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________________ ६. २० ] ६६. रामसोयपव्वं ॥ पडुपडह - भेरि-झल्लर-आइङ्ग-मुइङ्ग सङ्खसद्देणं । मङ्गलगीयरवेण य, न सुइ लोगो समुल्लावं ॥ ६ ॥ एवं सा नणयसुया, परियणपरिवारिया महिड्डीए । सुरवासहरसरिच्छं, नरवइभवणं अह पविट्ठा ॥ ७ ॥ परितुट्टमणा सोया, तत्थऽच्छइ वज्जनङ्घनरवइणा । पुइज्जन्ती अहियं, बहिणी भामण्डलेणेव ॥ ८ ॥ जय जीव नन्द सुइरं, ईसाणे! देवए ! महापुज्जे ! | कल्लाणी ! सुहकम्मे !, भण्णइ सीया परियणेणं धम्मक हासत्तमणा धम्मरई धम्मधारणुज्जुत्ता | धम्मं अहिलसमाणी, गमेइ दियहे तहिं सीया ॥ अह सो कयन्तवयणो, अहियं खिन्नेसु वरतुरंगेसु । सणियं अइक्कमन्तो पउमस्यासं समणुपत्तो ॥ काऊण सिरपणामं, नंपइ सो देव! तुज्झ वयणेणं । एगागी जणयसुया, गुरुभारा छड्डिया रणे ॥ सीह - ऽच्छभल्ल - चित्तय-गोमाऊर सिय भीमसद्दाले । खर- फरुसचण्डवाए, अन्नोन्नालीढदुमगहणे ॥ जुज्झन्तवग्घ-महिसे, पञ्चमहावडियमत्तमाङ्गे । नउलोरगसंगामे, सीहचवेडाहयवराहे ॥ सरभुत्तासियवणयर – कडमडभज्जन्त रुक्खसद्दाले । करयररडन्त बहुविह — कर च्छडाझडियपक्खि उले ॥ गिरिनइसलिलुद्धाइय-निज्झरझंझत्तिझत्तिनिग्घोसे । तिबछुहापरिगहिए, अन्नोन्नच्छिन्नसावजे ॥ एयारिसविणिओगे, भयंकरे विविहसावयसमिद्ध । तुज्झ वयणेण सोया, सामि ! मया छड्डिया रणे ॥ नणं सुदुद्दिणाए, जं भणियं देव! तुज्झ महिलाए । तं निसुणसु संदेसं, साहिज्जन्तं मए सबं ॥ पायप्पड वगया, सामि ! तुमे भणइ महिलिया वयणं । अहह्यं नह परिचत्ता, तह निर्णधम्मं न मुञ्चिहिसि ॥ नेहाणुरागवसगो वि, जो ममं दुज्जणाण वयणेणं । छड्डेहि अमुणियगुणो, सो निणधम्मं पि मुश्चिहइ ॥ २० ॥ ९ ॥ १० ॥ ११ ॥ १२ ॥ १३ ॥ १४ ॥ १५ ॥ १६ ॥ १७ ॥ १८ ॥ १९॥ आवाज़के कारण तथा मंगलगीतों की ध्वनिके कारण लोग बातचीत तक सुन नहीं सकते थे । (६) इस प्रकार परिजनों से घिरी हुई सीताने अत्यन्त ऐश्वर्यके साथ देवोंके निवासस्थान जैसे राजभवनमें प्रवेश किया। (७) भामण्डलकी भाँति बहन रूपसे वाजंघ राजा द्वारा अत्यन्त पूजित सीता मनमें प्रसन्न हो वहाँ रहने लगी । (=) हे स्वामिनी ! हे देवता ! हे महापूज्य ! कल्याणी ! हे शुभकर्मा ! तुम्हारी जय हो। तुम जीओ और चिरकाल पर्यन्त सुखी रहो इस प्रकार परिजनों द्वारा सीता कही जाती थी । (६) धर्मकथा में आसक्त मनवाली, धर्ममें प्रेम रखनेवाली, धर्मके धारणमें उद्यत और धर्मकी अभिलाषा रखनेवाली सोता वहाँ दिन बिताने लगी । (१०) Jain Education International ५०१ उधर अत्यधिक खिन्न उत्तम घोड़ोंसे शनैः शनैः रास्ता लाँघता हुआ कृतान्तवदन रामके पास आया । (११) सिरसे प्रणाम करके उसने कहा कि, देव ! आपके कहनेसे एकाकी और गर्भवती सीताको अरण्यमें मैंने छोड़ दिया है । (१२) हे स्वामी सिंह, ऋक्ष, भालू, चीते, और सियारकी भयंकर आवाज़से शब्दायमान, तीक्ष्ण और प्रचण्ड वायुवाले, एक-दूसरेके साथ जुड़े हुए वृक्षोंके कारण सघन, बाघ और भैंसे जिसमें जूझ रहे हैं सिहके द्वारा गिराये गये मदोन्मत्त हाथीवाले, न्योले और साँपकी लड़ाईवाले, सिंहके पंजे की मारसे मरे हुए सूअरोंवाले, शरभ ( सिंहकी एक जाति) के द्वारा त्रस्त वनचरों से व्याप्त, कड् कड् ध्वनि करके टूटनेवाले वृक्षोंसे शब्दित, कर-कर शब्द करके रोते हुए तथा ओले और बिजलीके कारण नीचे गिरे, हुए नानाविध पक्षी समूहोंसे व्याप्त, पहाड़ी नदियोंके पानी से छाया हुआ और झरनोंकी जल्दी-जल्दी आनेवाली झन भन ध्वनिके निर्धोपसे युक्त, तीव्र क्षुधासे जकड़े हुए और एक-दूसरेको मारनेवाले जंगली जानवरोंसे भरे हुए ऐसे भयंकर और अनेक प्रकारके जानवरोंसे समृद्ध जंगलमें आपके कहनेसे मैंने सीताको छोड़ दिया है । (१३-७) हे देव ! नेत्रोंमें अनुरूपी बादलोंसे व्याप्त आपकी पत्नीने जो सन्देश कहा था वह सारा मैं कहता हूँ । उसे सुनें। (१८) 3 For Private & Personal Use Only हे स्वामी ! आपके चरणों में गिरकर आपकी पत्नीने यह वचन कहा कि जिस तरह में छोड़ दी गई हूँ, उस तरह जिनधर्म को तुम मत छोड़ना । (१६) जो स्नेहरागके वशीभूत हो कर भी गुणोंको न पहचान कर दुर्जनोंके वचनसे मेरा त्याग कर १. पुज्जिज्जन्ती मु० । २. सुचिरं सरस्सई दे० - प्रत्य० । ३. अण्णोष्णाछित्तसा० - प्रप्य० । ४. मए प्रत्य० । • णभत्तिं न मु० । ६. मुच्चिहिसि मु० । www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
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