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________________ पउमचरिय मुद्रित पाठ पठितव्य पाठ ६ देवगणके...उस ७ फिर...मेरा १. जो एक...दशरथका आज्ञा से तडिविलसितने फौरन महलमें xनिकाल दो मस्तकको उठाकर तडिविलसितने स्वयं ही उसे रात में देखा और फिर स्वामी को दिखाया । पवनको गति के समान देखता हुआ रहने लगा । इस प्रकार १३ इसका...न करें। १६ देकर...गया । ११ चारों...आये। कि हे माम ! मेरे तब लोगों के बीच में उसने विधिः पूर्वक पाणिग्रहण किया, (इस प्रका) राजा दशरथ ने कौतुक एवं मंगलों के धाम (नगर) में शादी की । मधुरस्वरलहरी से जिसके १. रूपसे ...है, १९ पुरुषकी ५ प्रशस्त ८ कान्तिवाले १० कही गई १३ जन्मों से १५ उन कुमारसिंहों को १६ अचिरा १६ अचिराकी...हुआ। पठितव्य पाठ मुद्रित पाठ उद्देश-२३ देवगण जिस शिखर पर निवास २१ आज्ञा से महलमें करते हैं उस तब नारद ने कहा, हे साकेतपति! २१ फौरन मेरा २२ मस्तकको...दिया । जो नैमित्तिक सागरविधि ने कहा था कि दशरथका इसमें आप विलम्ब न करें। २३ पवन के समान देकर वहाँ से प्रच्छन्न रूपमें बाहर २४ देखने लगा। चला गया। २६ यहाँ...जन्ममें उद्देश-२४ घूमते हुए वे दशरथ और जनक २२ कि मेरे भी वहाँ मिलें। एक दूसरे का परि. ३३ तब...किया । चय प्राप्तकर दोनों उस (समारंभ) में उपस्थित हुए। रूपसे तो यह कामदेव के समान है, पुरुषसे ४. सुखके...जिसके उद्देश-२५ समस्त २२ छिद्रमें से आँखोंवाले २३ उसे...सौप । सुनी गई। २५ कुशलता कई जन्मों से २५ सागर के जैसे उन चारों कुमारसिंह)को २५ वे चारों ऐराणी (२४) २६ बल, शक्ति...कलाओं में उसके अचिरकुक्षी नामका पुत्र था। उद्देश-२६ अटवी से ५७ शरीरमें...करते हैं । बीच अनेकबुद्धि नामक मंत्री ने उससे कहा गर्दन में चोट करने वाले प्रहार करते हुए पुरुषों ने ६५ अणुव्रतोंके साथ मधुकुण्डलमण्डितको ९४ हे प्रसन्ना । स्वस्थ की । १०१ शरत्पूर्णिमाके...समूह हो- हुए अस्ते, तांबे . १०३ देवकन्या उद्देश-२७ आयरंगके अधीन थे। १४ करके...घोषके हाँ, ऐसा कह करके राम को १५ सुभट खड़े हैं। छुपके से उसको कुमार सौंपे। माहात्म्य चारों सागरों के जैसे बल एवं शक्ति में अपने पुत्रों को समर्थ चित्तवाले तथा :कलाओं में १४ कहीं से १६ बीच...कहा १८ गर्दन...पुरुषोंने भन्य जीव अपने अंगों के कौओं और गृद्धोंके द्वारा चड चड खाये जाने के कारण नरकायु के शेष रहने तक वेदनाएँ अनुभव करते रहते हैं। अणुव्रतोंको ग्रहण करके मधुहे मृगाक्षी। नखमणि में किरणों का समूह जवितहो इन्द्राणी २८ कुण्डमण्डितको ३१ प्रशस्त की। ५० हुए और गरम तांबे ७ आयरंगके...थे । १३ ऐसा... रामको करके ढोल एवं स्तुति-पाठकों के घोषके सुभट यहाँ आ सके हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
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