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________________ ३६४ पउमचरियं सीहपुरा सोहा वि य, गीयपुरा मन्दिग य बहुणाया । लच्छीपुरा य किन्नर-गीया य तहा महासेला ॥ ५३ ॥ सुरणेउरा य मलया, सिरिमन्ता सिरिपहा य सिरिनिलया। ससिनाया य रिखुजया, मत्तण्डा भाविसाला य ॥ ५४॥ आणन्दा परिखेया, जोइसदण्डा जयास-रयणपुरा । जे एव पुराहिवई, अन्ने वि स गया सुहडा ॥ ५५ ॥ एए अन्ने य बहू, अहियं सन्नाह-आउहाईसु । पूएइ रक्खसवई, पिया व पुत्ते सिणेहेणं ॥ ५६ ॥ अक्खोहिणी सहस्सा, वन्ति चत्तारि बहुजणुद्दिट्टा । रावणबलस्स एवं, मगहवई! होइ परिमाणं ॥ ५७ ॥ अक्खोहिणीसहस्सं, एक चिय वाणराण सवाणं । भामण्डलेण समयं, भणियं चउरङ्गसेन्नस्स ॥ ५८ ॥ राया कइद्धयाणं, समयं भामण्डलेण उज्जत्तो । परिवेढिऊण रामो, लक्खणसहिओ ठिओ तत्थ ॥ ५९॥ पुण्णोदयम्मि पुरिसस्स दढा वि सत्त, मित्तत्तणं उवणमन्ति कयाणकारी। पुण्णावसाणसमए विमला वि बन्धू , वेरी हवन्ति निययं पि हु छिदभाई ॥ ६०॥ ॥ इय पउमचरिए विभीसणसमागमविहाणं नाम पञ्चावन्न पव्वं समत्तं ॥ ५६. रावणवलनिग्गमणपव्वं परिपुच्छइ मगहवई, गणाहियं पणमिऊण भावेणं । अक्खोहिणीऍ भयवं !, कहेहि एक्काएँ परिमाणं ॥ १ ॥ अह भणइ इन्दभूई, अट्टसु गणणासु भेयभिन्नासु । संजोएण चउण्हं, हवइ य अक्खोहिणी एक्का ॥ २ ॥ भेओऽत्थ पढम पन्ती, सेणा सेणामुहं हवइ गुम्म । अह वाहिणी उ पियणा, चमू तहाऽणिकिणी अन्तो ॥ ३ ॥ एक्को हत्थी एक्को य रहवरो तिण्णि चेव वरतुरया । पञ्चेव य पाइक्का, एसा पन्ती समुद्दिट्टा ॥ ४ ॥ मन्दिर, बहुनाद, लक्ष्मीपुर, किन्नरगीत, महाशैल, सुरनुपूर मलय, श्रीमान्, श्रीपथ, श्रीनिलय, शशिनाद, रिपुजय, मार्तण्ड, भाविलास, आनन्द, परिखेद, ज्योतिर्दण्ड, जय, अश्वरत्नपुर-इन नगरोंके अधिपति तथा बहुत-से सुभट आये। (५२-५५) पुत्रों के द्वारा स्नेहपूर्वक अर्चित पिताकी भाँति इन तथा दूसरे बहुत-से सुभटों द्वारा सन्नाह, आयुध आदि से राक्षसपति रावण पूजा गया । (५६) बुधजनों द्वारा कही गई चार हजार अक्षौहिणियाँ थीं। हे मगधपति श्रेणिक ! रावणकी सेनाका इतना परिमाण था। (५७) भामण्डल के साथ सब वानरोंकी चतुरंगसेना एक हजार अक्षौहिणी कही जाती थी। (५८) भामण्डलके साथ वानरध्वजवालोंका उद्योगी राजा सुग्रीव लक्ष्मण सहित रामको घेरकर वहाँ बैठा । (५६) पुण्यका उदय होनेपर मनुष्यके प्रबल शत्रु सेवक बनकर मित्रता प्राप्त करते हैं, और पुण्यका अवसान होनेपर विमल बन्धु भी छिद्रान्वेषी शत्रु बन जाते हैं। (६०) ॥ पद्मचरितमें विभीषणका समागम नामका पचपनवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥ ५६. रावणकी सेनाका निर्गमन मगधपतिने गणाधिप गौतमको भावपूर्वक प्रणाम करके पूछा कि, भगवन् ! एक अक्षौहिणीका परिमाण आप कहें। (१) तब इन्द्रभूति गौतमने कहा कि आठ प्रकारकी गणना तथा चार (चतुरंग) के संयोगसे एक अक्षौहिणी होती है। (२) इसमें पहला भेद पंक्ति, फिर सेना, सेनामुख, गुल्म, वाहिनी, पृतना, चमू तथा अंतिम अनीकिनी-ये आठ भेद हैं। (३) एक हाथी, एक रथ, तीन उत्तम घोड़े तथा पाँच प्यादे-इसे पंक्ति कहते हैं। (४) पंक्तिसे तिगुनी सेना, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001272
Book TitlePaumchariyam Part 1
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages432
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size13 MB
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