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________________ ३८] तिलोयपण्णत्ती [१.२४७ चोहसभजिदो तिहदो होदि विदफलं बाहिरुभयबाहूणं । लोभी पंचविहत्तो' दूसरसभंतरोभयभुजाणं ॥ २४७ तस्साई लहुबाहू तिगुणियलोओ य पंचतीसहिदो। विदफलं जवखेत्ते चोद्दसभजिदो हव लोगो ॥ २४८ एक्कास्सि गिरिगडए' चउसीदीभाजिदो हवे लोओ। तं अट्ठतालपहदं विदफलं तम्मि खेत्तम्मि ॥ २४९ एवं अट्ठवियप्पो देटिमलोओ य वण्णिदो एसो। एहि उवरिमलोय अटुपयारोणिरूवमो ।। २५० सामण्णे विदफलं सत्तहिदो होइ तिगुणिदो लोगो। विदिए वेद जाए' सेढी कोडी तिरज्जूओ ॥२५१ तदिए भुयकोडीओ सेढी वेदो० वि तिण्णि रज्जूओ। बहुजवमझे मुरये जवमुरयं होदि तक्खेत्तं ॥२५२ तम्मि जवे विंदफलं लोगो सत्तेहि भाजिदो होदि । मुरयम्मि य विदफलं सत्तहिदो दगुणिदो लोओ। २५३ दूष्यक्षेत्रमें चौदहसे भाजित और तीनसे गुणित लोकप्रमाण बाह्य उभय बाहुओंका और पांचसे विभक्त लोकप्रमाण आभ्यन्तर दोनों बाहुओंका घनफल है ॥ २४७ ॥ इसी क्षेत्रमें लघु बाहुओंका घनफल तीनसे गुणित और पैंतीससे भाजित लोकप्रमाण तथा यवक्षेत्रका घनफल चौदहसे भाजित लोकप्रमाण है ॥ २४८ ॥ दूष्यक्षेत्रमें----३४३ + १४४ ३ = ७३३ बाह्य बाहुओंका घ. फ.; ३४३ + ५ = ६८३ अभ्यन्तर बाहुओंका घ. फ.; ३४३ x ३ + ३५ = २९३ लघु बाहुओंका ध. फ.; ३४३ * १४ = २४३ यवक्षेत्रका घ. फ.; ७३३ + ६८३ + २९२ + २४३ = १९६ रा. अधोलोकसंबंधी कुल दूष्यक्षेत्रका घनफल. एक गिरिकटक क्षेत्रका घनफल चौरासीसे भाजित लोकप्रमाण है । इसको अडतालीससे गुणा करनेपर कुल गिरिकटक क्षेत्रका घनफल होता है ।। २४९ ॥ ३४३८५= ४६३ एक गिरिकटको घ. फ.; ४२६४४८= १९६ सम्पूर्ण गि. का घ. फ. इसप्रकार आठ भेदरूप इस अधोलोकका वर्णन किया जाचुका है। अब यहांसे आगे आठ प्रकारके ऊर्ध्वलोकका निरूपण करते हैं ॥ २५० ॥ सामान्य ऊर्ध्वलोकका घनफल सातसे भाजित और तीनसे गुणित लोकके प्रमाण अर्थात् एकसौ सैंतालीस राजुमात्र है। ३४३ ’ ७ x ३ = १४७ रा. सामान्य ऊ. लोकका घ. फ. द्वितीय ऊर्ध्वायतचतुरस्र क्षेत्रमें वेध और भुजा जगश्रेणीप्रमाण, तथा कोटि तीन राजुमात्र है ॥ २५१ ॥ ७ x ७ x ३ = १४७ ऊ. आयत क्षे. का घनफल | तीसरे तिर्यगायत चतुरस्र क्षेत्रमें भुजा और कोटि श्रेणीप्रमाण, तथा वेध तीन राजुमात्र है। बहुतसे यवोंयुक्त मुरजक्षेत्रमें वह क्षेत्र यव और मुरजरूप होता है। इसमेंसे यवक्षेत्रका धनफल सातसे भाजित लोकप्रमाण और मुरजक्षेत्रका घनफल सातसे भाजित और दोसे गुणित लोकके प्रमाण है ॥ २५२-२५३ ॥ १दब वियदि. २ दब विहत्त. ३ दब सत्ताई. ४द ब गिरिविडए.५ दब वियप्पा होठिमलोउए. ६ [अकृपयारं]. ७ द व तिगुणिदा. ८ द ब भुजासे. ९ द ब भुविकोडीओ. १० [वेधो]. ११ द व मुरयं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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