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________________ -२. ३६] बिदुओ महाधियारो पंचमिखिदिए तुरिमे भागे छट्टीय सत्तमे महिए। अदिसीदा गिरयबिला तट्टिदजीवाण घोरसीदयस ॥३० वासीदि लक्खाणं उण्हबिला पंचवीसदिसहस्सा । पणहत्तर सहस्सा अदिसीदबिलाणि इगिलक्खं ॥३॥ ८२२५०००। १७५०००। मेरुसमलोहपिंड सीदं उण्हे बिलम्मि पक्खितं । ण लहदि तलप्पदेसं विलीयदे मयणखंड व ॥ ३२ मेरुसमलोहपिंड उण्हं सीदे बिलम्मि पक्खितं । ण लहदि तलप्पदेसं विलीयदे लवणखंड व ॥३३ अजगजमहिसतुरंगमखरोटमज्जारअहिणरादीणं । कुधिदाणं गंधेहिं णिरयबिला ते अणंतगुणा ॥ ३४ कक्खकवच्छुरीदो खहरिंगालातितिक्खसूईएँ । कुंजरचिक्कारादो णिरयबिला दारुणा तमसहावा ॥ ३५ इंदयसेढीबद्धा पइण्णया य हवंति तिवियप्पो । ते सव्वे णिरयबिला दारुणदुक्खाण संजणणा ॥ ३६ पांचवीं पृथिवीके अवशिष्ट चतुर्थ भागमें, तथा छट्ठी और सातवीं पृथिवीमें स्थित नारकियोंके बिल अत्यन्त शीत होनेसे वहां रहनेवाले जीवोंको भयानक शीतकी वेदना करनेवाले हैं ॥३०॥ नारकियोंके उपर्युक्त चौरासी लाख बिलोंमेंसे ब्यासी लाख पच्चीस हजार बिल उष्ण, और एक लाख पचहत्तर हजार बिल अत्यन्त शीत हैं ॥३१॥ उष्ण बिल ८२२५०००, शीत बिल १७५०००। यदि उष्ण बिलमें मेरुके बराबर लोहेका शीतल पिण्ड डाल दिया जाय, तो वह तलप्रदेशतक न पहुंचकर बीचमें ही मैनके टुकड़ेके समान पिघलकर नष्ट हो जायगा। तात्पर्य यह है कि इन बिलोंमें उष्णताकी वेदना अत्यधिक है ॥ ३२ ॥ इसीप्रकार, यदि मेरुपर्वतके बराबर लोहेका उष्ण पिण्ड शीत बिलमें डाल दिया जाय तो वह भी तलप्रदेशतक नहीं पहुंचकर बीचमें ही नमकके टुकड़ेके समान विलीन हो जावेगा ॥३३॥ ___बकरी, हाथी, भैंस, घोडा, गधा, ऊंट, बिल्ली, सर्प और मनुष्यादिकके सड़े हुए शरीरोंके गन्धकी अपेक्षा वे नारकियोंके बिल अनन्तगुणी दुर्गंधसे युक्त हैं ॥ ३४ ॥ स्वभावतः अंधकारसे परिपूर्ण ये नारकियोंके बिल कक्षक ( कौक्षेयक या क्रकच ), कृपाण, छुरिका, खदिर ( खैर ) की आग, अति तीक्ष्ण सुई और हाथियोंकी चिक्कारसे अत्यन्त भयानक वे नारकियोंके बिल इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णकके भेदसे तीन प्रकारके हैं। ये सब ही नरकबिल नारकियोंको भयानक दुख दिया करते हैं ॥ ३६ ॥ विशेषार्थ- जो अपने पटलके सब बिलोंके बीचमें हो वह इन्द्रक बिल कहलाता है , चार दिशा और चार विदिशाओंमें जो बिल पंक्तिसे स्थित होते हैं, उन्हें श्रेणीबद्ध कहते हैं। श्रेणीबद्ध बिलोंके बीचमें इधर उधर रहनेवाले बिलोंको प्रकीर्णक समझना चाहिये। १ ब महीए. २ द ब अदिसीदि. ३ द कखकछुरीदो [कक्खककवाणछुरिदो]. ४ द ब खइरिंगाला तिक्खसूईए. ५ द ब हवंति वियप्पा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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