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४६. हणुयपत्थाणपव्वं
तुङ्गबलगबिएण वि, पुरिसेणं निययसत्तिजुत्तेण सया । होयबं नियमइणा, किंचि गणेन्तेण कारणं चिय विमलं ॥ १२५॥ ॥ इय पउमचरिए कोडिसिलाउद्धरणं नाम अट्ठचत्तालं पव्वं समत्तं ॥
४९. हणुयपत्थाणपव्वं
३ ॥
४ ॥
तत्चो सो सिरिभूई, संपतो सिरिपुरं रयणचित्तं । पविसद हणुयस्स संहा, तावेन्तं पेच्छई दूयं ॥ १ ॥ अत्थाणिसन्निविट्ठो, हणुओ समय अणङ्गकुसुमाए । गुण-रूवसालिणीए, चन्दणहानन्दिणीए य ॥ २ ॥ काऊण सिरपणामं, चन्दणहासन्तिओ तओ दूओ । साहइ हणुयस्स फुडं दण्डयरण्णाइयं सबं ॥ ते लक्खणेण वहिया, सामिय ! सम्बुक्क-दूसणा दो वि । सीयाहरणनिमित्ते, इह जाओ विम्गहो परमो ॥ सुणिऊण इमं वत्तं, अणङ्गकुसुमा खणं गया मोहं । आसत्था रुयइ तओ, सहोयरं चैव पियरं च ॥ ५ ॥ तं पेच्छिऊण एत्तो, खुहियं अन्तेउरं रुयइ सबं । नह वीणा - बंसरवो, खणेण ओहामिओ सबो ॥ ६॥ हाताय ! हा सोयर !, कत्तो सि गया महं अपुण्णाए ? । चिरकालविप्पमुक्का, किं मज्झ न दंसणं देह ? ॥ ७ ॥ एयाणि य अन्नाणि य, दुहिया खरदूसणस्स रोवन्ती । संथावणकुसलेहिं मन्तीहि उवसमं नीया ॥ ८ ॥ सबं च ताण काउं, पवणसूओ पेयकम्मकरणिज्जं । सुग्गीवरायतणयं, सद्दाविय पुच्छइ दूयं ॥ ९ ॥ अह तत्थ भणइ दूओ, देव ! निसामेहि अवहिओ होउं । कन्ताविओगदुहियं, सुग्गीवं जाणसी चेव ॥ १० ॥ महिलादुहियमणो सो, सरणं चिय राघवं समल्लीणो । गन्तृण निययनयरं, जुज्झइ समयं चिय विणं ॥ ११ ॥
पास श्रीभूति दूत भेजा गया । ( १२४ ) बलसे अत्यन्त गर्वित, अपनी सामर्थ्य से युक्त तथा सदैव अपनी बुद्धि पर भरोसा रखनेवाले मनुष्यको भी किसी अज्ञेय कारणकी गिनती करके विमल होना चाहिए। (१२५)
॥ पद्मचरितमें कोटिशिलाका उद्धरण नामक अड़तालीसवाँ पर्व समाप्त हुआ |
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४९.
हनुमानका प्रस्थान
तब वह श्रीभूति रत्नोंसे विचित्र ऐसे श्रीपुरमें पहुँचा और हनुमानकी सभा में प्रवेश किया। चन्द्रनखाकी गुण एवं रूपशाली पुत्री अनंगकुसुमाके साथ सभामें बैठे हुए हनुमानने दूतको देखा । (१-२ ) तब सिरसे प्रणाम करके दूतने हनुमानसे चन्द्रनखासे लेकर दण्डकारण्य आदिका सारा वृत्तान्त कह सुनाया कि हे स्वामी ! शम्बूक और खरदूषण दोनोंको लक्ष्मणने मारा है तथा सीताहरणके कारण बड़ा भारी विग्रह हुआ है । ( ३-४) यह वृत्तान्त सुनकर अनंगकुसुमा तत्काल बेसुध हो गई। आश्वस्त होने पर वह भाई और पिताके लिए शोक करने लगी । (५) यह देखकर सारा क्षुब्ध अन्तःपुर रोने लगा । वीणा और बंसीका स्वर तत्काल बन्द करा दिया गया । (६) हा तात ! हा सहोदर ! मुझ दुर्भागीको चिरकालके लिए छोड़कर तुम कहाँ चले गये हो? मुझे दर्शन क्यों नहीं देते ? -खरदूषणके लिए दुःखित हो इस प्रकार रोती हुई उसको आश्वासन देनेमें कुशल ऐसे मंत्रियोंने शान्त किया । ( ७८) उनके लिए करने योग्य सारा प्रेतकर्म करके हनुमानने दूत रूपसे आये हुए सुग्रीव राजाके पुत्रको बुलाया । ( 8 ) तब दूतने कहा कि, हे देव ! आप ध्यान देकर सुनें । पत्नी वियोगसे दुःखित सुग्रीवके बारेमें तो आप जानते ही हैं । (१०) पत्नीके कारण मनमें दुःखित वह रामकी शरणमें गये । अपने नगरमें जाकर उन्होंने शत्रुओंके साथ युद्ध किया । (११) रामको देखकर महाविद्या वैताली निकल
१. सभं तावन्नं पेच्छई — प्रत्य० ।
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