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पउमचरियं
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३५॥ ३६ ॥ पज्जलिओ ॥ ३७ ॥
तत्थेव आसि गामे, विप्पो सो कुच्छियं तवं काउं । कालगओ सुरलोए, देवो अप्पिडिओ नाओ ॥ तत्तो ुओ समाणो, नलणसिहो बम्भणो समुन्नो । सिरिवणस्स तइया, पुरोहिओ सच्चवाई सो ॥ वणियस्स तेण दबं, अवलत्तं तत्थ नियमदुत्तस्स । गणियाऍ तओ विप्पो, नामामुद्दं जिओ जूए ॥ गन्तूण तस्स गेहं नामामुद्दच्छलेण रयणाई | चेडीऍ आणिऊणं, समप्पियाई च वणियस्स ॥ घेत्तू य सबस्सं, विप्पो निबासिओ पुरखराउ | वेरम्गसमावन्नो, काऊण तवं समादत्त ॥ मरिऊण य माहिन्दे देवो होऊण वरविमाणम्मि । तत्तो चुओ समाणो, उप्पन्नो विज्जुदाढो ति ॥ सिहिबद्धणो वि य तवं, काउं देवत्तणाउ चविऊणं । अवरविदेहम्मि तओ, नाओ हं संजयन्तमुणी ॥ तेणाणुबन्धजणिओ, कोवग्गी दरिसणिन्धणाद्दण्णो । विज्जाहरस्स एहि, उवसग्गनिहेण जो आसि नियमदत्तो, सो विहु धम्मं पुगो समज्जेउं । मरिऊण तुमं एसो, धरणिन्दत्ते समुत्पन्नो ॥ सोऊण पगयमेयं, खाऊणं मुणि सरणिन्द्रं । परिचयइ विसयसोक्खं, दिक्खाभिमुहो निवो जाओ धरणिन्द्रो मुणिवसहं, काऊण पयाहिणं च तिक्खुत्तो । सबपरिवारसहिओ, निययट्टाणं गओ सहसा ॥ अह तत्थ विज्जुदाढस्स नन्दणो दढरहो ति नामेणं । तस्स वि य पट्टवन्धं काऊण तवं गओ मोक्खं ॥ ततो य आसधम्मो, नाओ अस्सायरो कुमारवरो । आसद्धओ नरिन्दो, पउमनिहो पउममाली य ॥ पउमरह सीहवाहो, मयधम्मो मेहसीह संभूओ । सीहद्धओ ससको, चन्द्रको चन्द्रसिहरो य ॥ इन्दरहो चन्दरहो, ससङ्कधम्मो य आउहो चेव । रत्तट्टो हरिचन्दो, पुरचन्दो पुण्णचन्दो य ॥ बालिन्द चन्दचूडो, गयणिन्दु दुराणणो नरवरिन्दु । राया य एकचूडो, दोचूड तिचूड चउचूडो ॥ जाओ य वज्जचूडो, बहुचूडो सीहचूडनामो य । जलणजडि अक्कतेओ, एवं विज्जाहरा बहुसो ॥
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वह सत्यवादी ब्राह्मण श्रीवर्द्धन राजाका लिया। बाद में वह ब्राह्मण एक गणिका के नामसे अंकित मुद्राके बहाने दासी उसके राजाके पास नालिस करने पर उसने सर्वस्व करने लगा । (३४) मर करके वह माहेन्द्र विद्युष्ट्र रूपसे उत्पन्न हुआ । (३५) श्रीवर्धन
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हुआ । (३०) वहाँ से च्युत होने पर वह ज्वलनशिख नामका ब्राह्मण हुआ । पुरोहित हुआ । (३१) उसने नियमदत्त नामक एक बनियेका द्रव्य छिन पास गया और वहाँ जूएमें अपने नामसे अंकित मुद्रा हार गया । (३२) ( पुरोहितके) घर पर जाकर रत्न ले आई और बनियेको वे दे दिए। ( ३३ . लेकर ब्राह्मणको नगरसे निर्वासित कर दिया। वैराग्निसे जलता हुआ वह तप नामके उत्तम विमानमें देव रूपसे उत्पन्न हुआ। वहाँ से च्युत होकर वह भी तप करके देव रूपसे उत्पन्न हुआ और वहाँसे च्युत होकर अपरविदेह क्षेत्रमें संजयन्त मुनिके रूपमें पैदा हुआ वही मैं हूँ । ( ३६ ) उस कर्मके अनुबन्धसे जनित तथा दर्शन रूपी इन्धनसे व्याप्त विद्याधरकी क्रोधाग्नि उपसर्गके रूपमें यहाँ प्रज्वलित हुई । (३७) जो नियमदत्त था वह भी धर्म उपार्जित करके मरनेके पश्चात् तुम धरेन्द्र के रूपमें उत्पन्न हुए' । (३८) यह वृत्तान्त सुनकर धरणेन्द्र और मुनिसे भी क्षमा याचना करके विद्याधर राजाने विषयसुखका त्याग किया और दीक्षाकी ओर अभिमुख हुआ । (३९) बादमें सपरिवार धरणेन्द्र भी मुनिवरको प्रदक्षणा देकर अपने स्थानमें शीघ्र चला गया । (४०) विद्युदंष्ट्रका दृढरथ नामका पुत्र था। उसे राज्य सौंपकर तथा स्वयं तप करके वह मोक्षमें गया । ( ४१ ) उससे अश्वधर्मा पैदा हुआ, अश्वधर्माका कुमार अश्वादर हुआ । उससे क्रमशः श्रश्वध्वज, पद्मनीभ, पद्ममाली, पद्मरथ, सिंहवाह: मृगधर्म, मेघसिंह, सिंहध्वज, शशांक, चन्द्रांक चन्द्रशिखर, इन्द्ररथ, चन्द्ररथ, शशांकधर्म, आयुध. हरिश्चन्द्र पुरचन्द्र, पूर्णचन्द्र, बालेन्दु, चन्द्रचूड, गगनेन्दु, दुरानन, एकचूड, द्विचूड़, त्रिचूड, चतुश्वड, वज्रचूड, बहुचूड, सिंहचूड तथा ज्वलनजी एवं अर्कतेजा - इस प्रकार अनेक विद्याधर राजा हुए। (४२-४६ ) इनमें से कई मोक्षमें गए तो दूसरे कई गुणशाली एवं १. चंदको प्रत्य० ।
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