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________________ मुद्रित पाठ २१ जिनके... ऐसेवे २२ जनक... तथा २४ किरणोंकी २५ जनकको २५ आक्रमण किया ६२ बार - बार... क्षणभर में २८ पद्मसरोवर को... लगे । ३ जटा के भारसे [१०] लगा,... प्रलाप २३ भूमि... जाना ३५ देश... एक ४४ कि... राजा ४९ पितामह, जिन ६३ तुम... हो । ६५ और बच्चे को ६५ सामान्य... हो । ६९ पुरुषों ने ... प्राप्त [११] विचिने... १ दिन राजाने २ (ऍपन) १६ अपमान से... करके ४९ राजा पूजा ३ सारस एक-दूसरे के १२ ओर चल पड़ा | १७ जिसको विशिष्ट १७ वह तो मेरी २७ चन्द्रगति मुँह Jain Education International ८ हिन्दी अनुवाद संशोधन पडितव्य पाठ जय जय शब्द के उद्घोष व वाद्यों " की ध्वनि के साथ वे जनक और उसके संबंधी ( कनक) तथा ज्वालाओं की कनकको (युद्ध का संचालन किया। बार बार सामन्तोंके द्वारा भग्न होने पर भी बर्बरोंने क्षण भरमें पद्मसरोवरको नष्ट करता है उस जटाजूट से लगा, शोक और भण्डबण्ड प्रलाप बहाँ स्थलचरों (मनुष्यों) के मकानों में हमारे लिए जाना देश पारकर राजा शीघ्र ही जिनालय के पास में स्थित एक कि कहाँ से यह खेचर-राजा पितामह, विष्णु, जिन तुम सामान्य पुरुष हो । और मूर्खी सामान्य व्यक्ति भी इच्छा करता है, हीन पुरुष हीनके साथ ही सम्बन्ध चाहता है । पुरुषोंने अचल व अनुत्तर मोक्ष प्राप्त विधिने और भी भारी दूसरा दुःख दिलाया है। उद्देश - २८ दिन से राजाने (ऐपन) उच्चकुलमें उत्पन्न स्त्रियाँ अपमानसे पीड़ित जीवन जी करके राजा पूर्ण आदरसे पूजा मुद्रित पाठ ३० उसका ३१ स्वयं ही उठ सारस आवाज करते हुए एक दूसरे के ओर चलने को प्रवृत्त हुआ । जिसका रूप वह निश्वयही मेरी चन्द्रगति विस्मित हुआ और मुँह से ३३ कई ३३ दूसरों ने ३३ पुष्पों की....थी । ३५ करने लगे । ३७ राम खड़े ४९ राम तीनों हैं । पकडा । ९२ कर्म... है ९६ माया.... आये । १८... १०० महाबली ११९ तथा... . देवोंने उद्देश - २९ १२१ उससे ... वह १२१ विशालाक्षी १२४ उस... और १२८ अभ्युदय १४० करक १४१ पुत्र... लगे । उद्देश - ३० ४९ सेवा... था । ३५ रामने... चाहिए ६९. अतिभूति... मरकर For Private & Personal Use Only १४३ परितव्य पाठ तरह नष्ट-विनष्ट करने लगे । उसका पीछा किय. । स्वयं अपने सुभटों के साथ उठ वे उन्होंने पुष्पों से (अपने आप को सजाया था करते हुए लड़ने लगे । राम स्वयं खड़े राम लोक में प्रसिद्ध हुए । कर्म समस्त लोक को नचाता है । -पिता के साथ सभी राजा मातामिथिला में आये । हुई सजीधजी सीता ने धनुषभवन में वृषभ के महाबाहु तथा जय-जयकार और वाद्यके घोष के साथ देवोंने क्षुब्ध-सागर सा वह मृगाक्षी लक्ष्मणने उस धनुषको उठाकर हर्ष पूर्वकमोड़ा और अद्भुत करके पुत्रों ने नववधूओं के साथ क्रमशः अयोध्या में प्रवेश किया । वह विमल हृदयवाला दिव्य नारीकनों से सेवित होकर दिन बिताता था और पूर्वजन्म में उपार्जित (पुण्य के कारण ) शरीर सुख का उपभोग करता था रामने यह वचन कहा कि हे भद्रे ! जो नष्ट और अपहृत हो गया है। उसके बारे में समझदार को चिन्ता नहीं करनी चाहिए । अतिभूति निदानसहित मरकर www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
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