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१. ९०]
पउमचरियं
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दहमुहपवेसणं चिय, भवणं जिणसन्तिसामिनाहस्स । तह पाडिहेरगमणं, लङ्काऍ पवेसणं चेव ॥ ७८ ॥ चकुप्पत्ती तह लक्खणस्स दहमुहविवायणं चेव । वरजुवईण पलावं, आगमणं चेव केवलिणो ॥ ७९ ॥ इन्दइपमुहाण तहा, दिक्खा सीयासमागमं वत्तं । नारयलङ्कागमणं, साएयपुरीषवेसं च ॥ ८० ॥ बभवाण य चरियं, भरहगयाणं जहां समक्खायं । भरहस्स य पबज्जा, ठविओ च्चिय लक्खणो रज्जे ॥ लद्धा मणोरमा वि य, सिरिवच्छालीढदेहधारिस्स । मरणं च समावन्नं सुमहल्लवणस्स संगामे ॥ महुरापुरिदेसस्स य, उवसग्गविणासणं जणवयस्स । सत्तरिसीण उवत्ती, सीयानिबासणं चेव ॥ अह वज्जजङ्घनरवई, दिट्ठा सीया लवकुसुप्पत्ती । जेऊण नरवरिन्दे, पियरेण समं कयं जुज्झं सयल जण भूमणाणं, नाणुप्पत्ती सुराण आगमणं । वत्तं च पाडिहेरं, सीयाए भीसणभवोहं ॥ घोरं तवोविहाणं, कयन्तवयणे सयंवरे खोहं । दिक्खा य कुमाराणं, भामण्डलदुग्गई चेव ॥ हणुयस्स य पबज्जा, लक्खणपर लोग गमणहेउम्मि । लवणंकुसाण य तवो, रामपलावं च सोगं च ॥ पुबभवदेवजणियं, दिक्खं चिय राघवस्स निग्गन्थं । केवलनाणुप्पत्ती, तहेव निबाणगमणं च ॥ सबं पि एवमेयं, मुणन्तु इह सज्जणा य मज्झत्था । सिद्धिपहं संपत्तं, पउमं विमलेण भावेण ॥ एयं अट्टमरामदेवचरियं वीरेण सिद्धं पुरा, पच्छा उत्तमसाहवेहि धरियं लोगस्स उब्भासियं । एत्ता विमलेण पायडफुडं गाहानिबद्धं कयं सुत्तत्थं नियुणन्तु संपइ महापुण्णं पवित्तक्खरं ॥ ९० ॥ ॥ इति पउमचरिए सुत्तविहाणो नाम उद्देसो समत्तो ॥
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तथा विशल्याका आगमन, (७७) १२६. जिनेश्वर श्री शान्तिनाथके मन्दिर में रावणका प्रवेश, १२७. वहाँ अष्ट प्रातिहार्योंकी रचना, १२८. रावणका लंका में प्रवेश, (७८) १२९ चक्रकी उत्पत्ति, १३० लक्ष्मण द्वारा रावणका वध, १३१ सुन्दर युवतियोंका विलाप, १३२. केवलीका आगमन, (७९) १३३. इन्द्रजित् तथा दूसरोंका दीक्षा अंगीकार करना, १३४ सीताका समागम, १३५. नारदका लंकामें आगमन, १३६. साकेत नगरी में प्रवेश (८०) १३७ भरत एवं हाथी के पूर्वभवकी कथा, १३८. भरतकी प्रव्रज्या, १३९. लक्ष्मणका राजगद्दी पर बैठना. (८१) १४०. मनोरमाकी प्राप्ति. १४१. श्रीवत्ससे युक्त देहको धारण करनेवाले महान् लवणको संग्राम में मृत्यु, (५२) १४२ मथुरा नगरी और उसके जनपदका दैविक उपसर्गों द्वारा विनाश, १४३. सप्तर्षियोंका आगमन, १४४. सीताका निर्वासन, ( ८३) १४५. वाजंघ राजाका सीताको देखना, १४६. लवण एवं अंकुशकी उत्पत्ति, १४७ दूसरे राजाओं पर विजय प्राप्त करनेवाले पिताके साथ युद्ध, ( ८४) १४८ सकलजनभूषणको केवलज्ञान तथा देवताओंका आगमन, १४९. अष्टप्रातिहार्योंकी रचना, १५०. सीताका भीषण भवसागर और तपश्चर्या, १५१. कृतान्तवक्त्रका स्वयंवर में क्षोभ १५२. कुमारोंका दीक्षा लेना, १५३. भामण्डलकी दुगंति, ( ८५-६) १५४. हनुमानकी प्रव्रज्या, १५५. लक्ष्मणकी मृत्यु पर रामका विलाप व शोक प्रदर्शन (८७) १५६. लवण और अंकुशका तप, १५७. पूर्वभव के मित्र देव द्वारा प्रबुद्ध किए जाने पर रामका निर्ग्रन्थ प्रव्रज्या लेना, १५८. केवलज्ञानकी उत्पत्ति तथा मोक्षगमन. (5) सज्जन व तटस्थ दृष्टिसे विचार करनेवाले पुरुष मोक्ष प्राप्त करनेवाले रामके विषय में यह सब कुछ निर्मल भावसे सुनें । (८९) आठवें बलदेव रामकी यह कथा पहले भगवान् महावीरने कही थी। बादमें लोकको प्रकाशित करनेवाली यह कथा उत्तम साधुओंोंने धारण की - याद रखी। अब विमलने इसे स्पष्ट एवं विशद रूपसे गाथाओं में निबद्ध किया है। अत्यन्त पुण्यदायी और पवित्र अक्षरोंसे गुम्फित यह शास्त्र एवं इसके अर्थको अब तुम अवधानपूर्वक सुनो । (९०)
पद्मचरित में सूत्रविधान नामका प्रथम उद्देश समाप्त हुआ ।
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१. अशोकवृक्ष, देवताओं द्वारा पुष्पदृष्टि दिव्यध्वनि चामर, आसन. भामण्डल, दुन्दुभि और छत्र ये आठ प्रातिहार्य ( देवताकृत पूजा विशेष ) हैं । इनका संग्रह श्लोक इस प्रकार है- "अशोकवृक्षः सुरपुष्पवृष्टिः दिव्यध्वनिश्वामरमासनं च । भामण्डलं दुन्दुभिरातपत्रं सन्प्रातिहार्याणि जिनेश्वराणाम् ॥”
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