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________________ १०६. लक्खणकुमारनिक्खमणपव्वं - कञ्चणनयराहिवई, कणारहो णाम खेयरो सूरो । महिला तस्स 'सयहुया, दोण्णि य धूयाउ कन्नाओ ॥ १॥ ताणं सयंवरटे, सके वि य खेयरा समाहूया । कणयरहेण तुरन्तो, रामस्स वि पेसिओ लेहो ॥ २ ॥ सुणिऊण य लेहत्थं, हलहर-नारायणा सुयसमग्गा । विज्जाहरपरिकिण्णा, तं कणयपुरं समणुपत्ता ॥ ३ ॥ ताव सहासु निविट्ठा, सबे वि य उभयसेढिसामन्ता । आहरणभूसियङ्गा, देवा व महिड्डिसंजुत्ता ॥ ४ ॥ रामो लक्खणसहिओ, कुमारपरिवारिओ विमाणाओ। अवयरिऊण निविट्ठो, तत्थेव सहाऍ सुरसरिसो ॥ ५॥ ताव य दिणे पसत्थे, कनाओ दो वि कयविभूसाओ । तं चेव रायउदहिं, जणकल्लोलं पविट्टाओ ॥ ६ ॥ ताणं चिय मयहरओ, दावेइ नराहिवे बहुवियप्पे । हरि-वसह-सिहि-पर्वगम-गरुड-महानागचिन्धाले ॥ ७॥ मयहरयदाविए ते, जहक्कम नरवई पलोएउं । कन्नाहि कया दिट्ठी, लवं-ऽकुसाणं घणसिणेहा ॥ ८ ॥ मन्दाइणीऍ गहिओ, अणङ्गलवणो अणङ्गसमरूवो । चन्दमुहीए वि तओ, गन्तुं मयणंकुसो वरिओ ॥९॥ अह तत्थ जणसमूहे, नाओ चिय हलहलारवो गहिरो । नय-हसिय-गीय-वाइय-विमुक्कहुंकारवुक्कारो ॥ १० ॥ साहु त्ति साहु लोगो, जंपइ सीसङ्गुलिं भमाडेन्तो । अणुसरिसो संजोगो, अम्हेहि सयंवरे दिट्ठो ॥ ११ ॥ गम्भीरधीरगरुयं, एसा मन्दाइणो गया लवणं । मयणकुसं सुरूवं, चन्दमुही पाविया धीरं ॥ १२॥ साहुक्कारमुहरवं, लोगं सुणिऊण लक्खणस्स सुया । लवणं-ऽ'कुसाण रुठ्ठा, सन्नज्झेउं समाढत्ता ॥ १३ ॥ देवीण विसल्लाईण नन्दणा अट्ट वरकुमारा ते । पन्नासूणेहिं तिहिं, सएहि भाईण परिकिण्णा ॥ १४ ॥ १०६. कुमारोंका निष्क्रमण कांचननगरका स्वामी कनकरथ नामका एक शूरवीर खेचर था। उसकी पत्नी शतटुता थी। उसकी दो अविवाहित पुत्रियाँ थीं। (१) उनके स्वयम्वरके लिए सभी खेचर बुलाये गये । कनकरथने रामके पास भी फौरन लेख भेजा। (२) लेखमें जो लिखा था वह सुनकर विद्याधरोंसे घिरे हुए राम और लक्ष्मण पुत्रोंके साथ उस कनकपुरमें आ पहुँचे । (३) तब सभामें आभूषणोंसे भूषित शरीरवाले और देवोंके समान बड़ी भारी ऋद्धिसे युक्त दोनों श्रेणियोंके सब सामन्त बैंठ गये । (४) कुमारोंसे धिरे हुए देव जैसे राम लक्ष्मणके साथ विमानमेंसे उतरकर उसी सभामें जा बैठे। ५) तब शुभ दिनमें अलंकृत दोनों कन्याएँ लोगोंरूपी तरंगोंवाले उस राजसमुद्र में प्रविष्ट हुई। (६) सिंह, वृषभ, मोर, वानर, गरुण एवं महानागके चिह्नोसे अंकित अनेक राजा कंचुकीने उन्हें दिखाये । (७) अनुक्रमसे कंचुकी द्वारा दिखाये गये राजाओंको देखती हुई उन कन्याओं ने सघन स्नेहयुक्त दृष्टि लवण और अंकुश पर डाली (5) मन्दाकिनीने अनंगके समान रूपवाले अनंग लवणको अंगीकार किया तो चन्द्रमुखीने भी जाकर मदनांकुशका वरण किया। (8) तब उस जनसमूहमें जयध्वनि, हास्य, गाना-बजाना तथा हुंकार और गर्जना जिसमें हो रही है ऐसा गम्भीर कोलाहल मच गया। (१०) मस्तक और उँगली घुमाते हुए लोग 'अच्छा हुआ, अच्छा हुआ।' स्वयम्बर में हमने सदृशका सदृशके साथ योग देखा हैऐसा कहने लगे । (११) यह मन्दाकिनी गंभीर और धीर बड़े लवणके साथ गई है और चन्द्रमुखीने सुन्दर धीर मदनांकुशको पाया है । (१२) मुखसे साधुवाद कहते हुए लोगोंको सुनकर लक्ष्मणके पुत्र लवण व अंकुशके ऊपर रुष्ट हुए और कवच धारण करने लगे। (१३) विशल्या आदि देवियोंके पुत्र वे आठ कुमारवर दूसरे ढाई सौ भाइयोंसे घिरे हुए थे। लवण और १. सयंहुय, दो०-प्रत्य। २. •ण्णा कणयपुरं चेवमणु०-प्रत्य। ३. य-मु०। ४. कण्णाहिं दिन दिट्ठी-प्रत्यः । ५. यपमुक्क०-प्रत्य। ६. सयंवरो-प्रत्य०। ७. धीरा-मु.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
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