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तिलोय पण्णत्ती
[ २.१०५
पणदाल लक्खाणि पढमो चरिमिंदओ वि इगिलक्खं । उभयं सौहिय एकोदियभजिदम्मि हाणिचयं ॥ १०५
४५०००००। १०००००।
छावट्ठिछस्सयाणिं इगिणउदिसहस्सजोयणाणि पि । दुकलाओ तिविहत्ता परिमाणं हाणिवडीए ॥ १०३
९१६६६ । २ ।
३
बिदियादिसु इच्छंतो रूऊणिच्छाए गुणिदखयवडी । सीमंतादो सोहिय' मेलिज सुअवधिठाणमिमं ॥ १०७ रयणप्पहवणीए सीमंतयइंदयस्स वित्थारो | पंचत्तालं जोयणलक्खाणि होदि नियमेण ॥ १०८
४५०००००।
चोदा लक्खाणि तैसीदिसयाणि होंति तेत्तीस । एक्ककला तिविद्दत्ता णिरइंदयरुंदपरिमाणं ॥ १०९
४४०८३३३ | १। ३
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प्रथम इन्द्रकका विस्तार पैंतालीस लाख योजन और अन्तिम इन्द्रकका विस्तार एक लाख योजन है । इनमें प्रथम इन्द्रकके विस्तारमेंसे अन्तिम इन्द्रकके विस्तारको घटाकर शेषमें एक कम इन्द्रकप्रमाणका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना ( द्वितीयादि इन्द्रकोंके विस्तारको निकालने के लिये ) हानि और वृद्धिका प्रमाण समझना चाहिये ॥ १०५ ॥
४५००००० १००००० ÷ ( ४९ - १ ) = ९१६६६३ हानि - वृद्धि ।
इस हानि-वृद्धिका प्रमाण इक्यानबे हजार छहसौ छ्यासठ योजन और तीन से विभक्त दो कला है ॥ १०६॥
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द्वितीयादिक इन्द्रकोंके विस्तारको निकालनेकेलिये एक कम इच्छित इन्द्रक प्रमाणसे उक्त क्षय और वृद्धिके प्रमाणको गुणा करनेपर जो गुणनफल प्राप्त हो उसको सीमंत इन्द्रकके विस्तारमेंसे घटा देने पर या अवधिस्थान इन्द्रकके विस्तार में मिलानेपर अभीष्ट इन्द्रकका विस्तार निकलता है ॥ १०७ ॥
उदाहरण - सीमंत और अवधिस्थानकी अपेक्षा २५ वें तप्तनामक इन्द्रकका विस्तारक्ष. वृ. ९१६६६ × ( २५ - १ ) = २२०००००; ४५००००० - २२००००० = २३००००० सीमन्तकी अपेक्षा । ९१६६६३ × ( २५ - १ ) = २२०००००; २२००००० + १०००००
२३००००० अवधिस्थानकी अपेक्षा ।
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रत्नप्रभा पृथिवी में सीमन्त इन्द्रकका विस्तार नियमसे पैंतालीस लाख योजनप्रमाण है ॥ १०८ ॥ ४५००००० यो.
निरय (नरक) नामक द्वितीय इन्द्रक के विस्तारका प्रमाण चवालीस लाख तेरासीसौ तीस योजन और एक योजनके तीन भागों मेंसे एक भाग है ॥ १०९ ॥
सीमंत वि. ४५००००० - ९१६६६३ = ४४०८३३३ई |
१ द ब सेढीअ.
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२ व ठाणं. ३ दु बादाललक्खा जिं.
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