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________________ पउमचरियं [ ८१. १५ एयं महामन्तिगिरं सुणे, ठिया विचिन्ता बल-चक्कपाणी । जंपन्ति तेलोकविभूसणेणं, हीणं असेसं विमलं पि रज ॥ १५ ॥ ।। इइ पउमचरिए [ति भुवणालंकारसल्लविहाणं नाम एक्कासीयं पव्वं समत्तं ।। ८२. भुवणालंकारहत्थिपुव्वभवाणुकित्तणपब्वं एयन्तरंमि सेणिय!, महामुणी देसभूसणो नाम । कुलभूसणो त्ति बीओ, सुर-असुरनमंसिओ भयवं ॥ १ ॥ नाणं वंसनगवरे, पडिमं चउराणणं उवगयाणं । जणिओ च्चिय उवसग्गो, पुवरिखूणं सुरवरेणं ॥२॥ रामेण लक्खणेण य, ताण कए तत्थ पाडिहेरम्मि । सयलजगुज्जोयकरं, केवलनाणं समुप्पन्नं ॥ ३ ॥ तुट्टेण जक्खवइणा, दिन्नो य वरो महागुणो तइया । जस्स पसाएण जिओ, सत्त बल-वासुदेवेहिं ॥ ४ ॥ ते समणसङ्घसहिया, संपत्ता कोसलापुरि पवरं । कुसुमामोउज्जाणे, अहिटिया फासुगुद्देसे ॥ ५॥ अह ते संजमनिलया, साहू सबो वि नागरो लोओ । आगन्तूण सुमणसो, वन्दइ परमेण विणएणं ॥ ६ ॥ पउमो भाईहि समं, साहूणं दरिसणुज्जओ पत्तो । नाईसरं गयं तं, पुरओ काऊण निम्फिडिओ ॥ ७ ॥ अवराइया य देवी, सोमित्ती केगई तहऽन्नाओ । जुवईओ मुणिवरे ते, वन्दणहेउं उवगयाओ॥८॥ नगडिज्जन्ततुरङ्गम-हत्थिघडाडोववियडमग्गेणं । बहुसुहडसंपरिखुडो, . गओ य पउमो तमुज्जाणं ॥ ९ ॥ साहस्स आयवत्तं, दटु ते वाहणाउ ओइण्णा । गन्तूण पउममादी, सबे पणमन्ति मुणिवसभे ॥ १० ॥ उवविठ्ठाण महियले. ताण मुणी देसभूसणो धम्मं । दुविहं कहेइ भयवं, सागारं तह निरागारं ॥ ११ ॥ आप इसका उपाय करें। (१४) इस तरह महामंत्रीकी वाणी सुनकर राम और लक्ष्मण चिन्तायुक्त हुए। वे कहने लगे कि त्रैलोक्यविभूषणके बिना सारा विमल राज्य भी व्यर्थ है । (१५) ॥ पद्मचरितमें 'भुवनालंकारके शल्यका विधान' नामक इक्यासीवाँ पर्व समाप्त हुआ । ८२. भुवनालंकार हाथी के पूर्वभव हे श्रेणिक ! इस बीच सुर-असुर द्वारा वन्दित भगवान् देशभूषण और दूसरे कुलभूषण नामके महामुनि वंश नामक पर्वतके ऊपर चतुरानन प्रतिमा ( कायोत्सर्ग) धारण किये हैं ऐसा जानकर पहलेके शत्रु देवने उपसर्ग किया । (१-२) राम एवं लक्ष्मणके द्वारा उनका वहाँ प्रातिहार्य-कर्म करने पर अर्थात् उसे रोकने पर सकल विश्वका उद्योत करने वाला केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। (३) तुष्ट यक्षपतिने महान् गुणोंवाला एक बरदान दिया जिसके प्रसादसे बलदेव और वासुदेवने शत्रुको जीत लिया। (४) श्रमणसंघके साथ वे उत्तम साकेतपुरीमें आये और कुसुमामोद उद्यानमें निर्जीव स्थान पर ठहरे। (५) तब सुन्दर मनवाले सब नगरजनोंने आकर परम विनयके साथ संयमके धाम रूप उन साधुओंको वन्दन किया । (६) साधुओंके दर्शनके लिए उत्सुक राम भी पूर्वजन्मको याद करनेवाले हाथीको आगे करके भाइयोंके साथ निकले । (७) अपराजिता, सुमित्रा, कैकेई तथा अन्य युवतियाँ उन मुनिवरोंको वन्दनके लिए गई। (८) आपसमें एकदम सटे घोड़ों एवं हाथियोंके घटाटोपसे छाये हुए मार्गसे अनेक सुभटोंसे घिरे हुए राम उस उद्यानमें गये। (९) मुनिका छत्र देखकर वे वाहन परसे नीचे उतरे। राम आदिने जाकर सब मुनिवरोंको प्रणाम किया। (१०) जमीन पर बैठे हुए उन्हें भगवान् देशभूषण मुनिने सागार तथा अनगार ऐसे दो प्रकारके धर्मका उपदेश दिया। १. सुररायनमं०-प्रत्य०। २. •पुरी वीरा । कु०-१०। ३. सव्वे वंदंति मुणिचलणे-प्रत्य० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
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