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७६. राम-लक्खणसमागमपव्वं अह कोउएण तुरिया, अन्ना अन्नं करेण पेल्लेउं । पेच्छन्ति पणइणीओ, पउमं नारायणसमेयं ॥ २१ ॥ अन्नोन्ना भणइ सही ! सीयासहिओ इमो पउमणाहो । लच्छीहरो वि एसो, हवइ विसल्लाएँ साहीणो ।। २२॥ सुग्गीवमहाराया, एसो वि य अङ्गओ वरकुमारो । भामण्डलो य हणुवो, नलो य नीलो सुसेणो य ।। २३ ॥ एए अन्ने य बहू, चन्दोयरनन्दणाइया सुहडा । पेच्छ हला ! देवा इव, महिटिया रूवसंपन्ना ॥ २४ ॥ एवं ते पउमाई, पेच्छिज्जन्ता य नायरनणेणं । संपत्ता रायघरं, लुलियचलुच्चलणधयसोहं ॥ २५॥ सा पेच्छिऊण पुत्ते, घराउ अवराइया समोइण्णा । अह केकई वि देवी, सोमित्ती केगया चेव ॥ २६ ॥ अन्नं भवन्तरं पिव, पत्ताओ पुत्तदसणं ताओ । बहुमङ्गलुज्जयाओ, ठियाउ ताणं समासन्ने ॥ २७॥ आलोइऊण ताओ, अवइण्णा पुप्फयाउ तुरन्ता । सयलपरिवारसहिया, अह ते जणणीओ पणमन्ति ॥ २८ ॥ सुयदरिसणुस्सुगाहिं, ताहि वि आसासिया सिणेहेणं । परिचुम्बिया य सीसे, पुणो पुणो राम-सोमित्ती ॥ २९ ॥ पण्हुयपओहराओ, जायाओ पुत्तसंगमे ताओ । पुलइयरोमञ्चीओ, तोसेण य वीरजणणीओ ॥ ३० ॥ दिन्नासणोवविट्ठा, समयं नणणीहि राम-सोमित्ती । नाणाकहासु सत्ता, चिट्ठन्ति तहिं परमतुट्टा ॥ ३१ ॥ नं सुविऊण विउज्झई, जं च पउत्थस्स दरिसणं होई । नं मुच्छिओ वि जीवइ, किं न हु अच्छेरय एयं ॥ ३२ ॥ चिरपवसिओ वि दीसइ,चिरपडिलग्गो वि निबई कुणइ । बन्धणगओ विमुच्चइ, सय ति झीणा कहा लोए ॥ ३३ ॥
एक्को विकओ नियमो, पावइ अच्चब्भुयं महासुरलच्छि ।
तम्हा करेह विमलं, धम्मं तित्थंकराण सिवसुहफलयं ॥ ३४ ॥
॥ इइ पउमचरिए राम-लक्खगसमागमविहाणं नाम एगूणासीयं पव्वं समत्तं ॥ सरोवरों की भाँति वे प्रदेश शोभित हो रहे थे। (२०) तब कौतुकवश एक-दूसरीको हाथसे हटाकर स्त्रियाँ नारायणके साथ रामको देखने लगीं। (२१) वे एक-दूसरीसे कहती थीं कि सीताके साथ ये राम हैं और विशल्याके साथ ये लक्ष्मण हैं। (२२) ये सुग्रीव महाराजा हैं। ये कुमारवर अंगद, भामण्डल, हनुमान, नल, नील और सुषेण हैं। (२३) इन तथा अन्य बहुत-से चन्द्रोदरनन्दन श्रादि देवों जैसे महर्द्धिक और रूपसम्पन्न सुभटोंको तो, अरी! तू देख । (२४) इस प्रकार नगरजनों द्वारा देखे जाते वे राम आदि चंचल और फहराती हुई ध्वजाओंसे शोभित राजमहल में आ पहुँचे । (२५) पुत्रोंको देख अपराजिता महलमेंसे नीचे उतरी उसके बाद देवी कैकेई तथा केकया सुमित्रा भी नीचे उतरी। (२६ ) मानों दूसरा जन्म पाया हो इस तरह उन्होंने पुत्रों का दर्शन किया। अनेकविध मंगल कार्य करने में उद्यत वे उनके पास जाकर ठहरी। (२७) उन्हें देखकर वे तुरन्त पुष्पकविमानमेंसे नीचे उतरे। सम्पूर्ण परिवारके साथ उन्होंने माताओंको प्रणाम किया। (२८) पुत्रोंके दर्शनके लिए उत्सुक उन्होंने स्नेहपूर्वक आश्वासन दिया और राम-लक्ष्मणके सिर पर पुनः पुनः चुम्बन किया। (२६) पुत्रोंसे मिलन होने पर उनके स्तनोंमेंसे दूध झरने लगा। वीर जननी वे आनन्दसे रोमांचित हो गई। (३०) माताओंके साथ राम और लक्ष्मण दिये गये आसनों पर बैठे। अत्यधिक आनन्दित वे नाना कथाओंमें लीन हो वहीं ठहरे। (३१) सोकर जो जागता है, प्रवास पर गये हुए का जो दर्शन होता है, और मूर्छित व्यक्ति भी जी उठता है-यह क्या आश्चर्य नहीं है ? (३२) चिरप्रवासित भी दीखता है, चिर कालसे विषयोंमें आसक्त भी मोक्ष प्राप्त करता है और बन्धन में पड़ा हुआ भी मुक्त होता है-इस पर से शातताकी बात निर्बल प्रतीत होती है। (३३) एक भी नियम करने पर जीव महान् अभ्युदय तथा देवोंका विशाल ऐश्चर्य प्राप्त करता है। अतः तीर्थकरोंके विमल एवं शिवसुखका फल देनेवाले धर्म का पालन करो। (३४)
॥ पद्मचरितमें राम एवं लक्ष्मणका माताओंके साथ समागम-विधान नामक उनासीवाँ पर्व समाप्त हुआ ।
१. अह कोसल्ला देवी-प्रत्य०। २. सपा णित्रिहा प्रत्य० । ३. सुपिऊग प्रत्य० । ४. हवइ प्रत्य० । ५. नास्तीयं गाथा प्रत्यन्तरयोः। ६. ०णमायाहिं समा० मु०।।
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