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________________ २. सेणियचिंताविहाणं मगधा जनपदः इह जम्बुदीवदीवे, दक्खिणभरहे महन्तगुणकलिओ। मगहा नाम जणवओ, नगरा-ऽऽगरमण्डिओ रम्मो ॥ १॥ गाम-पुर-खेड-कब्बड-मडम्ब-दोणीमुहेसु परिकिष्णो । गो-महिसि-वलवपुण्णो, धणनिवहनिरुद्धसीमपहो ॥ २॥ सत्थाह-सेटि-गहवइ-कोडुम्बियपमुहसुद्धजणनिवहो । मणि-कणग-रयण-मोत्तिय-बहुधन्नमहन्तकोट्ठारो ॥ ३ ॥ देसम्मि तम्मि लोगो, विन्नाणवियक्खणो अइसुरूवो । बल-विहव-कन्तिजुत्तो, अहियं धम्मुज्जयमईओ ॥ ४ ॥ नड-नट्ट-छत्त-लङ्खयनिच्चनच्चन्तगीयसद्दालो । नाणाहारपसाहियभुजाविजन्तपहियजणो ॥५॥ अहियं वीवाहूसववियावडो गन्धकुसुमतत्तिल्लो । बहुपाण-खाण-भोयण-अणवरयंवडिउच्छाहो ॥ ६ ॥ पुक्खरणीसु सरेसु य, उज्जाणेसु य समन्तओ रम्मो। परचक्क मारि-तक्कर-दुब्भिक्खविवन्जिओ मुइओ ॥ ७॥ राजगृहनगरम् तस्स बहुमज्झदेसे, पायारुब्भडविसालपरिवेढं । नयरं चिय पोराण, रायपुरं नाम नामेणं ॥८॥ वरभवण-तुङ्गतोरण-धवलट्टालय कलङ्कपरिमुक्कं । फलिहासु संपउत्तं. कविसीसयविरइयाभोयं ॥९॥ २. श्रेणिक-चिन्ता-विधान मगध-वर्णन यहाँ जम्बूद्वीप नामक द्वीपमें आए हुए दक्षिण भरत नामके क्षेत्र में अनेक गुणोंसे सम्पन्न तथा नगर एवं खानोंसे सुशोभित मगध नामका जनपद आया हुआ है। (१) प्राम, पुर, खेट', कर्बट२, मडम्ब, द्रोणीमुख", आदि विविध प्रकारके नगरोंसे यह परिव्याप्त था। यह गाय, भैंस तथा घोड़े-घोड़ियों से परिपूर्ण था और सीमा तक जानेवाले इसके मार्ग धनके समूहसे अवरुद्ध-से रहते थे। (२) सार्थवाह, श्रेष्ठी, गृहपति, कौटुम्बिक आदि उत्तम लोगोंके समूह इसमें निवास करते थे। इसके बड़े बड़े कोष्ठागार मणि, सुवर्ण, रत्न, मोती तथा प्रचुर धान्यसे भरे-पूरे थे। (३) इस देशमें लोग विभिन्न विज्ञानोंमें विचक्षण थे, अत्यंत सुन्दर थे, बल, वैभव व कान्तिसे युक्त थे तथा धर्मका किस प्रकार अधिक उद्द्योत हो ऐसा सोचने-विचारनेवाले थे। (४) यह देश नृत्य एवं संगीतसे सर्वदा शब्दायमान रहता था। इसमें नट, नर्तक, छत्रधारी एवं बाँसपर खेलनेवाले नट लोग अपने कौशलका परिचय सदा दिया करते थे। इसमें पथिकजनोंको नानाविध आहार तैयार करके खिलाया जाता था। (५) यहाँ पर लोग बहुधा विवाहोत्सवमें व्याप्त रहते थे और इत्र व फूलों के बहुत शौकीन थे। खाद्य, पेय एवं भोजनमें यहाँ के निवासियोंका उत्साह सतत बढ़ता ही रहता था। (६) यह देश चारों ओर सरोवरों, झीलों एवं उद्यानोंसे व्याप्त होनेके कारण सुन्दर दोखता था। परराज्यके आक्रमण, संक्रामक रोग, चोर एवं दुर्भिक्षसे रहित होनेकी वजह से सुखी था। (७) राजगृह नगरीका वर्णन इसके ठीक मध्य भागमें मजबूत और विशाल किलेसे घिरा हुआ राजपुर (राजगृह ) नामक एक प्राचीन नगर था। (८) इसमें किसी भी प्रकारके कलंकसे मुक्त ऐसे भवन, ऊँचे तोरण तथा धवल अट्टालिकाएँ थीं। यह खाइयोंसे घिरा था तथा इसके प्राकारका अप्रभाग बन्दरोंके मुंहके जैसे आकारोंसे सुशोभित किया गया था। (९) अनेकविध व १. धूलिके प्राकारवाला अथवा नदियों और पर्वतोंसे परिवेष्टित नगर। २. स्वराव या कुत्सित नगर । ३. जिसके चारों ओर एक योजन पर्यन्त कोई गाँव या बस्ती न हो ऐसा गाँव । ४. जल और स्थलके मार्गवाला नगर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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