SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२६) विज्जु (२७) विज्जुते (२८) तडिवेअ (२९) विज्जुदाढ (३०) दढरह (३११ आसधम्म (३२) अस्सायर (३३) आसद्ध (३४) पउमनिह (३५) पउममालि (३६) पउमरह (३७) सीहवाह - (३८) मयधम्म (३९) मेहसीह (१०) संभू (४१) सोहद्ध (१२) ससंक (५३) चंदक (१४) चदसिहर (४५) इंदरह (४६) चंदरह (४७) ससंकधम्म (४८) आउह (४९। रत्तट्ठ (५०) हरिचंद (५१) पुरचंद (५२) पुण्णचंद ५. वंशावलि-विशेष (५३) वालिंद (क) हरि-वंशावली (५४) चंदचूड (१) हरिराया (२१.७ से २१.३३ तक) ५५) गयर्णिदु (२) महागिरि (५६) दुराणण (३) हिमगिरि (५७) एकचूड (४) वसुगिरि (५८) दाचूड (५) इंदगिरि (५९) तिचूड (६) रयणमालि (६०) चउचूड (७) संभू (६१) वजचूड (८) भूयदेव (६२) बहुचूड (६३) सीहचूड (९) महीधर (६४) जलणजडि (अन्य कई राजा) (६५) अक्कतेअ .) सुमित्त (अन्य कई राजा) (११) मुणिसुव्वय इस प्रकार पउमचरिय में 'नमि' से (१२) सुव्वय 'अक्कते तक विद्याधर राजाओं की वंशावली (१३) दक्त्र में कुल पैंसठ नाम हैं। पद्मचरितम् में यही (१४) इलवण संख्या तिहत्तर है। उसमें साठवें राजा का (१५) सिरिवद्धण उल्लेख नहीं है: 'संभू' (४०), 'ससंकधम्म' (१६) सिरिवक्ख (४.), और 'दुराणण' (५६) के स्थान पर. (१७) संजयंत क्रमशः 'सिंहसपुत्र', 'चक्रधर्म' और 'उडुपातन' (१८) कुणिम के नाम हैं: अट्ठाईसवें और उनतीसवें (१९) महारह के बीचमें 'वैद्युत' और अड़तालीस व (अन्य कई राजा) उनपचासत्रे के बीच में 'चकवज'. 'मणिग्रीव', (२०) वासवकेउ 'मण्यक', 'मणिभासुर', 'मणिस्यदन', (२१) जगभ 'मण्यास्य', 'बिम्बोष्ठ' और 'लम्बिताधर' के पद्मवरितम् में 'महारह' (१९) के नाम अधिक है। (देखिये पद्मवरितम्, पश्चात् 'पुलोम' का नाम अधिक है, अन्यथा ५.१६-५४) सभी नाम पउमचरियं के सदृश हैं । (५०, सपुत्र', 'चक्रया और उनती व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy