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५६. २०] ५६. रावणबलनिग्गमणपव्वं
३६५ पन्ती तिउणा सेणा. सेणा तिउणा मुहं हवइ एक्कं । सेणामुहाणि तिणि उ, गुम्म एत्तो समक्खायं ॥ ५॥ गुम्माणि तिष्णि एका य वाहिणी सा वि तिगुणिया पियणा । पियणाउ तिण्णि य चमू ,तिणि चमूऽणिकिणी भणिया॥६॥ दस य अणिकिणिनामाउ होइ अक्खोहिणी अहऽक्खाया। संखा एक्वेक्कस्स उ, अङ्गस्स तओ परिकहेमि ॥ ७ ॥ एयावीस सहस्सा, सत्तरिसहियाणि अट्ठ य सयाणि । एसा रहाण संखा, हत्थीण वि एत्तिया चेव ॥ ८॥ एक्कं च सयसहस्स, नव य सहस्सा सयाणि तिण्णेव । पन्नासा चेव तहा, जोहाण वि एत्तिया संखा ॥ ९॥ पञ्चुत्तरा य सट्ठी, होइ सहस्साणि छ च्चिय सयाणि । दस चेव वरतुरङ्गा, संखा अक्खोहिणीए उ ॥ १० ॥ अट्ठारस य सहस्सा, सत्त सया दोणि सयसहस्साई । एक्का य इमा संखा, सेणिय ! अक्खोहिणीए य ॥ ११ ॥ अह एत्तो रामबलं, दट्टणं आगयं समासन्ने । रक्खसभडा वि तुरिया, सन्नद्धा वाहणसमग्गा ॥ १२ ॥ केइ भडा सहस त्ति य, सन्नाहसमोत्थया गहियसत्था । रुज्झन्ति कामिणीहिं, रणरसउक्कण्ठिया सूरा ।। १३ ।। सन्नाहकण्ठसुत्ते. घेत्तणं भणइ पिययम कन्ता । सामि ! रणे आवडियं, पहणेज्जसु अहिमुहं सुहडं ॥ १४ ॥ अन्ना पई नियच्छइ, जह पिढि रणमुहे न देसि तुमं । मा सहियणस्स पुरओ, ओगुढेि नाह ! काहिसि मे ॥ १५ ॥ का वि पियं रणतुरियं, अहियं ईसालुणी भणइ एवं । मोत्तूण मए सामिय !, किं तुह कित्ती पिया जाया ? ॥१६॥ अहिणववणकियं ते, नाह ! तुमं वयणपङ्कय एयं । जसलुद्धयस्स अहियं, चुम्बिस्से हैं पविहसन्ती ॥ १७ ॥ अन्ना वि वीरमहिला, चुम्बइ कन्तस्स चेव मुहकमलं । मोइज्जन्ती न मुयइ, कुसुमं पिव महुयरी सत्ता ॥ १८ ॥ अन्ना वि तत्थ सुहडी, कण्ठे दइयस्स गहियसत्थस्स । डोलायन्ती रेहइ, नलिणि ब महागइन्दस्स ॥ १९ ॥
एवं ते वरसुहडा, नाणाचेट्ठासु जणियसंबन्धा । अह भासिउँ पयत्ता, कन्तासंथावणुलावे ॥ २० ॥ सेनासे तिगुना एक सेनामुख होता है। तीन सेनामुखसे एक गुल्म कहा जाता है। तीन गुल्मोंकी एक वाहिनी, वह भी तिगुनी होनेपर एक पृतना, तीन पृतनासे एक चमू और तीन चमुओंकी एक अनीकनी होती है। (५-६) दस अनिकनियोंसे एक अक्षौहिणी कही जाती है। अब एक-एक अंगकी संख्या मैं कहता हूँ। (७) इक्कीस हजार, आठ सौ सत्तर-यह रथोंकी संख्या है। हाथियोंकी भी इतनी ही है। (८) एक लाख, नौ हजार, तीन सौ पचासइतनी योद्धाओंकी संख्या है। (इ) पैसठ हज़ार, छः सौ दस-एक अनौहिणीमें इतनी संख्यामें उत्तम घोड़े होते हैं। (१०) हे श्रेणिक ! एक अक्षौहिणीकी कुल संख्या दो लाख, अठारह हज़ार और सात सौ (२१,८७०+२१,८७०, +१,०९,३५०+६५,६१० = २,१८,७००) होती है (११)
उधर रामके सैन्यको समीप आया देख राक्षस-सुभट भी वाहनोंके साथ जल्दी ही तैयार हो गये। (१२) सन्नाह धारण किये हुए तथा शस्त्र लिये हुए रणरसमें उत्कण्ठित कई शूर सुभट स्त्रियों द्वारा रोके गये । (१३) सन्नाहका कण्ठसूत्र पकड़कर कोई कान्ता प्रियतमसे कहती थी कि, हे नाथ ! युद्धमें सामने आनेवाले सुभटको मार डालना । (१४) दूसरी स्त्री पतिसे कहती थी कि हे नाथ ! युद्ध में तुम पीठ मत दिखाना, अन्यथा सखियोंके समक्ष मुझे लज्जाके मारे घूघट निकालना पड़ेगा। (१५) युद्धके लिए अधिक जल्दी करनेवाले पतिको कोई ईर्ष्यालु स्त्री ऐसा कहती थी कि, हे स्वामी! मुझे छोड़कर क्या तुम्हें कीर्ति प्रिय हुई है ? (१६) हे नाथ! यशके लोभी तुम्हारे नये घावसे चिह्नित इस मुखकमलको मैं हँसकर अधिक चुम्बन करूंगी। (१७) अन्य कोई वीरमहिला पतिके मुखकमलका चुम्बन करती थी और पुष्पमें आसक्त भ्रमरीकी भाँति वह छुड़ाने पर भी नहीं छोड़ती थी। (१८) एक दूसरी महिला शस्त्र धारण किये हुए पतिके कएठमें,. महागजेन्द्र द्वारा गृहीत नलिनीकी भाँति, डोलती हुई शोभित हो रही थी। (१६)
इस प्रकार नानाविध चेष्टाओंसे प्रेम-भाव उत्पन्न किये हुए सुभट स्त्रियोंको सान्त्वना देनेके वचन कहने लगे। (२०) १. तत्थ महिला कण्ठे-प्रत्यः ।
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