. ८, ह. २, अं. २१. दूसरी पृथिवीके ( तनक नामक द्वितीय पटलमें ) नौ धनुष, बाईस अंगुल और ग्यारहसे भाजित चार भागप्रमाण शरीरका उत्सेध है ॥ २३२ ॥ तनक प. में दं. ९, अं. २२१४. १ द ब °सहिदे. २ द अट्ठ विहासणाणि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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