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________________ ६३. १०] ६३. विसल्लापुव्वभवकित्तणपव्वं ३८५ एवं तु संनिवेसं, खेयरवसभेसु विरइयं सर्व । नक्खत्तेहि व गयणं, अइरेहइ उज्जलसिरीयं ॥ ३५ ॥ न तं सुरा नेव य दाणविन्दा, कुणन्ति जीवस्स अणुग्गहत्थं । समज्जियं जं विमलं तु कम्म, जहा निवारेइ नरस्स दुक्खं ॥ ३६ ॥ ।। इय पउमचरिए रामविप्पलावं नाम बासठं पव्वं समत्तं ।। ६३. विसल्लापुत्वभवकित्तणपव्वं नाऊण य सोमित्ती, भरणावत्थं दसाणणो एत्तो । एक्कोयरं च बद्धं, सोयइ पुत्ते य पच्छन्नं ॥ १ ॥ हा भाणुयण्ण! वच्छय !, निच्चं चिय मह हिउज्जओ सि तुमं । कह बन्धणम्मि पत्तो, विहिपरिणामेण संगामे? ॥२॥ हा पुत्त मेहवाहण!, इन्दइ! सुकुमालकोमलसरीरा । कह वेरियाण मज्झे, चिट्ठह अइदुक्खिया बद्धा ? ॥ ३ ॥ बद्धाण असरणाणं, कालगए लक्खणे ससोगता । मह पुत्ताण रिवुभडा, न य नजइ किं पि काहिन्ति ? ॥ ४ ॥ हिययस्स वलहेहिं तुब्भेहिं दुक्खिएहि बद्धेहिं । अहिययरं चिय बद्धो, अयं नत्थेत्थ संदेहो ॥ ५ ॥ एवं गए व बद्धे, महागओ दुक्खिओ सजूहम्मि । चिट्ठइ तह दहवयणो, बन्धूसु य सोगसंतत्तो ॥ ६ ॥ सोऊण सत्तिषहयं, सोमित्ति जणयनन्दिणी एत्तो । अह विलविउं पयत्ता, सोगसमुच्छझ्यसबङ्गी ॥ ७ ॥ हा भद्द लक्खण ! तुमं, उत्तरिऊणं इमं सलिलनाहं । मज्झ कएण महायस!, एयावत्थं पवन्नो सि ॥ ८ ॥ मोत्तण बन्धवनणं, निययं जेट्ठस्स कारणुज्जुत्तो । सुपुरिस ! रक्खसदीवे, कह सि तुमं पाविओ मरणं? ॥ ९ ॥ बालत्ते किं न मया, अहयं दुक्खस्स भाइणी पावा ? । जेण इमो गुणनिलओ, मज्झ कए लक्खणो वहिओ॥ १० ॥ बनाया। अपनी उज्ज्वल कान्तिसे वह सन्निवेश आकाशमें नक्षत्रकी भाँति अत्यन्त शोभित हो रहा था। (३५) देव और दानवेन्द्र भी जीवपर वैसा अनुग्रह नहीं करते, जैसा कि पूर्वार्जित विमल कर्म मनुष्यके दुःखका निवारण करते हैं। (३६) ॥ पद्मचरितमें रामका विप्रलाप नामका बासठवाँ पर्व समाप्त हुआ । ___६३. विशल्याके पूर्वभवोंका कथन उधर लक्ष्मणकी मरणावस्थाको जानकर रावण पकड़े गये सहोदर भाई तथा पुत्रोंके लिए मनमें प्रच्छन्न शोक करने लगा। (१) हा वत्स भानुकर्ण! तुम नित्य मेरे कल्याणके लिए उद्यत रहते थे। भाग्यके परिणामस्वरूप तुम युद्धमें कैसे पकड़े गये हो ? (२) हा पुत्र मेघवाहन ! हा पुत्र इन्द्रजित ! सुकुमार और कोमल शरीरवाले तुम अतिदुःखित और बद्ध हो शत्रुओंके बीच कैसे रहते होंगे? (३) लक्ष्मगके मरने पर शोकसे पीड़ित शत्रुसुभट बद्ध और अशरण मेरे पुत्रोंका न मालूम क्या करेंगे ? (४) हृदयवल्लभ ! तुम्हारे दुखित होनेसे और पकड़े जानेसे मैं सविशेष पकड़ा गया हूँ, इसमें सन्देह नहीं । (५) जिस प्रकार पकड़ा गया महागज अपने यूथमें दुःखित होता है उसी प्रकार शोकसन्तप्त रावण अपने बन्धुवर्गमें दुःखित हुआ। (६) उधर शक्ति द्वारा आहत लक्ष्मणके बारेमें सुनकर सर्वागमें शोकसे सतत आच्छादित सीता रोने लगी। (७) हा भद्र लक्ष्मग! हा महायश ! इस समुद्रको पार करके मेरे लिए तुमने यह अवस्था प्राप्त की है। (5) हे सुपुरुष! बन्धुजनोंका त्याग करके अपने बड़े भाईके लिए उद्युक्त तुमने राक्षसद्वीपमें कैसे मरण पाया है ? (8) दुःखका भाजनरूप पापिनी मैं बचपनमें ही क्यों न मर गई, जिससे मेरे लिए गुणका धामरूप इस लक्ष्मणका वध हुआ। (१०) ४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
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