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________________ -१.२८२ ] पढमो महाधियारो [ ४७ ४९ सटिजोयणसहस्सबाहला पण्णरसलक्खजोयणाणं एगूणवंचासभागबाहलं जगपदरं होदि । = १५०००००। पंचमढवीए हेटिमभागावरुद्ववादखेत्तघणफलं चत्तारिसत्तमभागूणपंचरज्जुविक्खंभा सत्तरज्जुआयदा सद्धिजोयणसहस्पबाहल्ला सट्ठिसहस्लाहियअट्ठारसलक्खाणं एगूणवंचासभागबाहलं जगपदरं होदि। १८६००००। छटपुढवीए हेट्ठिमभौगावरुद्धवादखेत्तघणफलं पंचसत्तमभागूणछरज्जुविक्खंभा सत्तरज्जुभायदा सट्टिजोयणसहस्सबाहल्ला वीससहस्लाहियबावीसलक्खाणमेगणवंचासभागबाहलं जगपदरं होदि। -२२२००००।५ सत्तमपुढवीए हेट्ठिमभागावरुद्धवादखेत्तघणफलं छसत्तमभागूणसत्तरज्जुविक्खंभा सत्तरज्जुआयदा सट्रिजोयणसहस्सबाहला सीदिसहस्साधियपंचवीसलक्खाण एगूणवंचासभागबाहलं जगपदरं होदि । = २५८००००। अट्ठमपुढवीए हेट्ठिमभागवादावरुद्धखेत्तघणफलं सत्तरज्जुआयदा एगरज्जुविक्खभा ४९ हजार योजन मोटा है। इसका घनफल पन्द्रह लाख योजनके उनंचासवें भाग बाहल्यप्रमाण जगप्रतर होता है। - ७४६०००० = ७४ १५०००००४७ १५०००००x४९ २५ पांचवीं पृथिवीके अधस्तन भागमें अवरुद्ध वातक्षेत्रके घनफलको कहते हैं-पांचवीं पृथिवीके अधोभागमें वातावरुद्ध क्षेत्र चार बटे सात भाग (3) कम पांच राजु विस्ताररूप, सात राजु लम्बा और साठ हजार योजन मोटा है। इसका घनफल अठारह लाख साठ हजार योजनके उनचासवें भाग बाहल्यप्रमाण जगप्रतर होता है। ३१... ..._७४ १८६००००४ ७ १८६०००० X ३९ ७ -७ ___ छठी पृथिवीके अधस्तन भागमें वातावरुद्ध क्षेत्रके घनफलको कहते हैं--पांच बटे सात भाग (७) कम छह राजु विस्तारवाला, सात राजु लंबा और साठ हजार योजन बाहल्यवाला छठी पृथिवीके नीचे वातरुद्ध क्षेत्र है; इसका घनफल बाईस लाख बीस हजार योजनके उनंचासवें भाग बाहल्यप्रमाण जगप्रतर होता है। ३.४७ ६०००० = ७ X २२२०००० X ७ २२२०००० - ४९ सातवीं पृथिवीके अधोभागमें वातरुद्ध क्षेत्रके घनफलको कहते हैं-सातवी पृथिवीके नीचे वातावरुद्ध क्षेत्र छह बटे सात भाग (3) कम सात राजु विस्तारवाला, सात राजु लंबा और साठ हजार योजन मोटा है। इसका घनफल पच्चीस लाख अस्सी हजार योजनके उनंचासवें भाग बाहल्यप्रमाण जगप्रतर होता है। ४७४६००००-७४ २५८०००० x ७ २५८०००० x ४९ अष्टम पृथिवीके अधस्तन भागमें वातावरुद्ध क्षेत्रके घनफलको कहते हैं-अष्टम पृथिवीके अधस्तन भागमें वातावरुद्ध क्षेत्र सात राजु लंबा, एक राजु विस्तारयुक्त और साठ हजार योजन ७४ ७ ४९ ४९ १ द भागूणछरज्जु . २ द हेष्ठिभागा , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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