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५६. ७३] ५६. विज्जासन्निहाणपव्वं
३७५ अह मेहवाहणेणं. समरे भामण्डलो समाओ । रुद्धो विराहिएण, पविसन्तो वजणको वि॥ ५७॥ चक्केण वज्जणको, पहओ य विराहिएण रुटेणं । तेण वि सो वच्छयले, समाहओ चक्कपहरेणं ।। ५८ ॥ वाणरवई निरन्थो, लकानाहस्स नन्दणेण कओ। तेण वि य नट्ठियारी, आउहसयसंकुलं रइयं ॥ ५९॥ अवयरिऊण गयाओ, मन्दोयरिनन्दणो रहारूढो । पेसेइ वारुणत्थं, नवजलहरसहनिग्धोसं ॥ ६० ॥ अन्धारियं समत्थं, सेन्नं दट्टण वाणराहिवई । नासेर वारुणत्थं, सिग्घं सो मारुयत्थेणं ॥ ६१ ॥ घणवाहणो वि सत्थं, अग्गेयं मुयइ जणयतणयस्स । भामण्डलो नरिन्दो, नासेइह वारुणत्थेणं ॥ ६२ ॥ मन्दोयरी' पुत्तो, विरहं भामण्डलं रणे काउं । पेसेइ तामसत्थं, कज्जलघणकसिणसच्छायं ॥ ६३ ॥ न य पेच्छन्ति महियलं, आयासं नेव अप्पयं न परं । सुहडा पणट्ठचेट्टा, अवहियचक्खू तओ जाया ॥ ६४ ॥ घणवाहणेण एत्तो, विसधूमुग्गारपज्जलन्तेहिं । भामण्डलोऽतिगाढं, बद्धो चिय नागपासेहिं ॥ ६५ ॥ वाणरवई वि सिग्धं, भुयङ्गपासेहि बन्धिउं गाढं । उच्छूढो धरणियले, रावणपुत्तेण जेट्टेणं ॥ ६६ ॥ ते पेच्छिऊण दोण्णि वि, भुयङ्गपासेसु नरवई बद्धे । सह लक्खणेण पउमं, विभीसणो भणइ निसुणेह ॥ ६७ ॥ अह पेच्छ इन्दईणं, सरसंघट्टेण छाइयं गयणं । भामण्डल-सुग्गीवा, बद्धा वि हु नागपासेहिं ॥ ६८ ॥ बद्धे वाणरनाहे, विजिए भामण्डले इहं अम्हं । संघायपिण्डियाणं, होहइ मरणं न संदेहो ॥ ६९ ॥ अहं बले महायस!, एए दो नायगा महापुरिसा । जाया अणायगा वि हु, विज्जाहर-वाणराण चमू ॥ ७० ॥ विच्छिनछत्त-केऊ. संचुण्णेऊण रहवरं सिग्छ । गहिओ चिय पवणसुओ, सुबन्तं भाणुकण्णेणं ।। ७१ ॥ जाव य धरणिनिसण्णे, भामण्डल-वाणराहिवे एए । न य गिण्हन्ति निसियरा, ताव निवारेहि गन्तूणं ॥ ७२ ॥
जाव य सोमित्तिसुर्य, आभासइ राहवो ससंभन्तो । जोहेइ भाणुकण्णं, ताव च्चिय अङ्गयकुमारो ॥ ७३ ॥ विराधितने चक्रसे वनक्रके ऊपर प्रहार किया तो उसने भी चक्रसे वक्षस्थलपर प्रहार किया। (५८) लंकाके स्वामी रावणके पुत्र इन्द्रजितने वानरपति सुग्रीवको निरस्त्रकर दिया। इच्छानुसार विहार करनेवाले उसने भी युद्धभूमिको सैकड़ों आयुधोंसे व्याप्त कर दिया। (५६) मन्दोदरीका पुत्र इन्द्रजित हाथीपरसे उतरकर रथपर सवार हुआ। नये बादलोंके समान गर्जना करनेवाला वरुणास्त्र उसने छोड़ा। (६०) समस्त सैन्यको अन्धकारसे व्याप्त देखकर वानराधिपतिने मारुतात्रसे उसका शीघ्र नाश किया। (६१) घनवाहनने भी जनकपुत्रके ऊपर आग्नेयास्त्र फेंका। भामण्डल राजाने वारुणास्त्रसे उसका नाश किया। (६२) मन्दोदरीके पुत्र इन्द्रजितने युद्ध में भामण्डलको रथहीन बनाकर काजल और बादलके समान कृष्ण कान्तिवाला तामसास्त्र छोड़ा । (६३) उस समय प्रणष्ट चेष्टावाले सुभट न जमीनको, न आकाशको, न अपनेको और न परायेको देख सकते थे। मानों आँखें छीन ली गई हों ऐसे वे हो गये । (६४) तब घनवाहनने विषाक्त धूम उगलनेवाले तथा प्रज्वलन्त ऐसे नागपाशों से भामण्डलको खूब मजबूतीसे बाँध लिया। (६५) रावणके ज्येष्ठ पुत्रने वानरपतिको भुजंगपाशोंसे मजबूतीसे बाँधकर जमीन पर पटक दिया। (६६)
उन दोनों राजाओंको नागपाशोंमें बद्ध देख लक्ष्मण सहित रामको विभीषणने कहा कि आप सुनें । (६७) आप इन्द्रजितको देखें। उसने बाणोंके समूहसे आकाश छा दिया है और नागपाशोंसे भामण्डल तथा सुग्रीव बाँधे गये हैं। (६८) वानरनाथ सुग्रीवके बद्ध तथा भामण्डलके पराजित होनेपर समूह रूपमें एकत्रित हमारा यहाँ मरण होगा, इसमें सन्देह नहीं। (६६) हे महायश! हमारे सैन्यमें ये दोनों महान् पुरुष नायक थे। विद्याधर और वानरोंकी सेना अब अनायक हो गई है। (७०) जिसके छत्र और पताका विच्छिन्न हो गये हैं ऐसे हनुमानके रथको शीघ्र ही चूर-चूर करके भानुकर्णने बिना किसी प्रकारकी शंकाके हनुमानको पकड़ लिया है। (७१) पृथ्वीपर बैठे हुए इन भामण्डल और सुग्रीवको जबतक राक्षस पकड़ते नहीं हैं तबतक आप जा करके इनको बचावें। (७२) जबतक राम घबराहटमें आकर लक्ष्मणसे कहते हैं। तबतक तो अंगदकुमार भानुकर्णके साथ युद्ध करने लगा। (७३) शस्त्रसमूह जिसमें गिर रहा है ऐसा युद्ध जबतक उन
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