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________________ - १. २४६ ] पदमो महाधियारो 'सत्तहदबारसा' दिवडुगुणिदा हवेइ रज्जू य । मंदरसरिसायामे उच्छेहा होइ खेत्तम्मि ॥ २३९ अट्ठावीसवित्ता सेढी मंदरसमम्मि तडवाले' । चउतडकरणक्खंडिदखेत्तेण चूलिया होदि ॥ २४० अट्ठावीसविता सेढी चूलीय होदि मुहरुंदं । तत्तिगुणं भूवासं सेढी बारसहिदा तदुच्छेहो || २४१ अट्ठावदिविहत्तं सत्तट्ठाणेसु सेढि उड्दुङ्कं । ठविदूण वासहेदुं गुणगारं वत्तइस्सामि ॥ २४२ अडणउदी वाणउदी उणणवदी तह कमेण बासीदी । उणदाल बत्तीसं चोद्दस इय होंति गुणगार ॥ २४३ रज्जुणा सत्तासु ठविय उड्दुड्ढे । विंदफलजाणणटुं गुणगारं वत्तइस्लामि ॥ २४४ गुणपणी एक्कासीदेहि "जुत्तमेक्कसयं । सगसीदेहिं दुसरं तियधियदुसया पणसहस्सा ॥ २४५ अडवीसं उणहत्तरि उणवणं उवरि उवरि हारा य । चउ चउवग्गं बारं अडदालं तिचउक्कचउवीसं ॥ २४६ तीन भाग, बारह भागोंमेंसे सात भाग, बारहसे भाजित तेतालीस राजु, राजुके बारह भागों में से सात भाग और डेढ़ राजुमात्र है || २३८-२३९ ॥ ८४ = १२ = ७ राजु । विभक्त जगश्रेणीप्रमाण चार तटवर्ती राजु प्रत्येक खण्डित क्षेत्रका प्रमाण । इस चूलिका के मुखका विस्तार अट्ठाईससे विभक्त जगश्रेणीप्रमाण, भूमिका विस्तार इससे तिगुणा और उंचाई बारहसे भाजित जग श्रेणीमात्र है || २४१ ॥ (+ 1) + 5 + 12 +235 + 2/3 मन्दरसदृश क्षेत्रमें तटभाग के विस्तारमेंसे अट्ठाईससे करणाकार खण्डित क्षेत्रोंसे चूलिका होती है ॥ २४० ॥ इ८ - चूलिकाका मुख; भूमि रेट ( × ३ ); उंचाई २ रा. । अट्ठानबैसे विभक्त जगश्रेणीको ऊपर ऊपर सात स्थानों में रखकर विस्तारको लाने के हेतु गुणकारको कहता हूं ॥ २४२ ॥ अट्ठाबै, बाबै, नवासी, व्यासी, उनतालीस, बत्तीस और चौदह, ये क्रमसे उक्त सात स्थानों में सात गुणकार हैं ॥ २४३ ॥ एट पूर्वोक्त उंचाईके क्रमसे विस्तारका प्रमाण -- ९८१ ८ ९२ ९८ × ८९; ८२ ८ ३९ ४३२; ८ १४. नीचेसे ऊपर ऊपर सात स्थानों में घनराजुको रखकर घनफल जानने के लिये गुणकारको कहता हूं ॥ २४४ ॥ उक्त सात स्थानोंमें पंचान, एकसौ इक्यासी, दोसौ सतासी, पांच हजार दोसौ तीन, अट्ठाईस, उनहत्तर और उनंचास, ये सात गुणकार, तथा चार, चारका वर्ग ( १६ ), बारह, अड़तालीस, तीन, चार और चौबीस, ये सात भागद्दार हैं ॥ २४५-२४६ ॥ पूर्वोक्त उंचाईके क्रमसे घनफलका प्रमाण 22 + 2 + 28 १८१ २ १९६ रा. = १ ब बारसंसो. २ द ब तलवासे. बठविण वासहेदुं. ५ द ब एक्कासेदेहि . Jain Education International - + [ ३७ + For Private & Personal Use Only + ५२०३ + ३ द बचउतदकारणखंडिदखेत्तेणं. ४ द ठेविदूण वासहेदुं, ६ द ब सगसीतेदि दुस्सं तियधियदुसेया. www.jainelibrary.org
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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