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________________ ४६ ] तिलोयपण्णत्ती [ १.२८२ चउसदसत्तासीदिजोयणाणं णवसहस्ससत्तसय सरूवाहियलक्खाए अवहिदेगभागबाहलं जगपदरं होदि । = १०२४१९८३४८७ । १०९७६० पुणो अट्टहं पुढवीणं हेट्ठिमभागावरुद्धवाद खेत्तघणफलं वत्तइस्लामो तत्थ पढमढवी हेट्टिमभागावरुद्धवादखेत्तघणफलं एक्करज्जुविक्खंभसत्तरज्जुदीहा सद्विजोयणसहस्सबाहलं एसा अप्पणो बाहलस्स सत्तमभागबाहलं जगपदरं होदि । = ६००००| बिदियपुढवीए हेट्ठिमभागावरुद्धवाद खेत्तघणफलं सत्तभागूणबेरज्जुविक्खंभा सत्तरज्जुआयदा सहिजोयणसहस्सबाहल्ला ५ असीदिसहस्साहियसत्तण्हं लक्खाणं एगूणवण्णासभागबाहले जगपदरं होदि । = ७८००००| तदियपुढवीए हेट्ठिमभागावरुद्धवादखेत्तघणफलं बेसत्तमभागहीणतिष्णिरज्जुविक्खंभा सत्तरज्जुआयदा सट्ठिजोयणसहस्सबाहला चालीससहस्साधियएक्कार सलक्खजोयणाणं एगूणवंचासभागबाहलं जगपदरं होदि । = ११४०००० | चउत्थपुढव हेट्टिमभागावरुद्धवादखेत्तघणफलं तिण्णिसत्तमभागूणचत्तारिरज्जुविक्खंभा सत्तरज्जुआयदा ४९ ४९ हजार, चार सौ सतासी योजनोंमें एक लाख नौ हजार सातसौ साठका भाग देने पर लब्ध एक भाग बाल्यप्रमाण जगप्रतर होता है । ३१९८०००० १७८३६ ४२०० ५८८ ३०३ + ३४३ ३४३ ३४३ ४९ + + × ४९ २२४० अब आठों पृथिवियोंके अधस्तन भागमें वायुसे अवरुद्ध क्षेत्रका घनफल कहते हैं इन आठों पृथिवियोंमेंसे प्रथम पृथिवीके अधस्तन भागमें अवरुद्ध वायुके क्षेत्रका घनफल कहते हैं - एक राजु विष्कंभ, सात राजु लंबाई और साठ हजार योजन बाहल्यवाला प्रथम पृथिवीका वातरुद्ध क्षेत्र है । इसका घनफल अपने बाल्य अर्थात् साठ हजार योजनके सातवें भाग बाहल्यप्रमाण जगप्रतर होता है । १७ × ६०००० × ४९ ४९ ६०००० Jain Education International X + ४९ ७ दूसरी पृथिवीके अधस्तन भागमें वातरुद्धक्षेत्र के घनफलको कहते हैं - सातवें भाग कम दो राजु विष्कम्भवाला, सात राजु आयत और साठ हजार योजन बाहल्यवाला द्वितीय पृथिवीका वातरुद्ध क्षेत्र है । उसका घनफल सात लाख अस्सी हजार योजनके उनंचासवें भाग बाहल्यप्रमाण जगप्रतर होता है । 9 १३ ६०००० ७ × ७८००००× ७ ७८०००० X ४९ X X ७ 1 ७ × ७ ४९ तीसरी पृथिवीके अधस्तन भाग में वातरुद्ध क्षेत्रके घनफलको कहते हैं--दो बटे सात भाग ( 3 ) कम तीन राजु विष्कम्भयुक्त, सात राजु लंबा और साठ हजार योजन बाहल्यवाला तृतीय पृथिवीका वातरुद्ध क्षेत्र हैं । इसका घनफल ग्यारह लाख चालीस हजार योजनके उनंचासवें भाग बाल्यप्रमाण जगप्रतर होता है । ७ १९ ६०००० १ ७११४००००७ ७४७ ११४००००x४९ ४ ९ 9 ७ चौथी पृथिवीके अधस्तन भाग में वातरुद्ध क्षेत्रके घनफलको कहते हैं- चतुर्थ पृथिवीका वातावरुद्ध क्षेत्र तीन बटे सात भाग ( 3 ) कम चार राजु विस्तारवाला, सात राजु लंबा, और साठ For Private & Personal Use Only X = १०२४१९८३४८७ १०९७६० www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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