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________________ ३६] तिलोयपण्णत्ती [ १. २३३ तस्साई लहुबाहुं छग्गुणलोओ अ पणत्तीसहिदो । विदफलं जवखेत्ते लोओ सत्तेहि पविहत्तो ॥ २३३ तं पणतीस पहदं सेढिघणं घणफलं च तम्मिस्सं । सत्तहिदो होदि अधो चउगुणिदो लोयखिदी एदे ॥ २३४ सामण्णे विदफलं भुजकोडिसेढिचउरज्जूओ तइज्जए वेदो। बहुजवमझे मुरवे जवमुरयं होदि णियमेण ॥ २३५ तम्मि जवे विंदफलं चोइसभजिदो य तियगुणों लोओ। मुरवमहीविंदफलं चोइसभजिदो य पणगुणो लोओ ॥२३६ घणफलमेक्कम्मि जवे लोओ बादालभाजिदो होदि। तं चउवीसप्पहदं सत्तहिदो चउगुणो लोगो॥ २३७ रज्जूवो तेभार्ग बारसभागो तहेव सत्तगुणो । तेदालं रज्जूओ बारसभजिदा हवंति उड्डू ॥ २३८ इसी क्षेत्रमें उसके लघु बाहुका घनफल छहसे गुणित और पैंतीससे भाजित लोकप्रमाण, तथा यवक्षेत्रका घनफल सातसे विभक्त लोकप्रमाण है ॥ २३३ ॥ लघु बाहुका घ.फ.-३४३४६३५-५८३ रा.; यवक्षेत्रका घ.फ.-३४३+७= ४९ रा.; दूष्यक्षेत्रका समस्त घनफल -- ९८ +१३७६ + ५८३ + ४९ = ३४३ रा. इसको पैंतीससे गुणा करनेपर श्रेणीके घनप्रमाण कुल गिरिकटक क्षेत्रका मिश्र घनफल होता है। इस उपर्युक्त लोकक्षेत्रमें सातका भाग देकर लब्ध राशिको चारसे गुणा करनेपर सामान्य अधोलोकका घनफल होता है। आयतचतुरस्र क्षेत्रमें भुजा श्रेणीप्रमाण सात राजु, कोटि चार राजु और इतना ही ( सात राजु ) वेध भी है। बहुतसे यवोंयुक्त मुरजक्षेत्रमें यवक्षेत्र और मुरजक्षेत्र दोनों ही नियमसे होते हैं। उस यवमुरजक्षेत्रमें यवाकार क्षेत्रका घनफल चौदहसे भाजित और तीनसे गुणित लोकप्रमाण तथा मुरजक्षेत्रका घनफल चौदहसे भाजित और पांचसे गुणित लोकप्रमाण है ॥ २३४-२३६ ॥ • उदाहरण—(१) (एक गिरिकटकका घ. फ. रा. ९५ होता है ) ९५ - ३५ = ३४३ रा. समस्त गिरिकटकका घनफल । (२) सामान्य अधोलोकका घनफल ३४३ ’ ७४४ = १९६ रा. (३) आयतचतुरस्र अधोलोकमें---भुजा ७ रा.; कोटि ४ रा. और वेध ७ राजु है-~७ x ४ x ७ = १९६ रा. घ. फ.। ( ४ ) यवमुरजाकार अधोलोकमें यवक्षेत्रका घ. फ. - ३४३ + १४ x ३ = ७३३ रा.; मुरजक्षेत्रका घ. फ. – ३४३ + १४४ ५ = १२२३ रा. १२२३ + ७३३ = १९६ रा. समस्त यवमुरजक्षेत्रका घ. फ.। यवाकार क्षेत्रमें एक यवका घनफल ब्यालीससे भाजित लोकप्रमाण है। उसको चौबीससे गुणा करनेपर सातसे भाजित और चारसे गुणित लोकप्रमाण समस्त यवमध्य क्षेत्रका घनफल निकलता है ॥ २३७॥ ३४३ * ४२ = ८१ राजु एक यवका घ. फ.; ८१ - २४ = ३४३ * ७ x ४ = १९६ रा. य, म. का घ. फ. मन्दरके सदृश आयामवाले क्षेत्रमें ऊपर ऊपर उंचाई क्रमसे एक राजुके चार भागोंमेंसे १ द तग्गुणलोओअप्पष्ट्रिसहिदाओ, ब तग्गुणलोओ अ पष्ठिसहिदाओ. २ द ब सत्ते वि. ३ द सदो, ब सद्धो. ४ द ब मुखजवमुरयं. ५ द पणगुणो. ६ द व तेदालं. ७ द तेलंतं, ब तेलभं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001274
Book TitleTiloy Pannati Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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