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________________ -१. २७३ ] पढमो महाधियारो गोमुत्तमुग्गवण्णा घणोदधी तह घणाणिलो वाऊ । तणुवादो बहुवण्णो रुक्खस्स तयं व वलयतियं ॥२६८ . पढमो लोयाधारो घणोवही इह घणाणिलो तत्तो । तप्परदो तणुवादो अंतम्मि णहं णिआधारं ॥ २६९ जोयणवीससहस्सा बहलं तम्मारुदाण पत्तेक्कं । अट्ठखिदीणं हेतु लोअतले उवरि जाव इगिरज्जू ॥ २७० २००००। २००००। २०००० सगपणचउजोयणयं सत्तमणारयम्मि' पुहविपणधीए। पंचचउतियपमाणं तिरीयखेत्तस्स पणिधीए ॥ २७१ ७ । ५।४।५।४ । ३ । सगपंचचउसमाणा पणिधीए होति बम्हकप्पस्स । पणचउतियजोयणया उवरिमलोयरस यंतम्मि ॥ २७२ ७ । ५। ४ । ५। ४ । ३ । कोसदुगमेककोसं किंचूणेकं च लोयसिहरम्मि । ऊणपमाणं दंडा चउस्सया पंचवीसजुदा ॥ २७३ को २ । को १ । दंड १५७५ । गोमूत्रके समान वर्णवाला घनोदधि, मूंगके समान वर्णवाला घनवात, तथा अनेक वर्णवाला तनुवात, इसप्रकारके ये तीनो वातवलय वृक्षकी त्वचाके समान (लोकको घेरे हुए ) हैं ॥२६८॥ इनमेंसे प्रथम घनोदधिवातवलय लोकका आधारभूत है । इसके पश्चात् घनवातवलय, उसके पश्चात् तनुवातवलय और फिर अन्तमें निजाधार आकाश है ।। २६९ ॥ आठ पृथिवियोंके नीचे लोकके तलभागमें एक राजुकी उंचाईतक इन वायुमण्डलोंमेंसे प्रत्येककी मुटाई बीस हजार योजनप्रमाण है ॥ २७० ॥ घ. उ. २०००० + घ. २०००० + त. २०००० = ६०००० यो. लोकके तलभागमें एक राजु ऊपर तक वातवलयोंकी मुटाई ।। सातवें नरकमें पृथिवीके पार्श्वभागमें क्रमसे इन तीनों वातवलयोंकी मुटाई सात, पांच और चार, तथा इसके ऊपर तिर्यग्लोक ( मध्यलोक ) के पार्श्वभागमें पांच, चार और तीन योजनप्रमाण है ॥ २७१ ॥ सातवीं पृथिवीके पास तीनो वातवलयोंकी मुटाई-- घ. उ.७ + घ.५+ त. ४ = १६ योजन; मध्यलोकके पास घ. उ. ५ + घ. ४ + त. ३ = १२ योजन। इसके आगे तीनो वायुओंकी मुटाई ब्रह्मस्वर्गके पार्श्वभागमें क्रमसे सात, पांच और चार योजनप्रमाण, तथा ऊर्ध्वलोकके अन्तमें (पार्श्वभागमें ) पांच, चार और तीन योजनप्रमाण है ॥ २७२ ॥ ब्रह्मस्वर्गके पास यो. ७, ५, ४; लोकके अंतमें यो. ५, ४, ३. ___ लोकके शिखरपर उक्त तीनों वातवलयोंका बाहल्य क्रमशः दो कोस, एक कोस और कुछ कम एक कोस है । यहां तनुवातवलयकी मुटाई जो एक कोससे कुछ कम बतलाई है, उस कमीका प्रमाण चारसौ पच्चीस धनुष है ॥ २७३ ।। लोकशिखरपर घनोदधिवातकी मुटाई को. २; धन. वा. को. १; त. वा. ४२५ धनुष कम को. १ ( धनुष १५७५)। १ द सत्तमणयंमि, ब सत्तमसारयम्मि. २ द पणदीए, ब पणधीए. TP.6 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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