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________________ -२. ५०] बिदुओ महाधियारो तत्तो' सीदो तवणो तावणणामा णिदाघपजलिदो। उजलिदो संजलिदो संपजलिदो य तंदियपुढवीए ॥ ४३ आरो मारो तारो तच्चो तमगो तहेव वादे य । खडखडणामा तुरिमक्खोणीए इंदया सत्तै ॥ ४४ तमभमझसयं वाविलतिमिसो धुम्मप्पहाए छट्टीए। हिमवहललल्लंका सत्तमभवणीए अवधिठाणो त्ति ॥ ४५ धम्मादीपुढवीणं पढमिंदयपढमसेढिबद्धाणं । णामाणि णिरूबेमो पुवादिपदाहिणकमेणे ॥ ४६ कंखापिवासणामा महकंखा यदिपिपासणामा य । भादिमसेढीबद्धा चत्तारो होंति सीमंते ॥ ४७ पढमो अणिचणामो बिदिभो विजो तहा महाणिों। महविजो य चउत्थो पुख्वादिसु होति थणगम्हि ॥ ४८ दुक्खा य वेदणामा महदुक्खा तुरिमया अ महवेदा। तत्तिदयस्स एदे पुवादिसु हाँति चत्तारो ।। ४९ . आरिदए णिसट्ठी पढमो बिदिओ वि अंजणणिरोधो । तदिओ य' अदिणिसत्तो महणिरोधो चउत्थो त्ति ॥ ५० __ तप्त, शीत, तपन, तापन, निदाघ, प्रज्वलित, उज्ज्वलित, संज्वलित और संप्रज्वलित, ये नौ इन्द्रक बिल तृतीय पृथिवीमें हैं ॥ ४३ ॥ आर, मार, तार, तत्व ( चर्चा ), तमक, वाद और खडखड, ये सात इन्द्रक बिल चतुर्थ पृथिवीमें हैं ॥ ४४ ॥ __तमक, भ्रमक, झषक, वाविल ( अन्ध ) और तिमिश्र ये पांच इन्द्रक बिल धूमप्रभा पृथिवीमें हैं । छठी पृथिवीमें हिम, वर्दल और ललंक, इसप्रकार तीन तथा सातवीमें केवल एक अवधिस्थाननामका इन्द्रक बिल है॥४५॥ धर्मादिक सातों पृथिवियोंसम्बन्धी प्रथम इन्द्रक बिलोंके समीपवर्ती प्रथम श्रेणीबद्ध बिलोंके नामोंका पूर्वादिक दिशाओंमें प्रदक्षिणक्रमसे निरूपण करते हैं ।। ४६ ॥ धर्मा पृथिवीमें सीमन्त इन्द्रक बिलके समीप पूर्वादिक चारों दिशाओं में क्रमसे कांक्षा, पिपासा, महाकांक्षा और अतिपिपासा, ये चार प्रथम श्रेणीबद्ध बिल हैं ॥ ४७ ॥ ___ वंशा पृथिवीमें प्रथम अनित्य, दूसरा अविद्य तथा महानिंद्य और चतुर्थ महाविद्य, ये चार श्रेणीबद्ध बिल पूर्वादिक दिशाओंमें स्तनक इन्द्रक बिलके समीप हैं ॥ ४८ ॥ मेघा पृथिवीमें दुःखा, वेदा, महादुःखा और चौथा महावेदा, ये चार श्रेणीबद्ध बिल पूर्वादिक दिशाओंमें तप्त इन्द्रक बिलके समीपमें हैं ॥ ४९ ॥ ____ अंजना पृथिवीमें आर इन्द्रक बिलके समीप प्रथम निसृष्ट, द्वितीय निरोध, तृतीय अतिनिसृष्ट और चतुर्थ महानिरोध, ये चार श्रेणीबद्ध बिल हैं ॥५०॥ १ द ब तेत्तो. २ द आरे मारे तारे. ३ द ब तस्स. ४ द दुव्वुपहा, व दुच्चुपहा. ५ द पहादिको कमेण, बपदाहिको कमेण. ६ द ब महाणिज्जो. ७द घलगम्हि, बघणगम्हि. ८ब तत्तिदियस्स. ९ बततिउ य. TP.8 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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