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________________ -१.२६०] पढमो महाधियारो [ ३९ घणफलमेक्कम्मि जवे अट्ठावीसेहि भाजिदो लोओ। तं बारसेहि गुणिदं जवखेत्ते होदि विदफलं ॥ २५५ . तिहिदो दुगुणिदरज्जू तियभजिदा चउहिदा तिगुणरज्जू । एक्कतीसं च रज्जू बारसभजिदा हवंति उहुई ॥२५५ चउहिदतिगुणिदरज्जू तवीस ताओ बारपडिहत्ता । मंदरसरिसायारे' उस्सेहो उडुखेत्तम्मि ॥ २५६ अट्टाणवदिविहत्ता तिगुणा सेढी तडाण' वित्थारो । चउतडकरणक्खंडिदखेत्तेणं चूलिया होदि ॥ २५७ तिणि तडा भूवासो ताण तिभागेण होदि मुहरुंदं । तच्चलियए उदओ चउभजिदा तिगुणिदा रज्जू ॥ २५८ सत्तट्ठाणे रज्ज एक्कवीसपविभत्तं । ठविदूण वासहे, गुणगारं तेसु साहेमि ॥ २५९ पंचुत्तरएकसयं सत्ताणउदी तियधियणउदीओ। चउसीदी तेवण्णा चउदालं एक्कवीस गुणगारा ॥ २६० ७४७४ ३ = १५७ ति. आयत क्षे. का घ. फ.; यवमुरजमें- ३४३ ७= ४९ य. क्षे. घ. फ; ३४३ : ७ x २ = ९८ मु. क्षे. का घ. फ.; ४९ + ९८ = १४७ समस्त य. मु. क्षेत्रका घ. फ. यवमध्यक्षेत्रमें एक यवका धन फल अट्ठाईससे भाजित लोकप्रमाण है। इसको बारहसे गुणा करनेपर सम्पूर्ण यवमध्यक्षेत्रका घनफल निकलता है ॥ २५४ ॥ ३४३ + २८ = १२ एक यवका घनफल.; १२५ x १२ = १४७ रा. सम्पूर्ण य. म. क्षे. का घ. फ. मन्दरसदृश आकारवाले ऊर्ध्वक्षेत्रमें ऊपर ऊपर उंचाई क्रमसे तीनसे भाजित दो राजु, तीनसे भाजित एक राजु, चारसे भाजित तीन राजु, बारहसे भाजित इकतीस राजु, चारसे भाजित तीन राजु और बारहसे भाजित तेईस राजुमात्र है ।। २५५-२५६ ॥ अठ्ठानबैसे विभक्त और तीनसे गुणित जगश्रेणीप्रमाण तटोंका विस्तार है । ऐसे चार तटवर्ती करणाकार खण्डित क्षेत्रोंसे चूलिका होती है ॥ २५७ ॥ प्रत्येक तटका विस्तार ८ x ३ = २४ = २४ रा. उस चूलिकाकी भूमिका विस्तार तीन तटोंके प्रमाण, मुखका विस्तार इसका तीसरा भाग, तथा उंचाई चारसे भाजित और तीनसे गुणित राजुमात्र है ॥ २५८ ॥ भूमिविस्तार- ४३ = २७; मुखविस्तार- * = २४; उंचाई ३ राजु, सात स्थानोंमें ऊपर ऊपर इक्कीससे विभक्त राजुको रखकर उनमें विस्तारके निमित्तभूत गुणकारको कहता हूं ॥ २५९ ॥ ___एकसौ पांच, सत्तानबै, तेरानबै, चौरासी, तिरेपन, चवालीस और इक्कीस, ये उपर्युक्त सात स्थानों में सात गुणकार हैं । ॥ २६०॥ १५, ११, १३, १४, ५३, ३५, ३१ रा. १ द सरिसायारो. २ द ब तदाण. ३ द विहत्ता रिरे तिणि गुणा. ४ द चउतदकारणखंडिद, बचउदत्तकारणखंडिद. ५ द ब तदा. ६ ब पंचुत्तं एक्क. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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