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६१. ३४ ]
६१. सन्तिसंपायपव्वं
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मोण निययमाणं, दसरहपुत्तं लहु पसाएहि । मा अयसमलकलङ्क, करेहि महिलानिमित्तम्मि ॥ १९ ॥ सोऊण तस्स वयणं, दसाणणो तिबकोहपज्जलिओ । अल्लियइ गब्बियमई, आयडियनिसियवरबाणो ॥ २० ॥ रह-गय-तुरयारूढा, सामिहिया गहियपहरणा - SSवरणा । अन्ने वि य सामन्ता, आलग्गा वाणरभडाणं ॥ २१ ॥ एन्तं दट्टण रणे, सहोयरं तस्स अद्धयन्देणं । छिन्दइ धयं सरोसो, बिहीसणो अहिमुहावडिओ ॥ २२ ॥ विय तस्स धणु, छिन्नं लङ्काहिवेण रुट्टेणं । चावं दुहा विरिक्क, जेट्टस्स विभीसणभडेणं ॥ बहुभडजीयन्तकरे, वट्टन्ते ताण दारुणे जुज्झे । नणयस्स परमभत्तो, समुट्ठिओ इन्दकुमारो || सो लक्खणेण रुद्धो, तुङ्गेण व सायरो समुल्ललिओ । पउमेण कुम्भकण्णो, सिग्धं आयारिओ एन्तो ॥ आवडिओ सीहकडी, नीलेण समं नलो य सम्भूणं । सुहडो सयंभुनामो, आयारइ दुम्मई समरे ॥ दुम्मरिसो घडउवरिं, कुद्धो इन्दासणी तहा काली । चन्द्रणभेण समाणं, कन्दो भिन्नञ्जणाभेण ॥ सिग्धं विराहिओ वि य, आयारइ अङ्गयं समाकुद्धो । अह कुम्भयण्णपुत्तं, कुम्भं पत्तो य हणुवन्तो ॥ सुग्गोवो वि सुमाली, केउं भामण्डलो तहा काली । जोहेइ दढरहो वि य, रणकण्डु ं चेव वहमाणो ॥ एवं अन्ने वि भडा, समसरिसबला रणम्मि आवडिया । आहबणमुहररवा, जुज्झन्ति समच्छरुच्छाहा ॥ छिन्द भिन्द निक्खिव, उत्तिट्टुत्तिट्ट लहु पडिच्छाहि । पप्फोड ताड मारय, सह घतुबत्तणिहन्ति ॥ बहुतूरनिणाणं, विमुक्कवुक्कारसुहडद्देणं । गज्जन्तीव दिसाओ, घणसत्थतमन्धयाराओ ॥ सूरासूराण इमो, वट्टइ अहियं परिक्खणाकालो । जह भुञ्जइ आहारो, न तहा जुज्झिज्जए समरे ॥ मा भाहि कायर ! तुमं, दीणं न हणामि जं च परहुत्तं । तेण वि सो पडिभणिओ, अज्ज तुमं चैव नट्टो सि ॥
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मलसे अपने आपको कलंकित मत करो । ( २६ ) उसका ऐसा कहना सुनकर रावण क्रोधसे अत्यन्त प्रज्वलित हो गया । अभियानी वह खींचकर तीक्ष्ण बाग फेंकने लगा । (२०) अपने स्वामीका हित करनेवाले दूसरे भी सामन्त रथ, हाथी एवं घोड़ों पर सवार हो तथा प्रहरण एवं कवच धारण करके वानर सुभटोंके साथ भिड़ गये । (२१) सहोदर भाईको युद्धमें आते देख सामने आये हुए विभीषणने गुस्से में आकर अर्धचन्द्र वाणसे उसकी ध्वजा काट डाली । (२२) रुष्ट उस लंकाधिपति रावणने भी उसका धनुप काट डाला। इस पर सुभट विभीषणने बड़े भाईके धनुपको दो टुकड़ों में बाँट दिया । (२३)
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बहुत-से सुभटके जीवनका विनाश करनेवाला उनका दारुण युद्ध जव हो रहा था तब पिता का परम भक्त इन्द्रजितकुमार उपस्थित हुआ । (२४) जिस प्रकार उछलते हुए सागरको पर्वत रोकता है उसी प्रकार लक्ष्मणने उसे रोका। रामने आते हुए कुम्भकर्ण को ललकारा । (२५) नीलके साथ सिंहकटि और शम्भुके साथ नल भिड़ गया । स्वयम्भू नामके सुभटने युद्ध में दुर्मतिको ललकारा। (२) दुर्मर्प घटोद रिपर और इन्द्रारानि कालीपर क्रुद्ध हुआ । चन्द्रनखके साथ स्कन्द तथा भिन्नांजन के साथ विराधित शीघ्र ही भिड़ गया । क्रुद्ध मयने अंगदको ललकारा तथा कुम्भकर्ण के पुत्र कुम्भके पास हनुमान आ पहुँचा। (२७-२८) सुप्रीव सुमालीके साथ, भामण्डल केतुके साथ तथा युद्धकी खुजली धारण करनेवाले दृढ़रथ कालीके साथ युद्ध करने लगा । (२६) दूसरे भी समान और सदृश बलवाले सुभट युद्ध क्षेत्रमें आये और मत्सर एवं उत्साहसे युक्त वे आन करके चिल्लाते हुए युद्ध करने लगे । (३०) मारो, काटो, तोड़ो, फेंको, उठो- उठो, जल्दी पकड़ो, फोड़ो, पीटो, मारो, उलट दो, मार डालो-इस तरह योद्धा चिल्ला रहे थे । (३१)
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बादल सरीखे शस्त्रोंसे अन्धकारित दिशाएँ अनेक विध वाद्योंकी आवाज़से तथा सुभटों द्वारा की गई हुँ मानो गरजने लगीं । (३२) शूर और कायरों का यह विशेष परीक्षा-काल था, क्योंकि जिस हिसाब से अन्न खाया जाता है उसी हिसाब से युद्धमें लड़ा नहीं जाता । (३३) हे कायर ! तुम मत डरो। जो पराजित होता है उस दीनको में नहीं मारता । इसपर . उसे प्रत्युत्तर दिया जाता था कि आज तुम ही नष्ट हुए हो । (३४) कोई सुभट टूटे हुए जोड़वाले कवचको देखकर,
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