SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -१. २८२ ] पढमो महाधियारो चउसट्ठिसदजोयणूणअट्ठारहसहस्सजोयणाणं तेदालीसतिसदभागबाहलं जगपदरमुप्पजदि । = १७४३६ । पुणो सत्तभागाहियछरज्जुमूलविक्खंभेण छरज्जुउच्छेहेण एकरज्जुमुहेण सोलहबारहजोयणबाहल्लेण दोसु वि पासेसु ठिदवादक्खेत्तं जगपदरपमाणेण कदे बादालीसजोयणसदस्स' तेदालीसतिसदभागबोहल्लं जगपदरं होदि । = ४३१० । पुणे। एगपंचएगरज्जुविक्खंभेण सत्तरज्जुउच्छेहेण बारहसोलहबारहजोयणबाहल्लेण उवरिमदोसु वि पासेसु ठिदवादखेत्तं जगपंदरपमाणेण कदे अट्टासीदिसमहियपंचजोयणसदाणं एगणवण्णासभागबाहल्लं जगपदरं होदि । = ५१८ । उवरि रज्जूविक्खंभेण सत्तरज्जुआयामेण किंचूणजोयणबाहल्लेण ठिदवादखेत्तं जगपदरपमाणेण कदे तिउत्तरतिसदाणं बेसहस्सविसदचालीसभागबाहल्लं जगपदरं होदि । - ३.०३ । एदं सब्वमेगस्थ मेलाविदे चउवीसकोडिसमहियसहस्सकोडीओ एगणवीसलक्खतेसीदिसहस्स ब्रह्मस्वर्गके पार्श्वभागमें सोलह, और सिद्धलोकके पार्श्वभागमें बारह योजन बाहल्यरूप वातवलयकी अपेक्षा दोनों ही पार्श्वभागोंमें स्थित वातक्षेत्रको जगप्रतरप्रमाणसे करनेपर एकसौ चौंसठ योजन कम अठारह हजार योजनके तीनसौ तेतालीसवें भाग बाहल्यप्रमाण जगप्रतर होता है । १३ ४७४ १४ ४ २ = २५४८ = १७ ८.३ ६ ४ ४ ९ पुनः सातवें भागसे अधिक छह राजु मूलमें विस्ताररूप, छह राजु उत्सेधरूप, मुखमें एक राजु विस्ताररूप और सोलह-बारह योजन बाहल्यरूप (सातवीं पृथिवी और मध्यलोकके पार्श्वभागमें) वातवलयकी अपेक्षा दोनों ही पार्श्वभागोंमें स्थित वातक्षेत्रको जगप्रतरप्रमाणसे करनेपर ब्यालीससौ योजनके तीनसौ तेतालीसवें भाग बाहल्यप्रमाण जगप्रतर होता है । ४२००x४९ ४२००x४९ १७+७३ x ३४१४४ ६ = ४२०२४.४९ अनन्तर एक, पांच व एक राजु विष्कंभरूप (क्रमसे मध्यलोक, ब्रह्मस्वर्ग और सिद्धक्षेत्रके पार्श्वभागमें ), सात राजु उत्सेधरूप, और क्रमशः मध्यलोक, ब्रह्मस्वर्ग एवं सिद्धलोकके पार्श्वभागमें बारह, सोलह, और बारह योजन बाहल्यरूप वातवलयकी अपेक्षा ऊपर दोनों ही पार्श्वभागोंमें स्थित वातक्षेत्रको जगातरप्रमाणसे करनेपर पांचसौ अठासी योजनके एक कम पचासवें अर्थात् उनचासवें भाग बाहल्यप्रमाण जगप्रतर होता है। ५+ १ २४७४२४१४ = १४८-४९ ऊपर एक राजु विस्ताररूप, सात राजु आयामरूप और कुछ कम एक योजन बाहल्यरूप वातवलयकी अपेक्षा स्थित वातक्षेत्रको जगप्रतरप्रमाणसे करनेपर तीनसौ तीन योजनके दो हजार दोसौ चालीसवें भाग बाहल्यप्रमाण जगप्रतर होता है। १४७४ ३२३ ₹ =३३४३४ ४९ इस सबको इकट्ठा करके मिला देनेपर एक हजार चौबीस करोड़, उन्नीस लाख, तेरासी १ द ब सदा. २द जोयणलक्खतेदालीससदभागहिबाहलं. ३ ब ४२०००. ४ द जगदपदर'. ५ब सव्वमग पथमेलाविदे, द सव्वमेगं पमेलाविदे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy