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________________ ४०] तिलोयपण्णत्ती [१.२६१ उड्डू रज्जुषणं सत्तसु ठाणेसु ठविय हेटादो । विदफलजाणणटुं वोच्छं गुणगारहाराणि ॥ २६१ दादाणि दसयाणि पंचाणउदी य एकवीसं च । सत्तत्तालजुदागिं बादालसयाणि एकरसं ॥ २६२ पणणवदियधियचउदससयाणि णव इय हवंति गुणगारा । हाराणउ णव एकं बाहत्तरि इगि विहत्तरी चउरो ॥२६३ चोदसभजिदो तिउणो विदफलं बाहिरोभयभुजाण । लोओ दुगुणो चोद्दसहिदो य अब्भंतरम्मि दूसस्स ॥ २६४ तस्स य जवखेत्ताणं लोओ चोहसहिदो दुविंदफलं । एत्तो गिरिगडखंड' वोच्छामो आणुपुन्वीए ॥ २६५ छप्पण्णहिदो लोओ एक्कस्सि गिरगडम्मि विदफलं । तं चउवीसप्पहदं सत्तहिदो तिगुणिदो लोगो ॥ २६६ अट्टविहप्पं साहिय सामण्णं हे दे जयं । एहिं साहेमि पुढं संठाणं वादवलयाणं ॥ २६७ ७२ सात स्थानोंमें नीचेसे ऊपर ऊपर धनराजुको रखकर घनफल जानने के लिये गुणकार और भागहारोंको कहता हूं ॥ २६१ ॥ इन सात स्थानोंमें क्रमसे दोसौ दो, पंचानबै, इक्कीस, ब्यालीससौ सैंतालीस, ग्यारह, चौदहसौ पंचानबै और नौ, ये सात गुणकार हैं। तथा भागहार यहां नौ, नौ, एक, बहत्तर, एक, बहत्तरऔर चार हैं ॥ २६२-२६३ ॥ २०२ + ९५ + २९ + ४ २४५ + ११ + १४९५ + 2 = १४७ राजु मन्दरक्षेत्रका धनफल. दूष्यक्षेत्रकी बाहिरी उभय भुजाओंका घनफल चौदहसे भाजित और तीनसे गुणित लोकप्रमाण; तथा अभ्यन्तर दोनों भुजाओंका घनफल चौदहसे भाजित और दोसे गुणित लोकप्रमाण है ।। २६४ ॥ दूष्यक्षेत्रमें- ३४३ : १४ ४ ३ = ७३३ बा. उ. भु. घ. फ.; ३४३ : १४ ४ २ =४९ अ. क्षे. घ. फ. ___ इस दूष्यक्षेत्रके यवक्षेत्रोंका घनफल चौदहसे भाजित लोकप्रमाण है । अब यहांसे आगे अनुक्रमसे गिरिकटक खण्डको कहता हूं ॥ २६५ ॥ ३४३ + १४ = २४३ दूष्यक्षेत्रके य. क्षे. का घ. 'फ.; ७३३ + ४९ + २४३ = १४७ सम्पूर्ण दूष्यक्षेत्रका घनफल. एक गिरिकटका घनफल छप्पनसे भाजित लोकप्रमाण है। इसको चौबीससे गुणा करने पर सातसे भाजित और तीनसे गुणित लोकप्रमाण सम्पूर्ण गिरिकटक क्षेत्रका घनफल आता है ॥२६६।। ३४३ : ५६ = ६. एक गि. क. का घनफल; ६.४ २४ = १४७ रा. ( ३४३ + ७४३ ) सम्पूर्ण गि. क्षे. घ. फ. सामान्य, अधः और ऊर्ध्वके भेदसे जो तीन प्रकारका जग अर्थात् लोक है, उसको आठ प्रकारसे कहकर अब वातवलयोंके पृथक् पृथक् आकारको कहता हूं ॥ २६७ ॥ १ दब गिरिविडखंडं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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