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________________ तिलोयपण्णत्ती तेरसएक्कारसणचत्रगपंचतिएक हृदया होंति । रयणप्पहपहुदीसुं पुढवीसुं भाणुपुवीए ॥ ३७ १३ । ११ । ९ । ७।५।३।१। पढमहि इंदयहि य दिसासु उणवण्णसेढिबखा य । अडदालं विदिसासुं विदियादिसु एकपरिहीणा ॥३८ ४९ ५६ ] ४९ त. प्र. ३, ४८ ४८ ४९ ४८ Jain Education International ४८ एकततेरसादी सत्त ठाणेसु मिलिदपरिसंखा । उणवण्णा पढमादो इंदयपडिणामयं होंति ॥ ३९ सीमंतगो य पढमं णिरयो रोरुग य भंतउब्भता । संभंतयसंभंतं विभंता तत्ते तसिदा य ॥ ४० वयवक्ता विकतो होंति पढमपुढवीए । थणैगो तणगो मणगो वणगो घादो य संघादो ॥ ४१ जिब्भाजिब्भगलोला लोलयर्थेणलोलुगाभिधाणा य । एदे बिदियखिदीए एक्कारस इंदया होंति ॥ ४२ ११ । ४९ रत्नप्रभा आदिक पृथिवियोंमें क्रमसे तेरह, ग्यारह, नौ, सात, पांच, तीन और एक, इस प्रकार कुल उनंचास इन्द्रक बिल हैं ॥ ३७ ॥ इन्द्रक बिल - र. प्र. १३, श. प्र. ११, बा. प्र. ९, म. प्र. १ । १ ब तध. २ द धलगो. ३ ब दाघो. ४ द लोलयघण. [ २.३.७ पं. प्र. ७, पहिले इन्द्रक बिलके आश्रित दिशाओंमें उनंचास और विदिशाओं में अड़तालीस श्रेणीबद्ध बिल हैं। इसके आगे द्वितीयादिक इन्द्रक बिलोंके आश्रित रहनेवाले श्रेणीबद्ध बिलों में से एक एक बिल कम होता गया है ॥ ३८ ॥ ( देखो मूलकी संदृष्टि ) उक्त सात भूमियोंमें तेरहको आदि लेकर एकपर्यन्त कुल मिलकर उनंचास इन्द्रक बिल हैं ॥ ३९ ॥ धू. प्र. ५, पहिला सीमन्तक तथा द्वितीयादि निरय, रौरुक, भ्रान्त, उद्भ्रान्त, संभ्रान्त, असंभ्रान्त, विभ्रान्त, तप्त, त्रसित, वक्रान्त, अवक्रान्त, और विक्रान्त, इसप्रकार, ये तेरह इन्द्रक बिल प्रथम पृथिवीमें हैं । स्तनक, तनक, मनक, वनक, घात, संघात, जिह्वा, जिह्वक, लोल, लोलक और स्तनलोलुक, ये ग्यारह इन्द्रक बिल द्वितीय पृथिवीमें ह ॥ ४०-४२ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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