SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३. रक्खसर्वसाहियारो ससिओ चुओ समाणो, कुलंधरो रायवलि समुप्पन्नो । अवरो त्थ 'पुस्सभूई, तत्थेव पुरोहिओ जाओ ॥ १०४ ॥ मित्ता होऊण तओ, पीई छेतूण सइरिणीऍ कए । अह पुस्सभूइ एत्तो, इच्छइ य कुलंधरं हन्तुं ॥ १०५ ॥ तरुमूलगयस्स तहा, धम्म सोऊण साहुपासम्भि । नरवइपरिक्खिओ सो, उवसन्तो पुणनोएण ॥ १०६ ॥ दळूण 'पुस्सभूई, विभवं धम्मस्स गहियवय-नियमो । कालं काऊण तओ, सणंकुमारे समुप्पन्नो ॥ १०७ ॥ काऊण निणवरतवं, तत्थेव कुलंधरो वि आयाओ। ते दो वि चुयसमाणा, धायइसण्डे समुप्पन्ना ॥ १०८ ।। नयरे अरिंजयपुरे, जयावईकुच्छिसंभवा जाया । कूरा-ऽमरवणुनामा, भिच्चा उसहस्स रायाणो ॥ १०९ ॥ अह नरवईण समयं पबज्जं गेण्हिऊण कालगया । परिनिवुओ नरिन्दो, ते सहसारे समुप्पन्ना ॥ ११० ॥ ससि पढमं तत्थ चुओ, जाओ च्चिय मेहवाहणो एसो । आवलिओ वि हु एत्तो, सहस्सनयणो समुप्पन्नो ॥ १११ ।। सगरचक्रि-सहस्रनयनयोः सम्बन्धःतो भणइ चक्कवट्टी, सहस्सनयणे विभू ! परिकहेहि । पीई मे अहिययरा, केण निमित्तेण उप्पन्ना ? ॥ ११२ ।। अह साहिई पवत्तो, तित्थयरो पुवजम्मसंबन्धं । भिक्खादाणफलेणं, देवत्तं रम्भओ पत्तो || ११३ ॥ सोहम्माउ चवित्ता, चन्दपुरे नरवइस्स भजाए । वरकित्तिनामधेओ, पबज्जं गेण्हिऊण मओ ॥ ११४ ।। देवो होऊण चुओ, अवरविदेहे तओ समुप्पन्नो । चन्दमइ-महाघोसस्स नन्दणो रयणसंचपुरे ॥ ११५ ॥ हुआ, जब कि दूसरा वहींपर पुष्पभूति नामका पुरोहित हुआ। (१०४) मित्र होकरके भी एक वेश्याके लिए उन दोनोंने मैत्री तोड़ डाली। अब तो पुष्पभूति कुलन्धरकी हत्याको इच्छा करने लगा। (१०५) एक बार एक वृक्षके नीचे बैठे हुए किसी साधुके पाससे कुलन्धरने धर्मोपदेश सुना। राजाने उसकी परीक्षा की और पुण्यके योगसे वह उवशान्त बना । (१०६) पुष्पभूतिने धर्मका वैभव देखकर व्रत नियम अंगीकार किये। बादमें मरकर वह सनत्कुमार देवलोक में उत्पन्न हुआ। (१०७) जिनवर द्वारा उपदिष्ट तपका आचरण करके कुलन्धर भी वहीं सनत्कुमार देवलोकमें उत्पन्न हुआ। वहाँसे वे दोनों च्युत होकर धातकीखण्डमें उत्पन्न हुए । (१०८) अरिंजयपुर नामके नगरमें जयावतीकी कुक्षिसे उत्पन्न वे दोनों कर तथा अमरधनुके नामसे ऋषभ राजाके भृत्य हुए । (१०९) राजाके साथ ही प्रव्रज्या लेकर वे स्वर्गवासी हुए। राजाने मोक्ष प्राप्त किया, जब कि वे दोनों सहस्रार नामके देवलोकमें उत्पन्न हुए । (११०) शशी वहाँसे प्रथम च्युत होकर इस मेघवाहनके रूपसे पैदा हुआ और आवलिक भी यहाँपर सहस्रनयनके नामसे उत्पन्न हुआ। (१११) इसपर चक्रवर्ती सगरने पूछा कि-'हे विभो ! सहस्रनयनके ऊपर मेरी सविशेष प्रीति क्यों है? इसके बारेमें आप कहें ।' (११२) इस पर पूर्वजन्मके सम्बन्धको बतलाते हुए तीर्थकरने कहा-'भिक्षादानके फलस्वरूप रम्भकने देवत्व प्राप्त किया। (११३) वह सौधर्ममें देवलोकसे च्युत होकर चन्द्रपुरमें राजाकी भार्याकी कुक्षिसे वरकीर्ति नामसे उत्पन्न हुआ। प्रव्रज्या लेने के पश्चात् वह मरकर देव हुआ। वहाँसे च्युत होकर अपर विदेहमें आये हुए रत्नसंचयपुर नामक नगरमें चन्द्रमती एवं महाघोषके पुत्र रूपसे उत्पन्न हुआ। (११४-१५) वहाँसे प्रव्रज्या लेकर वह पयोबल नामका मुनि हुआ। मरनेके पश्चात् प्राणतकल्प नामक देवलोकमें देवरूपसे उत्पन्न होनेके अनन्तर वहाँसे च्युत होकर भरतक्षेत्रमें पृथ्वीपुर १-२. विस्तभूई-प्रत्य० । ३. सो सामन्तो पुण्ण-मु० । ४. विस्सभूई-प्रत्य० । ५. परिकहेह-प्रत्य। ६. णमुप्पन्नाप्रत्यः । ७. पब्बज्जा-मु०। ८. जैनशास्त्रोंमें वर्णित भूगोलके अनुसार मनुष्याकृति मध्यलोकके ठीक बीच में एक लाख योजन विस्तृत जम्बूद्वीप आया है। इसके चारों ओर दो लाख योजन विस्तृत लवणसमुद्र है। इस लवणपमुद्रके चारों ओर उससे दुगुना अर्थात् चार लाख योजन विस्तृत धातकी-खण्ड है। इसमें जम्बूद्वीपकी अपेक्षा मेरु, वर्ष एवं वर्षधर पर्वतोंकी संख्या दूनी है अर्थात् इसमें दो मेरु, चौदह वर्ष और बारह वषधर पर्वत हैं । विशेषार्थी तत्त्वार्थसूत्र ३. ७-१८ का विवेचन देखें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy