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________________ १०३. रामपुष्वभव - सीयापव्वज्जाविहाणपव्वं ३६ ॥ तं साहबस्स वयणं, सुणिऊणं सावओ तओ जाओ । कालगओ उववन्नो, सोहम्मे सिरिघरो देवो ॥ सो हार-कड - कुण्डल- मउडालंकारभूसियसरीरो । सुरगणियामज्झगओ, भुञ्जइ भोगे सुरिन्दो व ॥ अह सो चुओ समाणो, महापुरे धारिणीऍ मेरूणं । 'सेट्टीण तओ जाओ, नियपउमरुइ ति नामेणं ॥ तस्स पुरस्साहिवई, छत्तच्छाउ चि नाम नरवसभो । भज्जा से सिरिकन्ता, सिरि ब सा रूवसारेण ॥ अह अन्नया कयाई, गोडुं गच्छन्तएण जरवसभो । दिट्ठो पउमरुईणं, निच्चेट्ठो महियलत्थो सो ॥ अह सो तुरङ्गमाओ, 'ओयरिउं तस्स देइ कारुणिओ । पञ्चनमोक्कारमिणं, मुयइ सरीरं तओ जीवो ॥ सो तस्स पहावेणं, सिरिकन्ताए य कुच्छिसंभूओ । छत्तच्छायस्स सुओ, वसहो वसहृद्धओ नामं ॥ अह सो कुमारलीलं, अणुहवमाणो गओ तमुद्देसं । जत्थ मओ जरवसभो, नाओ जाईसरो ताहे ॥ सी-उ-हा-हा-बन्धण-वहणाइयं वसहदुक्खं । सुमरइ तं च कुमारो, पञ्चनमोक्कारदायारं ॥ उप्पन्नबोहिलाभो, कारावेऊण निणहरं तुङ्गं । ठावेइ तत्थ बालो, णियअणुहुयचित्तियं पढयं ॥ ४५ ॥ भय निययमणुस्सा, इमस्स चित्तस्स जो उ परमत्थं । नणिहिइ निच्छएणं, तं मज्झ कहिज्जह तुरन्ता ॥ ४६ ॥ अह वन्दणाहिलासी, पउमरुई तं निणालयं पत्तो । अभिवन्दिऊण पेच्छइ, तं चित्तपडं विविहवण्णं ॥ ४७ ॥ नाव य निबद्धदिट्ठी, तं पउमरुई निएइ चित्तपडं । ताव पुरिसेहि गन्तुं सिद्धं चिय रायपुत्तस्स ॥ ४८ ॥ सो मत्तगयारूढो, तं निणभवणं गओ महिड्डीओ । ओयरिय गयवराओ, पउमरुई पणमइ पहट्ठो ॥ चलणेसु निवडमाणं, रायसुयं वारिऊण पउमरुई । साहेइ निरवसेसं, तं गोदुक्खं बहुकिलेसं ॥ तो भइ रायपुत्तो, सो हं वसहो तुह प्पसाएणं । जाओ नरवइपुत्तो पत्तो य महागुणं रज्जं ॥ ५१ ॥ I ४९ ॥ ५० ॥ १०३.५१ ] ३७ ॥ ३८ ॥ ३९ ॥ ४० ॥ Jain Education International ४१ ॥ ४२ ॥ For Private & Personal Use Only ४३ ॥ ४४ ॥ साधुका यह कथन सुनकर वह श्रावक हुआ और मरने पर सौधर्म देवलोकमें कान्तिधारी देव हुआ । ( ३६ ) हार, कटक, कुण्डल, मुकुट और अलंकारोंसे विभूषित शरीरवाला वह देव-गणिकाओंके बीच रहकर इन्द्रकी भाँति भोगोंका उपभोग करने लगा । (३७) वहाँसे च्युत होने पर वह महापुरमें मेरु सेठकी धारणी पत्नीसे जिनपद्मरुचिके नामसे उत्पन्न हुआ । (३८) उस नगरका स्वामी छत्रच्छाय नामक राजा था । उसकी रूपमें लक्ष्मी के समान श्रीकान्ता नामकी भार्या थी । (३६) एक दिन गोशाला की ओर जाते हुए पद्मरुचिने जमीन पर बैठे हुए एक बूढे बैल को देखा । (४०) घोड़े परसे नीचे उतर कर कारुणिक उसने उसे पंच-नमस्कार मंत्र दिया । तब उसके जीवने शरीर छोड़ा । ( ४१ ) उसके प्रभावसे वह बैल छत्रच्छायका श्रीकान्ताकी कोख से उत्पन्न वृषभध्वज नामका पुत्र हुआ । (४२) ५४१ कुमारकी लीलाका अनुभव करता हुआ वह उस स्थान पर गया जहाँ बूढ़ा बैल मर गया था । तब उसे जातिस्मरण ज्ञान हुआ । (४३) उसने शीत, उष्ण, क्षुधा, पिपासा, बन्धन, वध आदि बैलके दुःखको तथा उस पंचनमस्कारके देनेवालेको याद किया (४४) सम्यग्ज्ञान प्राप्त किये हुए बालकने एक ऊँचा जिनमन्दिर बनवाया और उसमें अपने अनुभूतसे चित्रित एक पट स्थापित किया । (४५) और अपने आदमियोंसे कहा कि, जो इस चित्रका परमार्थ निश्चयपूर्वक जानता हो उसके बारेमें मुझे फौरन आकर कहो । (४६) एकदिन वन्दनकी इच्छावाला पद्मरुचि उस जिनालय में आया । वन्दन करके विविध वर्णोंसे युक्त उस चित्रपटको उसने देखा । (४७) जब आँखें गाड़कर पद्मरुचि उस चित्रपटको देखने लगा तब आदमियोंने जाकर राजपुत्रसे कहा । (४८) मत हाथी पर आरुढ़ वह बड़े भारी ऐश्वर्यके साथ उस जिनमन्दिरमें गया । आनन्द में आये हुए उसने हाथी परसे उतरकर पद्मरुचिको प्रणाम किया। (४६) पैरों में गिरते हुए राजकुमारको रोककर पद्मरुचिने अत्यन्त पीड़ासे युक्त उस बैलके दुःखके बारेमें सब कुछ कहा । (५०) तब राजकुमारने कहा कि मैं वह बैल हूँ । आपके अनुग्रहसे राजाका पुत्र हुआ हूँ और १. सिद्धीतणओ जाओ — प्रत्य• । २. ओयरियं त० - प्रत्य० । ३. निययभवचितिथं मु० । www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
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