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पउमचरियं
[१.६२भूयाडवीऍ मझे, पवणञ्जयखेयरस्स य निओगं। तह दरिसणूसवसुह. विज्जाहरिअञ्जणाएँ समं ॥ ६२ ॥ पवणञ्जयपुत्तमहाबलस्स तह दारुणं रणं परमं । रज्जं दसाणणस्स य. जिणउस्सेहन्तरं चेव ॥ ६३ ॥ बल-केसव-पडिसत्तण चेट्टियं चक्वट्टिपमुहाणं । दसरहरज्जप्पत्ती, केगइवरसंपयं परमं ॥ ६४ ॥ इन्देण समं जुज्झं, काऊण य गिण्हियं दहमुहेणं । संवेगसमावन्नो. नरवइ दिक्खं समणुपत्तो ॥ ६५ ॥ रामस्स लक्खणस्स य, भरहस्स य तह य संतुनिहणस्स । उप्पत्ती सीयाए, विदेह तह सोगसंबन्धं ॥ ६६ ॥ नारयसीयालिहणं, दट्टण सहोयरस्स मूढत्तं । कन्नासयंवरत्थं, उप्पत्ती चावरयणस्स ॥ ६७ ॥ दसरहनिवस्स दिक्खं, पासे मुणिसबभूयसरणस्स । ववगयभवाण कहणं, समागमं चेव सीयाए ॥ ६८ ॥ केगइवरस्स लम्भ, रज्जं भरहस्स परममाहप्पं । तह लक्खणो य रामो, सीया य गया विदेसम्मि ॥ ६० ॥ तह वज्जकण्णनरवइ-विचेट्टियं वरकुमारिलम्भं च । वसिकाररुद्दभूई. विमोयणं वालिखिल्लस्स ॥ ७० ॥ अरुणुग्गामासन्ने, रामपुरिनिवेसणं परमरम्मं । वणमालासंजोयं, अइविरियसमुन्नई चेव ॥ ७१ ॥ लाभो जियपउमाए, कुल-देसविहूसणाण उवसगं । वंसगिरिमत्थओवरि, जिणहरकरणं च रामेण ॥ ७२ ॥ दट्टण दाणविभवं, जडाउणो नियमलद्धमाहप्पं । नागरहारोहं चिय. संबुक्कविबायणं चेव ॥ ७३ ॥ केगइपुत्तागमणं, खरदूसणविग्गहं परमघोरं । सीयाहरणनिमित्तं. सोगं चिय रामदेवस्स ॥ ७४ ॥ सिग्धं विराहियस्स य, आगमणं दूसणस्स य बहं च। रयणजडिविजनासं, सुग्गीवसमागमं चेव ॥ ७५ ॥ साहसगइस्स य वह, सीयापडिवत्तिकारणं लम्भं । मिलणं विहीसणेणं, विज्जाबलकेसिसंपत्ती ॥ ७६ ॥ तह कुम्भयण्ण-इन्दइभुयङ्ग पासेसु बन्धणं परमं । लक्खणसत्तिपहारं, तह य विसल्लागर्म चेव ॥ ७७ ॥
८२. विद्याधरी अंजनाके साथ पुत्रदर्शनका आनन्द एवं उत्सव, (६२) ८३. पवनंजयपुत्र महाबली हनुमान का घोर संग्राम, ८४. दशाननका राज्य, ८५. जिनोंकी ऊँचाई और एक दूसरे से अन्तर, (६३) ८६. चक्रवर्ती, बलदेव एवं केशव जैसे शत्रुओं के प्रयत्न, ८७. दशरथके राज्यकी उत्पत्ति, ८८-९ कैकेई द्वारा वरकी प्राप्ति, (६४) ९० इन्द्रके साथ युद्ध
और दशमुखके द्वारा उसका पकड़ा जाना, ९१ वैराग्य आनेमे राजाके द्वारा दीक्षा ग्रहण करना, (६५) ९२. राम, लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न तथा सीताका जन्म, ९३. विदेहमें शोकका कारण, (६६) ९४. नारद द्वारा सीताका चित्र बनाना, ९५. चित्र देखकर सगे भाईका मोहित होना, ९६. कन्या (सीता) के स्वयंवरमें उपयोगमें आनेवाले उत्तम धनुषको उत्पत्तिका वर्णन, (६७) ९७. सर्वभूतशरण नामके मुनिके पास राजा दशरथका दीक्षा लेना, ९८. गत जन्मोंका कथन, ९९. सीताका समागम, (६८) १००. कैकेयी द्वारा वरकी प्राप्ति, १०१. भरतको विशाल राज्यका मिलना तथा राम, लक्ष्मण एवं सीताका विदेशमें गमन (६९) १०२. वनकर्ण नरपतिका चरित, १०३. उसके द्वारा राजकुमारीकी प्राप्ति, १४. रुद्रभूतिकी अधीनता तथा वालिखिल्यकी मुक्ति, (७०) १०५. अरुणग्रामके पास रामपुरी' नामक अत्यन्त सुन्दर आवासकी रचना, १०६. वनमालाके साथ मिलन, १०७. अतिवीयकी उन्नति, (७१) १०८. जितपद्माकी प्राप्ति, १०९. कुलभूषण तथा देशभूषण नामक साधुओं पर उपसर्ग, ११०. वंश नामके पर्वतके शिखर पर गम द्वारा जिनभवनका निर्माण, (७२) १११ दानका वैभव देखकर जटायुका नियम ग्रहण करना और उससे उसकी महत्ताका बढ़ना. ११२. नागरथ पर चढ़ना और शंबूकका वध, (७३) ११३. कैकेयीके पत्र भरतका आगमन, ११४. खरदूषणके साथ अतिघोर संग्राम, ११५. सीताके अपहरणके कारण रामका शोक,
११६. विगधितका शीघ्र आना, ११७. दूषणवध, ११८. रबजटीकी विद्याओंका नाश, ११६ सुप्रीवके साथ समागम, () १२०. साहसगतिका वध, १२१. सीता कहाँ पर हैं इसका समाचार मिलना, १२२. विभीषणका मिलन, १२३ विद्याबल एवं केशीकी प्राप्ति, (७६) १२४. कुम्भकर्ण एवं इन्द्रजीतका नागपाशमें जकड़ा जाना, १२५. लक्ष्मण पर शक्तिका प्रहार
१, शत्रुघ्नस्य
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