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-२..१०४]
बिद्धयो महाधियारो संखेजरंदसंजुदणिरयबिलाणं जहण्णविद्यालं' । छक्कोसा तेरिच्छे उकस्से दुगुणिदौ तेपि ॥ १००
णिरयबिलाणं होदि हमसंखरुंदाण भवरविञ्चालं । जोयणसत्तसहस्सा उक्कस्से तं असंखेज्जा ॥ १०१
उत्तपइण्णयमझे होति हु बहुवो असंखवित्थाएँ । संखेजवासजुत्ता थोवा होरा तिमिरजुता ॥ १०२ सगसगपुढविगयाण संखासंखेजरंदरासिम्मि । इंदयसेढिविहीणे कमसो सेसा पइण्णए उभयं ॥ १०३
५९९९८७ । अ २३९५५८० । संखेजवासजुत्ते गिरयबिले हॉति णारया जीवा । संखेजा णियमेणं इदरम्मि तहा असंखेज्जा ॥ १०४
___संख्यात योजन विस्तारवाले नारकियोंके बिलोंमें तिरछेरूपमें जघन्य अन्तराल छह कोस और उत्कृष्ट अन्तराल इससे दुगुणा ' अर्थात् बारह कोसमात्र है ।। १०० ॥ ज. अंतराल ६, उ. अं. १२ कोस.
असंख्यात योजन विस्तारवाले नारकियोंके बिलोंमें जघन्य अन्तराल सात हजार योजन और उत्कृष्ट अन्तराल असंख्यात योजनमात्र ह ॥ १०१ ॥ ज... अन्तराल ७००० यो.।
पूर्वोक्त प्रकीर्णक बिलोंमेंसे असंख्यात योजन विस्तारवाले बहुत और संख्यात योजन विस्तारवाले बिल थोडेही हैं। ये सब बिल अहोरात्र अन्धकारसे व्याप्त हैं ॥ १०२ ॥
अपनी अपनी पृथिवीके संख्यात योजन विस्तारवाले बिलोंकी राशिमेंसे इन्द्रक बिलोंके प्रमाणको घटा देनेपर शेष संख्यात योजन विस्तारवाले प्रकीर्णक बिलोंका प्रमाण होता है । इसीप्रकार अपनी अपनी पृथिवीके असंख्यात योजन विस्तारवाले बिलोंकी संख्यामेंसे श्रेणीबद्ध बिलोंके प्रमाणको घटा देने पर अवशिष्ट असंख्यात योजन विस्तारवाले प्रकीर्णक बिलोंका प्रमाण रहता है ॥ १०३ ॥
प्र. पृथिवीमें सं. यो. विस्ता. बिल ६०००००; असं. यो. वि. २४०००००; इन्द्रक १३,श्रे. ब. ४४२०, ६००००० - १३ = ५९९९८७ सं. यो. वि. प्रकी. बिल, २४००००० - ४४२० = २३९५५८० असं. यो. वि. प्रकी. बिल ।
संख्यात योजन विस्तारवाले नरकबिलमें नियमसे संख्यात नारकी जीव, तथा असंख्यात योजन विस्तारवाले बिलमें असंख्यातही नारकी जीव होते हैं ॥ १०४ ॥
१द जहण्णवित्थारं, २ दब दुगुणिदो.३ द६.४ द ब. वित्थारो. ५ब होएति तिमिर.
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